देहरादून। सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस चुनावी रण में हर मोर्चे पर प्रयास में जुटी है। भाजपा के पांच साल के कार्यकाल को निराशाजनक बताने के साथ ही तीन सीएम बदलने को नाकामी में गिना रही है। कांग्रेसी क्षत्रपों को उम्मीद है कि सत्ता विरोधी लहर से उनकी नाव पार हो जाएगी। मगर चुनाव से जुड़े पुराने आंकड़े बताते हैं कि इस उम्मीद को सार्थक करने के लिए जमीन पर अभी खासी मेहनत की जरूरत है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के वोटों के बीच 13 प्रतिशत का अंतर था। दो साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन और आगे निकल गया। कुल मतों में साठ प्रतिशत उसकी झोली में पहुंचे। इसके बाद निकाय और पंचायत चुनाव में भी विपक्ष पीछे छूटता गया।
उत्तराखंड बनने के बाद पहले तीन चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच मत प्रतिशत को लेकर अधिकतम दो प्रतिशत का अंतर रहा। 2002 के पहले आम चुनाव में भाजपा को 25.45 और कांग्रेस को 26.91 प्रतिशत मत मिले। सरकार कांग्रेस की बनी। 2007 में भाजपा को 31.90 और कांग्रेस को 29.59 प्रतिशत मत मिले। बाजी भाजपा के हाथ लगी। वहीं, 2012 के चुनाव परिणाम ने भाजपा को सत्ता से बेदखल कर कांग्रेस को सत्ता सौंप दी। तब कांग्रेस को 33.79 और भाजपा को 33.13 प्रतिशत मत मिले थे। यानी तीन चुनाव में एक से दो प्रतिशत के मामूली अंतर ने सरकारें बदल दी।
लेकिन 2017 के चुनाव में मोदी लहर ऐसी चली कि पिछले सभी रिकार्ड ध्वस्त हो गए। भाजपा को 46.50 और कांग्रेस को मात्र 33.50 प्रतिशत मतों से संतोष करना पड़ा था। नतीजन 70 में से 57 सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई। ऐसे में कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए अभी भी काफी मेहनत की जरूरत है। बगावत को थामने के साथ उसे पुरानी गुटबाजी पर भी अंकुश लगानी होगी।2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम उत्तराखंड कांग्रेस के सभी नेताओं के लिए बेहद चौंकाने वाले रहे। प्रदेश में लोकसभा की पांच सीटें हैं। कांग्रेस का हर उम्मीदवार दो लाख से अधिक वोटों से हारा था। नैनीताल-लोकसभा सीट कांग्रेस ने 3,39, 096, हरिद्वार सीट 2, 58, 729, पौड़ी 3,02, 669, टिहरी 3,00,586 और अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ सीट 2,32,986 मतों के अंतर से गंवाई थी। लोकसभा चुनाव में 60.7 प्रतिशत मत अकेले भाजपा को मिले थे।