उत्तराखंड में मूल निवास व सशक्त भू कानून की जद्दोजहद, पढिए पूरी खबर

उत्तराखंड में मूल निवास व सशक्त भू कानून की जद्दोजहद, पढिए पूरी खबर

* समय की मांग को देख हक-हकूकों के लिए जोर पकडऩे लगी है मुहिम, बीते 24 दिसंबर 2023 को देहरादून में हुई रैली में हजारों की संख्या में शामिल हुए थे लोग, प्रख्यात लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने भी की थी अपील।
मामचन्द शाह/देहरादून। उत्तराखंड के असल मुद्दों जल, जंगल, जमीन का हक बचाने के लिए मूल निवास की कट ऑफ डेट १९५० लागू करने की मांग को लेकर राज्य के मूल निवासियों की मांग अब जोर पकडऩे लगी है। यही नहीं भू माफियाओं द्वारा बड़े पैमाने पर हो रही जमीन की खरीद-फरोख्त को देख प्रदेश में सशक्त भू कानून की मांग भी जोर-शोर से गति पकड़ती दिखाई दे रही है। इसके लिए बीते २४ दिसंबर २०२३ को देहरादून में विभिन्न सामाजिक संस्थाएं व संगठनों व आमजन ने स्वत: स्फूर्त आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है। इस आंदोलन को देख १९९४ में हुए उत्तराखंड राज्य आंदोलन की यादें भी एक बार फिर से ताजी हो गईं।
वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री पुष्कर धामी कहते हैं कि राज्य में चाहे मूल निवास का मुद्दा हो, भू-कानून का मुद्दा हो या अन्य कोई भी जनहित से जुड़े मुद्दे हों, राज्य के हित में जो भी जरूरत पड़ेगी, हम उसमें एक परसेंट भी पीछे रहने वाले नहीं हैं। राज्य का हित और यहां के नौजवान युवाओं का हित हमारे लिए सबसे पहले है।
कृषि भूमि की खरीद पर रोक लगाने का निर्णय ध्यान भटकाने का हथकंडा : मोहित डिमरी 
मुख्यमंत्री पुष्कर धामी द्वारा प्रदेश में बाहरी व्यक्तियों द्वारा कृषि योग्य भूमि की खरीद पर रोक लगाने का निर्णय मूल निवास और मजबूत भू-कानून की मांग से ध्यान हटाने का हथकंडा है।
मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी कहते हैं कि समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों में बताया गया है कि मुख्यमंत्री धामी ने अग्रिम आदेशों तक बाहरी व्यक्तियों के द्वारा कृषि तथा उद्यानिकी के प्रयोजन के लिए भूमि खरीद पर रोक लगाने के आदेश दिए हैं। सरकार और सत्ताधारी दल इस फैसले को राज्य हित में लिया गया बड़ा निर्णय बता रहे हैं, लेकिन हमारा सवाल यह है कि बाहरी और मूल निवासी की परिभाषा तय किए बिना सरकार ऐसा भ्रामक आदेश जारी कर किसे बहकाने की कोशिश कर रही है?
मोहित डिमरी ने कहते हैं कि हमारी मांग है कि सरकार सबसे पहले मूल निवास को लेकर स्थिति स्पष्ट करे। एक और सवाल यह है कि ये रोक केवल ‘अस्थाई’ है, जिसे सरकार किसी भी दिन गुपचुप तरीके से वापस ले लेगी।
सरकार के इस फैसले को लेकर हमारा यह भी कहना है कि भू-कानून को लेकर पूर्व में जो राज्य विरोधी निर्णय लिए गए, उन्हें सबसे पहले वापस लिया जाए। पहले त्रिवेंद्र रावत और फिर वर्तमान भाजपा की सरकारों ने भू-कानून को कमजोर कर प्रदेश में जमीन की लूट का जो रास्ता खोला है, सबसे पहले सरकार उसे बंद करे।
डिमरी कहते हैं कि कितनी हस्यास्पद बात है कि एक तरफ सरकार ने प्रदेश में जमीन खरीदने के बाद उसके लैंड यूज में बदलाव की अनिवार्यता को खत्म कर दिया और अब सरकार कृषि भूमि पर खरीद पर रोक लगाने के निर्णय का दिखावा कर रही है। इस प्रपंच को प्रदेश की जनता अच्छी तरह समझ रही है।
इस संबंध में उत्तराखंड क्रांति दल के वरिष्ठ नेता शांति प्रसाद भट्ट कहते हैं कि राज्य आंदोलन के बाद अब मूल निवास व सशक्त भू कानून की मांग को लेकर स्वत: स्फूर्त रूप से सभी लोगों को एकजुट होता दिखाई देना शुभ संकेत है। इस मांग को लगातार पुख्ता तरीके से उठाया जाएगा। उन्होंने कहा कि भू कानून से सरकार ध्यान भटकाने का काम कर रही है, किंतु ऐसा होने नहीं दिया जाएगा।
अपने अस्तित्व और अस्मिता बचाने के लिए हरेक मूल निवासी आएं आगे : लुशुन टोडरिया
मूल निवास भू कानून समन्वय संघर्ष समिति के सह संयोजक लुशुन टोडरिया कहते हैं कि मूल निवास स्वाभिमान आंदोलन को जन-जन तक पहुँचाने का अभियान जारी है। यह उत्तराखंड के हरेक मूल निवासी का आंदोलन है। जब तक उत्तराखंड में हिमाचल की तर्ज पर सशक्त भू कानून और मूल निवास 1950 लागू नहीं हो जाता, यह आंदोलन जारी रहेगा। यह लड़ाई हमारे अस्तित्व, अस्मिता, स्वाभिमान और अपनी सांस्कृतिक पहचान बचाने का है। हमारे संसाधनों को बाहरी लोग डाका डाल रहे हैं। नौकरियों से लेकर जल, जंगल, जमीन पर बाहरी लोग कब्जा कर चुके हैं। हमें अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए संघर्ष करना ही होगा।
उत्तराखंड विकास पार्टी के अध्यक्ष मुजीब नैथानी एवं पूर्व सैनिक संगठन के अध्यक्ष महेंद्र पाल सिंह रावत कहते हैं कि आज हमारी जमीनों पर भू माफिया का कब्जा होता जा रहा है। हमारे लोग बाहर के लोगों के रिजॉर्ट में नौकर बनने के लिए मजबूर हो गए हैं। सरकार ने भू कानून इतना लचर बना दिया है, कोई भी हमारे राज्य में बेतहाशा जमीन खरीद सकता है। जब हमारी जमीन बचेगी, तभी हमारा ज़मीर भी बच पाएगा। जमीन बचेगी तो हमारी संस्कृति, बोली-भाषा, वेशभूषा, साहित्य और अस्मिता भी बच पाएगी।
अच्छी बात यह है कि हमेशा से ही प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों को जोर-शोर से उठाते रहे उत्तराखंड क्रांति दल का इस आंदोलन को न सिर्फ जबर्दस्त समर्थन मिल रहा है, बल्कि वे इसमें कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। इसके अलावा राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी भी इस आंदोलन को पूरा समर्थन दे रही है।
…और छा गए धर्मपुर विधायक विनोद चमोली
दरअसल बीते 24 दिसंबर 2023 को जब देहरादून के परेड ग्राउंड  में हजारों लोगों की मौजूदगी में मूल निवास स्वाभिमान रैली हो रही थी, इसी दौरान पवेलियन ग्राउंड में भाजयुमो की ‘मोदी है ना रैली’ का आयोजन हो रहा था। इस रैली में धर्मपुर से सत्तारूढ़ भाजपा विधायक विनोद चमोली भी शामिल थे। इस दौरान उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि मैं शरीर रूप से यहां जरूर हूं, मगर मेरी आत्मा मूल निवास, भू-कानून के लिए निकल रही रैली के साथ है। उन्होंने कहा कि यहां भी अपने, वहां भी अपने, जाऊं तो किधर जाऊं, यहां मैं खड़ा हूं, वहां वो खड़े हैं, मन करता है मैं भी जाऊं, उनके कदमों से कदम मिलाऊं, पड़ी है बेडिय़ां अनुशासन की, ये हाल-ए-दिल किसे सुनाऊं, जाऊं तो किधर जाऊं, जाऊं तो किधर जाऊं…। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ और मूल निवास व सशक्त भू कानून की मांग कर रहे लोगों के बीच विधायक विनोद चमोली छा गए। उनकी इस बात की प्रदेशभर में खूब वाहवाही हो रही है।
कांग्रेस का गोलमोल रवैया
वहीं दूसरी ओर मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 के मुद्दे पर कांग्रेस सहमत नहीं दिखाई दे रही है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा  इस पर गोलमोल तरीके से कहते हैं कि ये रिसर्च बेस का विषय है। जिन लोगों को पं. गोविंद बल्लभ पंत ने आजादी के दौरान तराई में बसाया था, उनके हित कैसे सुरक्षित करेंगे। दशकों से कई पीढी से रहने वालों को बाहर कैसे किया जा सकता है। ऐसे में इस विषय पर आम राय बनने की जरूरत है।
नरेंद्र सिंह नेगी की ‘धै’
लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी की अपील पर देहरादून में आंदोलन को समर्थन देने के लिए जिस तरह से हजारों की संख्या में समर्थक उमड़े, उससे उत्साह देखते ही बन रहा था। इस दौरान नरेंद्र सिंह नेगी ने चमोली  के गरुडग़ंगा में लोगों के बीच सड़क पर खड़े होकर मूल निवास व सख्त भू कानून के समर्थन में पुन: अपील की।
कुल मिलाकर इस आंदोलन का शंखनाद हो गया है। अब संघर्ष समिति द्वारा अगले कार्यक्रमों में हल्द्वानी, कोटद्वार, श्रीनगर के अलावा ब्लॉक स्तर पर भी इसके समर्थन में आंदोलन शुरू करने की रणनीति बनाई जा रही है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस मामले में कब तक सकारात्मक निर्णय ले पाती है!
मूल निवास प्रमाण पत्र जारी करने के लिए मानक निर्धारित करने को समिति गठित
मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के निर्देश पर राज्य हित में पूर्व में गठित भू-कानून समिति की अनुशंसा पर कार्यवाही हेतु शासनादेश सं0 2232 दिनांक 22 दिसम्बर, 2023 द्वारा उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया है। यह समिति राज्य सरकार द्वारा लागू किए जाने वाले भू-कानून के प्रारूप के साथ ही साथ मूल निवास प्रमाण पत्र जारी करने के संबंध में मानकों का निर्धारण करने के संबंध में भी अपनी संस्तुति शासन को उपलब्ध कराएगी।
मुख्यमंत्री धामी द्वारा प्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त होने के बाद उसी वर्ष अगस्त माह में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। समिति को राज्य में औद्योगिक विकास कार्यों हेतु भूमि की आवश्यकता तथा राज्य में उपलब्ध भूमि के संरक्षण के मध्य संतुलन को ध्यान में रख कर विकास कार्य प्रभावित न हों, इसको दृष्टिगत रखते हुए विचार-विमर्श कर अपनी संस्तुति सरकार को उपलब्ध कराने को कहा था। धामी ने कहा कि पूर्व में गठित समिति द्वारा राज्य के हितबद्ध पक्षकारों, विभिन्न संगठनों, संस्थाओं से सुझाव आमंत्रित कर गहन विचार-विमर्श कर लगभग 80 पृष्ठों में अपनी रिपोर्ट तैयार की थी। इसके अलावा समिति ने सभी जिलाधिकारियों से प्रदेश में अब तक दी गई भूमि क्रय की स्वीकृतियों का विवरण मांग कर उनका परीक्षण भी किया। समिति ने अपनी संस्तुतियों में ऐसे बिंदुओं को सम्मिलित किया है, जिससे राज्य में विकास के लिए निवेश बढ़े और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो। साथ ही भूमि का अनावश्यक दुरुपयोग रोकने की भी समिति ने अनुशंसा की है।
मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने कहा कि इन विषयों पर सम्यक रूप से विचार विमर्श कर अपनी सुस्पष्ट संस्तुति राज्य सरकार को उपलब्ध कराने के लिये ही अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया है। जिसमें विषय विशेषज्ञ के रूप में अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। उक्त समिति भू-कानून को लागू करने के प्रारूप के साथ ही मूल निवास प्रमाण पत्र जारी किए जाने हेतु मानकों के निर्धारण का कार्य भी करेगी।
मुख्यमंत्री के निर्देश पर  प्रदेश हित में  निर्णय लिया गया है कि भू कानून समिति की आख्या प्रस्तुत किये जाने तक या अग्रिम आदेशों तक जिलाधिकारी उत्तराखंड राज्य से बाहरी व्यक्तियों को कृषि एवं उद्यान के उद्देश्य से भूमि क्रय करने की अनुमति के प्रस्ताव में अनुमति नहीं देंगे।
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