दून विनर संवाददाता/ देहरादून।
केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर पर विभिन्न पाठ्यक्रमों में देश के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए दस्तक दे रहे छात्रों को एक ही प्रवेश परीक्षा के माध्यम से दाखिले की सहूलियत के लिए काॅमन यूनिवर्सिटी एन्ट्रेंस एग्जाम (सीयूईटी) लागू किया, लेकिन उत्तराखंड में सैकड़ों अभ्यर्थियों के लिए यह व्यवस्था जी का जंजाल बन रही है।
अभ्यर्थी के घर से अंतिम घड़ी में बताए गए एग्जाम सेटर तक पहुंचने के लिए जरूरी न्यूनतम समय और साधन नहीं मिलने से सैकड़ों की संख्या में छात्र निर्धारित एग्जाम में नहीं बैठ पाए। इस हालत के चलते सीयूईटी कराने वाली राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) सवालों के घेरे में है। कागजों पर न्यू इंडिया का यह कम्प्यूटर बेस्ड एग्जाम असल में सरकारों की अधकचरी तैयारी की भी दास्तां बयां कर रहा है जिसका बुरा असर बच्चों के भविष्य पर पड़ सकता है।
सूचना के अनुसार उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल और उत्तरकाशी जिलों में रहने वाले 200 के करीब छात्रों को जून, 10 तारीख की रात करीब एक बजे एनटीए की ओर से दिए गए ईमेल से सूचना दी गई थी कि उन्हें सीयूईटी के एक पेपर की पुनः परीक्षा अगली ही सुबह देनी है। परीक्षा केन्द्र घर से 100 किमी से भी अधिक दूर होने की वजह से ज्यादातर छात्रों का पेपर छूट गया। अर्द्धरात्रि बाद पहाड़ों में यातायात के साधनों की उपलब्धता संभव नहीं थी। जाहिर है सुबह होने पर हवाई जहाज या हेली सेवा के अलावा अभ्यर्थी इतने कम समय में परीक्षा केन्द्र तक पहुंच ही नहीं सकते थे। पौड़ी गढवाल के आयुष चमोली के घर से देहरादून स्थित परीक्षा केन्द्र की दूरी 150 किमी से भी ज्यादा थी नतीजा यह रहा कि आयुष का पेपर छूट गया। आयुष जैसी हालत सैकड़ों छात्रों की रही। परीक्षा से वंचित रह गए इन छात्रों के अनुरोध पर एनटीए उन्हें मौका दे सकता है,ऐसी बातें हवा में हैं परन्तु अपने भविष्य के सपने देख रहे इन तमाम छात्रों की मानसिक स्थिति क्या रही होगी जब उन्हें एनटीए ने अचानक 11 जून को रीशेड्यूल की गई परीक्षा की सूचना कुछ घंटे पहले दी थी।
अब ये भी जान लें कि 31 मई को पहले ही हो चुके पेपर को रीशेड्यूल क्यों करना पड़ा था। एनटीए का कहना था कि अभ्यर्थियों ने मई में एग्जाम दिया था, लेकिन उनमें से कई छात्रों ने दावा किया था कि गणित के पेपर के बजाय उनकी स्क्रीन पर किसी और विषय का पेपर अपलोड हो गया था। इसलिए उन्हें पेपर देने का एक और मौका दिया गया।
एनटीए की ओर से कराई जा रही सीयूईटी की परीक्षाओं में जानकारी ये भी है कि विभिन्न परीक्षा केंद्रों में कम बच्चे पहुंचे। इसकी वजहें यह बताई गई हैं कि राज्य के अलग-अलग केंद्रों में पर्याप्त जगह होने के बावजूद छात्र-छात्राओं को स्थानीय के बजाए दूरदराज के क्षेत्रों में परीक्षा केंद्र आवंटित किए गए और इसके साथ ही परीक्षा केंद्र भी स्थानीय स्तर पर नहीं बनाए गए। दरअसल एनटीए परीक्षा केंद्र बनाने से पहले संबंधित केंद्र से अनुमति लेता है, इसके बाद ऑडिट के लिए टीम भेजता है। परीक्षा केंद्र के ठीक पाए जाने के बाद ही उसे स्वीकृति दी जाती है, लेकिन कुछ केंद्र
ठीक नहीं मिले, वहां पर्याप्त कम्प्यूटर एवं अन्य व्यवस्थाएं नहीं मिली।
ठीक नहीं मिले, वहां पर्याप्त कम्प्यूटर एवं अन्य व्यवस्थाएं नहीं मिली।
सीयूईटी यूजी और पीजी में ये बातें काफी सामने आई हैं कि कई अभ्यर्थियों के परीक्षा केन्द्र प्रदेश में काफी दूर आवंटित किए गए हैं और कई मामलों में उत्तराखंड के निवासी अभ्यर्थियों को उत्तर प्रदेश में भी परीक्षा केन्द्र आवंटित किए गए हैं। सीयूईटी एग्जाम में हो रहे इस तरह के अनोखे वाकए नीट और जेईई परीक्षाओं में भी सुनने को नहीं मिलते।
इस हफरातफरी से एनटीए और एचएनबी गढवाल विवि के बीच समन्वय की कमी तो साफ तौर पर दिखती ही है परन्तु सबसे बड़ा सवाल उत्तराखंड सरकार की व्यवस्थाओं को लेकर की जाने वाली निगरानी पर उठ रहे हैं। पिछले साल उत्तराखंड को सीयूईटी से परिचालन की कठिनाइयों को देखते हुए छूट दी गई थी। इस बार सरकार ने राज्य में स्थित एकमात्र केन्द्रीय विवि को भी सीयूईटी में शामिल होने पर सहमति दे दी। परन्तु कम्प्यूटर बेस्ड परीक्षा के लिए आवश्यक ढांचे और राज्य की भौगोलिक जटिलताओं को अनदेखा कर दिया। राज्य के हजारों बच्चों के भविष्य के सवाल पर सरकार की यह भगवान भरोसे की कहानी सोचनीय है।