आपराधिक पृष्ठभूमि के प्रत्याशियों को मतदाता सिखाएंगे सबक !

आपराधिक पृष्ठभूमि के प्रत्याशियों को मतदाता सिखाएंगे सबक !

दून विनर/ संवाददाता
इस वक्त उत्तराखंड विधानसभा में हल्द्वानी, नैनीताल, गंगोत्री, पुरोला और बाजपुर सीट रिक्त हैं, इसके बाद विधानसभा में निर्वाचित विधायकों की संख्या 65 रह गई है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव और उसके बाद हुए उपचुनाव में इन 65 विधायकों द्वारा शपथ पत्रों में घोषित जानकारी के आधार पर उत्तराखंड इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोर्म्स(एडीआर) ने आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में विश्लेषण किया है। रिपोर्ट के अनुसार 65 में से 20 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं जिनमें 14 पर गंभीर आपराधिक मामले हैं। भाजपा के 54 विधायकों में से 16 पर आपराधिक मामले हैं जिनमें से 10 पर गंभीर आपराधिक केस हैं। भाजपा के दो विधायकों पर दफा 302 आइपीसी के अन्तर्गत हत्या का मामला है और इनमें से एक विधायक पर दफा 307 आइपीसी, हत्या के प्रयास का मामला भी है। कांग्रेस के 9 विधायकों में से 3 पर आपराधिक मामले हैं और तीनों पर गंभीर आपराधिक मामले हैं। दो निर्दलियों में एक विधायक पर गंभीर आपराधिक मामले हैं। वहीं 65 में से 3 विधायकों पर महिलाओं पर अत्याचार के मामले हैं। एडीआर की एक रिपोर्ट कहती है कि 2012 से 2017 के चुनावों में उत्तराखंड में दागी प्रत्याशियों की संख्या दोगुनी हो गई। 2012 के विधानसभा में 28 दागी प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे तो वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में यह संख्या बढ़कर 54 हो गई। हालांकि अधिकतर दर्ज आपराधिक मामले बहुत गंभीर प्रकृति वाले नहीं हैं और न ही किसी भी मामले में किसी सक्षम न्यायालय से अपराध सिद्ध हो पाया है।

यह है दागियों को लेकर चुनाव आयोग का नियम
इस बार चुनाव आयोग ने दागी प्रत्याशियों पर लगाम लगाने के लिए कुछ अतिरिक्त नए नियम जारी किए हैं। चुनाव आयोग के अनुसार प्रत्याशी के लिए चुनाव प्रचार के दौरान तीन बार अपने आपराधिक मामलों की जानकारी अखबार और टीवी के माध्यम से प्रसारित करनी होगी। प्रत्याशी को नाम वापसी की अंतिम तिथि के पूर्व के अंतिम चार दिनों में जानकारी जारी करनी होगी। इसके बाद अगले पांच से आठ दिन में दोबारा और फिर चुनाव प्रचार के नौंवे दिन से प्रचार के अंतिम दिन तक। चुनाव आयोग के राजनैतिक दलों के लिए निर्देश हैं कि दलों को अपने सभी प्रत्याशियों की आपराधिक पृष्ठभूमि की पूरी जानकारी वेबसाइट, सोशल मीडिया व अखबारों में देनी होगी। दलों को यह भी बताना होगा कि उन्होंने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशी को क्यों चुना? यह भी बताना होगा कि उन्हें अन्य कोई ऐसा व्यक्ति क्यों नहीं मिला, जो कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाला न हो।

दो साल पहले आया था सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
भारत की सर्वोच्च अदालत ने 14 फरवरी 2020 को एक याचिका पर अहम फैसला दिया कि राजनीतिक दलों को चुनाव से पूर्व आपराधिक छवि वाले उम्मीदवार के चयन का कारण बताना होगा। उत्तराखंड की चुनावी सियासत के लिहाज से भी सर्वोच्च अदालत का यह निर्णय काफी अहम माना गया गया है। यहां के राजनैतिक दलों ने इस फैसले का स्वागत भी किया था, हालांकि अभी तक विभिन्न दलों के प्रत्याशियों की जो सूचियां आई हैं उसमें कई ऐसे नाम हैं जिन पर गंभीर प्रकृति के आपराधिक मुकदमें दर्ज हैं। राजनैतिक दलों के लिए चुनाव जीतना सर्वोच्च प्राथमिकता होने से ये हालत हा रही है। दागी को भी गले लगाने से उन्हें परहेज नहीं है। ऐसे में मतदाताओं पर बड़ी जिम्मेदारी है कि वे प्रत्याशी के बारे में मत देने से पहले अच्छी जानकारी हासिल कर साफ व स्वच्छ पृष्ठभूमि के प्रत्याशियों में से विकल्प चुनें।
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