बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने प्रत्याशियों की अपनी पहली सूची में जातीय और सामाजिक समीकरण को साधने का प्रयास किया है। बसपा ने जहां हरिद्वार जिले से दो पूर्व विधायकों को टिकट दिया है, वहीं अनुसूचित जाति के साथ ही ब्राह्मण, ठाकुर, मुस्लिम, पिछड़ा वर्ग व वैश्य समाज के नेताओं को उम्मीदवार बनाया है।राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में बसपा का अपना एक मजबूत जनाधार रहा है। राज्य गठन के बाद वर्ष 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बसपा ने 10.93 मत प्रतिशत लेकर सात सीटों पर कब्जा जमाया था। 2007 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में बसपा ने 11.76 फीसद मत प्रतिशत के साथ आठ सीटें कब्जाई। वर्ष 2012 में बसपा का मत प्रतिशत तो बढ़ कर 12.19 प्रतिशत तक पहुंचा, लेकिन सीटों की संख्या घट कर तीन पहुंच गई। वहीं 2017 के विधानसभा चुनावों में बसपा को केवल 6.98 प्रतिशत मत मिले और उसकी झोली खाली रही। विशेष यह रहा कि बसपा ने तीन चुनावों में जो भी सीटें जीती, उनमें अधिकांश सीटें अनुसूचित जाति और मुस्लिम समुदाय के प्रत्याशियों ने जीती थीं। यही बसपा का सबसे बड़ा वोट बैंक भी है।
अब बसपा इस वोट बैंक के साथ ही अन्य वर्गों में भी अपनी पैठ बनाने का प्रयास कर रही है। इसीलिए बसपा ने जो 37 प्रत्याशी घोषित किए हैं, उनमें 15 अनुसूचित जाति, सात पिछड़ा वर्ग, एक अनुसूचित जनजाति, तीन मुस्लिम, चार ब्राह्मण, छह ठाकुर और एक वैश्य समुदाय से है। जाहिर है कि बसपा कहीं न कहीं अपनी पारंपरिक छवि से बाहर निकलने का प्रयास कर रही है। बसपा ने हरिद्वार की तीन सीटों यानी हरिद्वार, बीएचइएल और रुड़की से अभी प्रत्याशियों के नाम घोषित नहीं किए हैं। माना जा रहा है कि यहां बसपा सामान्य वर्ग के नेताओं को अपना उम्मीदवार बना सकती है। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी शीशपाल का कहना है कि बसपा सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। जल्द ही शेष प्रत्याशियों की सूची भी जारी कर दी जाएगी।