उत्तराखंड में कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत तो झोंकी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की काट साबित नहीं हो सके। दोनों शीर्ष नेताओं ने प्रदेश में जिन स्थानों पर प्रचार में ताकत झोंकी, वहां भी मोदी मैजिक के आगे कांग्रेस का प्रदर्शन फीका रहा है।
पांच राज्यों में हुए चुनावों में कांग्रेस को फिर निराशा हाथ लगी है। उत्तराखंड में सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंकी। कोरोना संक्रमण की रफ्तार धीमी पड़ने के बाद जनसभाओं की अनुमति मिलने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनाव से पहले पखवाड़े में ऊधमसिंहनगर जिले में किच्छा व हरिद्वार शहर और फिर हरिद्वार जिले में मंगलौर और अल्मोड़ा जिले के जागेश्वर में जनसभाएं कीं।
वहीं प्रियंका गांधी वाड्रा ने देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी व श्रीनगर में सभाओं को संबोधित किया। दोनों स्टार प्रचारकों की सक्रियता का असर 11 सीटों पर देखा गया। इन सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी जीत दर्ज करने में सफल रहे हैं। हालांकि पूरे प्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में वातावरण बनाने में कांग्रेस और उनके स्टार प्रचारकों को उतना कामयाबी नहीं मिली, जितनी भाजपा को मोदी मैजिक से मिली है। प्रियंका के बहाने कांग्रेस ने उत्तराखंड में महिला मतदाताओं को रिझाने की कोशिश भी की, लेकिन इसमें भी पार्टी को उतनी कामयाबी नहीं मिल पाई।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में इस बार भी नोटा का काफी प्रयोग हुआ। चुनाव में 46837 मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया। यह कुल मतदाताओं का 0.87 प्रतिशत है। हालांकि, वर्ष 2017 की तुलना में यह आंकड़ा कम है। पिछले चुनाव में 1.01 प्रतिशत व्यक्तियों ने नोटा का प्रयोग किया था।
इस बार के विधानसभा चुनावों में 5342462 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इनमें बड़ा मत प्रतिशत भाजपा व कांग्रेस के पक्ष में गया। वहीं ईवीएम में नोटा भी खूब दबा। हालांकि, देखा जाए तो इस बार वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव की तुलना में मतदाताओं ने नोटा का कम प्रयोग किया है। पिछले विधानसभा चुनाव में 50439 मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया था। इस बार 46837 व्यक्तियों ने नोटा का इस्तेमाल किया। यह संख्या बीते चुनावों की तुलना में 3602 कम है।