उन्होंने आगे कहा कि आधुनिक भारत में सुशासन शब्द जिन्होंने सही अर्थ में जमीन पर उतारने का काम किया ऐसे हमारे अटल जी का भी जन्मदिन है और अटल जी ने एक विचारधारा को लेकर अपना पूरा जीवन समर्पित किया।अमित शाह बोले, ‘सुशासन सप्ताह मनाने का जो निर्णय देश के प्रधानमंत्री जी ने किया और आजादी के अमृत महोत्सव में किया, इससे सुशासन का कान्सेप्ट दिल्ली से निकल कर, राज्यों की राजधानी से निकल कर गांवों तक पहुंचाने का काम हुआ है।’ उन्होंने कहा कि लोगों की सुशासन से अपेक्षा है कि जो विकास का माडल हो वो सर्वस्पर्शी हो, सर्वसमावेशक हो। देश का कोई क्षेत्र ऐसा न हो जिसमें विकास का स्पर्श न होता हो और समाज का कोई व्यक्ति ऐसा न हो, जिसका विकास के मॉडल में समावेश न होता हो।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राजधानी दिल्ली में विज्ञान भवन में सुशासन दिवस पर एक कार्यक्रम को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि पिछली 21 सरकारों ने अपने वोट बैंक को ध्यान में रखकर फैसले लिए हैं। नरेंद्र मोदी सरकार ने कभी ऐसे फैसले नहीं लिए जो लोगों को ‘अच्छा’ लगे, उन्होंने हमेशा ऐसे फैसले लिए जिनसे लोगों का ‘अच्छा’ हुआ।गृह मंत्री ने संबोधन में कहा, ‘आज हम सुशासन सप्ताह मनाने के लिए 25 दिसंबर के दिन एकत्र हुए हैं। आज के दिन के साथ 2 ऐसी विभूतियों की स्मृति जुड़ी है जिन्होंने देश के विकास और देश की आजादी के लिए और देश को एक नई दिशा दिखाने के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया।’ उन्होंने आगे कहा कि पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने आजादी से पहले इस देश की गौरवमयी विरासत को दुनिया के सामने रखने का काम किया। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की, भारतीय परंपरा के आधार पर नई और आधुनिक शिक्षा पद्धति कैसी हो सकती है, इसका एक आदर्श खड़ा करने का काम किया।
उन्होंने कहा कि पहले विकास की एक अलग व्याख्या थी, ढेर सारे द्वंद चलते थे। नरेंद्र मोदी सरकार ने इन सारे द्वंदों को समाप्त कर दिया। गृह मंत्री बोले, ‘एक ही सरकार के 7 साल के कालखंड में कृषि का भी विकास हुआ है, औद्योगिक विकास भी हुआ है, गांवों में भी विकास हुआ है और शहरों में भी विकास हो रहा है, देश की सीमाएं भी सुरक्षित हुई हैं और पूरे विश्व के साथ हमने संबंध भी अच्छे किये हैं।’अमित शाह ने कहा, ‘2014 से पहले इस देश मे 60 करोड़ लोग ऐसे थे, जिनके परिवार में एक भी बैंक एकाउंट नहीं था, उसके घर में बिजली नहीं थी, किसी के पास घर ही नहीं था। 10 करोड़ से ज्यादा परिवार ऐसे थे जिनके पास शौचालय ही नहीं था।’ उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य के नाम पर बहुत बड़ा शून्य था, घर में बीमारी आने पर गरीब आदमी केवल ईश्वर को ही याद करता था। कैंसर, दिल का दौरा और लकवा जैसी बीमारी आने पर वो अपने आप को असहाय महसुस करता था, आजादी के कोई मायने नहीं रह जाते थे।