युद्ध के चलते यूक्रेन में हर पल जान का खतरा बना हुआ है। ऐसे में भारतीय छात्र जहां किसी भी तरह घर वापसी की राह देख रहे हैं, देहरादून में किशनपुर निवासी ऋषभ कौशिक अपने पालतू डागी ‘मालीबू’ के बिना भारत लौटने को तैयार नहीं हैं। ऋषभ का कहना है कि मालीबू को जब उन्होंने गोद लिया था, तब उसे पालने की जिम्मेदारी भी उठाई थी, ऐसे में उसे छोड़कर भारत आना संभव नहीं है।ऋषभ भारतीय एंबेसी से नाराज हैं। उन्होंने कहा कि हम युद्ध के बीच फंसे हुए हैं, लेकिन एंबेसी ने मदद करना तो दूर, सीधे मुंह बात तक नहीं की। उन्होंने बताया कि एंबेसी के अधिकारियों ने उनसे साफ बोल दिया है कि हम आपकी कोई मदद नहीं कर सकते। आप भारत सरकार से संपर्क कर लीजिए। युद्ध शुरू होने के बाद एंबेसी ने छात्रों को भारत ले जाने के लिए रेलवे स्टेशन या बस स्टाप पर बुलाया है। उसे फालो कर छात्र अपनी जान जोखिम में डालकर वहां तक पहुंचते हैं तो वहां छात्रों को कोई भी अधिकारी नहीं मिलता। संपर्क करने पर अधिकारी अपने बयान से पलट जा रहे हैं। ऐसे में छात्र एंबेसी के बयानों पर विश्वास करने से कतरा रहे हैं।
ऋषभ ने बताया कि वह दस फरवरी से घर वापसी की जुगत में लगे थे। इसके लिए उन्होंने कीव में भारतीय एंबेसी के साथ दिल्ली में नागरिक एवं उड्डयन मंत्रालय में संपर्क किया, तमाम पत्राचार के बाद भी उन्हें डागी को घर ले जाने की अनुमति नहीं मिली। ऐसे में 23 फरवरी को वह खारकीव से कीव के लिए रवाना हुए थे। कीव में उन्हें भारतीय एंबेसी में मुलाकात कर अपनी समस्या से अवगत कराना था, लेकिन 24 फरवरी की सुबह पांच बजे रूस ने हमला कर दिया। तब से वह कीव में ही फंसे हैं। बताया कि वह कीव में अपने एक परिचित के घर में हैं। बम का धमाका सुनते ही आस-पास बने बंकर में भाग जाते हैं। माइनस दस डिग्री में सात-आठ घंटों तक खड़े रहना आसान नहीं है। अब सिर्फ दो दिन का ही खाना-पानी बचा है। दिनों दिन मुसीबत बढ़ती जा रही है। 25 तारीख को हमारे घर से 400 मीटर दूर एक बिल्डिंग में बम गिरा। जिसमें 23 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। ऐसे में डर का माहौल बना हुआ है।