गढवाल विश्वविद्यालय के केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनने से पर्वतीय राज्य को क्या मिला?

गढवाल विश्वविद्यालय के केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनने से पर्वतीय राज्य को क्या मिला?

दून विनर संवाददाता/देहरादून। 

आजादी के दो दशक बाद गढवाल क्षेत्र से उभरते तबके के बीच से उच्च शिक्षा हेतु विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए जोरदार मांग उठने के बाद इसने बड़े आंदोलन का रूप लिया और इसके फलस्वरूप सन् 1973 में उत्तर प्रदेश विधानसभा में गढवाल विवि और कुमाऊं विवि विधेयकों के पास होने के साथ ही प्रदेश के इन पिछड़े क्षेत्रों के सामान्य परिवार के उच्च शिक्षा के आकांक्षी युवाओं की उच्च शिक्षा तक पहुंच आसान हुई।

श्रीनगर स्थित गढवाल विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर से निकलने वाली उच्च शिक्षा की ज्योति से पर्वतीय क्षेत्र के युवाओं के साथ भारत के अन्य प्रांतों के
युवाओं की भी उच्च शिक्षा की आस पूरी हुई और वे इस शैक्षिक आधार के दम पर राष्ट्रीय स्तर पर अनेक क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर पाए।
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद उम्मीद रही कि पर्वतीय राज्य की सरकारें अपने महत्वपूर्ण उच्च शिक्षा संस्थानों को हर तरह से सुविधासम्पन्न कर न केवल प्रदेश के युवाओं को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा का मार्ग प्रशस्त करेगी बल्कि एक अनुपात में देश भर की प्रतिभाओं को भी शिक्षा प्राप्त करने का अवसर देकर उच्च शिक्षा केन्द्र में भारत की साझा संस्कृति को भी फलने फूलने का मौका देंगी।
परन्तु राज्य सरकार ने अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते हुए गढवाल विवि को केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में देने का फैसला कर अपने एक अति महत्वपूर्ण उच्च शिक्षा केन्द्र को नई दिल्ली को सौंप दिया। वर्ष 2009 में जब राज्य सरकार के इस पलायनवादी फैसले को केन्द्र ने मुहर लगाई तब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी और केंद्र में यूपीए की सरकार। यही नहीं राज्य की भाजपा सरकार में यूकेडी भी शामिल थी। प्रदेश के संसाधनों की रक्षा का प्रबलतम रूप से हिमायत करने का दावा करने वाली यूकेडी ने सरकार में शामिल होते हुए भी चुपचाप अपने एक बड़े उच्च शिक्षा केन्द्र को जाने दिया।
अब आज की ताजा हालत से इसे जोड़ कर देखने पर जाहिर है कि कोई आश्चर्य वाली स्थिति नहीं है। एचएनबी गढवाल केन्द्रीय विवि की एग्जीक्यूटिव कौंसिल ने 30 मई की बैठक में एक फैसला लेकर विवि से संबद्ध, राज्य सरकार सहायतित 10 डिग्री कालेजों की विवि से आगामी सत्र हेतु संबद्धता समाप्त कर दी है। इनमें देहरादून स्थित बड़े शिक्षा केन्द्र डीएवी, डीबीएस, एमकेपी, एसजीआरआर (सभी पीजी कालेज हैं) शामिल हैं। इसके साथ ही देहरादून जिले में स्थित डीडब्ल्यूटी पीजी काॅलेज, एमपीजी पीजी काॅलेज, हरिद्वार जिले के तीन और पौड़ी जिले के एक डिग्री काॅलेज की केन्द्रीय विवि से संबद्धता समाप्त कर दी गई है।
 केन्द्रीय विवि की वी.सी. (प्रोफेसर) अन्नपूर्णा नौटियाल की अध्यक्षता में हुई एग्जीक्यूटिव कौंसिल की बैठक में लिए गए इस खासे प्रभाव पैदा करने वाले निर्णय का जो मुख्य कारण बताया जा रहा है वह यह है कि राज्य सरकार ने इन 10 कालेजों को अनुदान देने से मना कर दिया। राज्य सरकार ने तीन साल पहले भी अनुदान को रोक दिया था किन्तु इस मामले में उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद राज्य सरकार ने अनुदान जारी किया। अब फिर राज्य सरकार ने अनुदान देने से मना कर दिया। राज्य सरकार का कहना है कि केन्द्रीय विवि से संबद्ध काॅलेजों को
राज्य सरकार द्वारा अनुदान नहीं दिया जाएगा। प्रदेश में वर्ष 2017 से लगातार भाजपा की सरकार है।
गढवाल विवि की स्थिति देखिए कि उससे गढवाल मंडल के सभी सरकारी डिग्री काॅलेज हटाकर राज्य सरकार के विवि, श्रीदेव सुमन विवि से संबद्ध कर दिए गए हैं। राज्य सरकार से अनुदान प्राप्त 10 ये ऐसे डिग्री काॅलेज हैं जो केन्द्रीय विवि से संबद्धता हटाने के पक्ष में नहीं थे। उन्हें मजबूर करने के लिए राज्य की भाजपा सरकार ने नया पैंतरा चला है। यदि ये नामी गिरामी और बड़े शिक्षा केन्द्र श्रीदेव सुमन विवि का अंग बनते हैं तो निश्चित ही नए-नए विवि की ख्याति में इजाफा होगा।
14 साल पहले लिए गए एक अपरिपक्व निर्णय की कमियों को ढकने के लिए यह नया पैंतरा है। इस तरह की राजनीति से सीधा-सीधा सबसे अधिक कुप्रभावित वे 20 हजार के करीब अभ्यर्थी हो रहे हैं जिन्होंने सीयूईटी परीक्षा दी है और परिणाम का इंतजार कर रहे हैं। जब तक सीयूईटी  का परिणाम आता उससे पहले ही उत्तराखंड में बेहतर व किफायती उच्च शिक्षा पाने के उनके सपनों पर प्रहार हुआ है। एक विवि जिसकी स्थापना के लिए संघर्ष करना पड़ा था आज उसका कुनबा सिकुड़ने की राह पर है और राज्य सरकार का कोई दखल वहां नहीं है बल्कि सीधे नई दिल्ली से नियंत्रित है। राज्य की मांग करने वालों के लिए भी यह एक अजीबोगरीब हालत है।
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