* कोटद्वार के हल्दूखाता के रहने वाली माधुरी डबराल केचुआ खाद पर करती है काम
प्रेम पंचोली/देहरादून। इतिहास गवाह है कि कृषि के क्षेत्र में जिन्होंने भी अपनी शिक्षा पूरी की है, अर्थात इस विषय में उच्च डिग्री हासिल की है, वे सभी सिर्फ व सिर्फ सरकारी नौकरी या अन्य अनुसंधानिक संस्थाओं के कार्यालयों में नौकरी का इन्तजार करते रहे और उन्हे देर-सबेर नौकरी में सफलता भी हासिल हुई। यहां जिनका जिक्र किया जा रहा, उन्होंने अपनी ही पढाई के अनुरूप रचनात्मक कार्य आरम्भ किया है। वह भी कागज कलम से इतर अक्षरो में जो उन्होंने लिखा पढ़ा व सीखा है उसे ही जमीनी रूप दिया गया है।
दरअसल यहां बात कर रहे हैं कोटद्वार के हल्दूखाता में रहने वाली माधुरी डबराल की। डबराल दम्पती न कि सिर्फ जैविक खाद के बारे में लिखते, पढ़ते और बोलते हैं, बल्कि वे जैविक खाद बनाकर किसानों को उपलब्ध करवाते है और बाजार में भी बेचते है। जो कि उनके द्वारा तैयार यह ‘केंचुआ खाद’ अब एक ब्राण्ड बन चुका है। बता दें कि माधुरी डबराल ने हे.न.ब. गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर गढवाल से पर्यावरण विज्ञान से एमएससी किया है। तत्पश्चात कृषि विकास में जैविक खाद यानि ‘वर्मी कम्पोस्ट’ पर शोध भी किया है। माधुरी देश की पहली महिला है, जिनका शोध ‘वर्मी कम्पोस्ट’ और जैविका कृषि पर आधरित है।
पढाई पूरी करने के बाद परिवार के लोग अब इन्तजारी में थे कि माधुरी सरकारी सेवा में किसी न किसी बड़े ओहदे पर बैठने वाली है। यह स्वाभाविक भी था, किंतु माधुरी को वही करना था, जो उसने अब तक कागजों पर लिखकर, पढ़कर सीखा है। उसे जमीनी रूप देना था। तब तक उत्तर प्रदेश से अलग उत्तराखण्ड राज्य बन चुका था और चहुंओर यही नारा लगाया जा रहा था कि राज्य को ‘जैविक प्रदेश’ बनाना है।
इसी को केन्द्र में रखकर माधुरी ने अपने पति के साथ मिलकर कोटद्वार के हल्दूखाता में ‘केचुआ खाद’ अर्थात ‘वर्मी कम्पोस्ट’ बनानी आरम्भ कर दी। इस कार्य को आरम्भ करने के दौरान उनका काफी विरोध होने लगा। मजाक बनाई गई आदि आदि।
विरोध इस मायने में कि इतनी उच्च शिक्षित युवती अब गोबर बनायेगी, गोबर बेचेगी बगैरह? कुछ ने तो सामने ही कह दिया कि क्या फायदा तुम्हारे इतनी पढाई लिखाई करने से। जब गोबर ही ढोना था, तो स्कूल ही क्यों गई! ऐसे तमाम सवाल माधुरी के सामने लगभग 6 वर्ष तक खड़े रहे। माधुरी के पास इन सवालों का जबाव इसलिए नहीं था कि उनकी जैसी पढ़ाई करने वाले लोग लगभग सरकारी नौकरी पा चुके थे और अच्छी तनख्वाह लेने लगे थे।
2002 में आरम्भ किया गया ‘केंचुआ खाद’ यानि ‘वर्मी कम्पोस्ट’ बनाने के कार्य में किसी ने भी उनके इस कार्य को स्वीकार नहीं किया। फलत: कुछ कुछ उत्तराखण्ड और पश्चिम यूपी में उनके द्वारा तैयार ‘वर्मी कम्पोस्ट’ किसानो तक पहुंचाने लगी। जब 2002 में उत्तराखण्ड सरकार ने नारा दिया था कि वह राज्य को जैविक प्रदेश बनायेंगे तो तत्काल डबराल दम्पति ने सोच लिया था कि जैविक प्रदेश के लिए जैविक खाद का होना अति आवश्यक है। इन दिनों माधुरी अकेली महिला थी, जो ‘केंचुआ खाद’ बनाती थी। कह सकते है कि इस कार्य को स्थापित करने में माधुरी को छ: वर्ष लग गये।
माधुरी के लिए मुश्किल यह था कि उत्तराखण्ड में ‘वर्मी कम्पोस्ट’ बनाने का कोई न तो प्रशिक्षण होता था और न ही यहां कोई ऐसा प्रशिक्षक था, जो ‘वर्मी कम्पोस्ट’ बनाने की प्रक्रिया उन्हें बता दे। बस उन्हें किताबी जानकारी तो थी, पर प्रयोगात्मक रूप से इस कार्य को कैसे अमलीजामा पहनाया जाये। यह अहम सवाल उनके सामने खड़ा था। दिलचस्प यही है कि माधुरी ने अपनी किताबी ज्ञान को यहां बखूबी इस्तेमाल किया। पहले पहल माधुरी ने सहारनपुर और महाराष्ट्र से केंचुआ प्राप्त किये और ‘वर्मी कम्पोस्ट’ बनाना आरम्भ कर दिया। जब मांग बढने लग गई तो अपने ही यूनिट में केंचुआ तैयार किया गया। साल 2014 में ‘वर्मी कम्पोस्ट’ को तब पर लगे जब प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में यह बताना आरम्भ किया कि जैविक खेती करने के लिए लोगों को ‘वर्मी कम्पोस्ट’ यानि केंचुआ खाद बनानी चाहिए या इस्तेमाल करनी चाहिए। इस भाषण के बाद उनके ‘वर्मी कम्पोस्ट’ कार्य को पंख लग गए।
राज्य और राज्य से बाहर ‘वर्मी कम्पोस्ट’ की मांग तेजी से बढने लग गई। यही नहीं माधुरी के पिछले 20 सालों के कई अनुभव प्रेरित भी करते है। माधुरी ने अपने पति के साथ मिलकर कुछ दिनों के लिए एक स्वयं सेवी संस्था का गठन भी किया और पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, टिहरी व उत्तरकाशी के गांवों में 2002 से अब तक 800 परिवारों को ‘वर्मी कम्पोस्ट’ बनाने का सफल प्रशिक्षण दिया है। परिणाम स्वरूप इसके लोगों में जैविक खेती करने की प्रवृति पुन: विकसित हुई। इस तरह वर्तमान में उनके पास ‘वर्मी कम्पोस्ट’ की मांग ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों तरह से बढ़ रही है। इसके लिए बाकायदा उन्होंने ‘चरेख इण्डिया’ नाम से एक कम्पनी पंजीकृत करवाई है, जो ‘वर्मी कम्पोस्ट’ की मार्केटिंग आदि का कार्य करती है।
माधुरी ने बताया कि उनके पास छ: लोग नियमित कार्य करते हैं, जबकि अपरोक्ष रूप से उनके साथ सैकड़ों लोग जैविक खाद बनाने व मार्केटिंग का कार्य करते हैं। फलस्वरूप उनकी कम्पनी एक वर्ष में ‘वर्मी कम्पोस्ट’ से एक करोड़ के लगभग का कारोबार करती है। उनके यहां से तैयार ‘वर्मी कम्पोस्ट’ को उद्यान आदि कृषि के लिए लोग दूर-दूर तक ले जाते हैं।
कुल मिलाकर माधुरी का शाब्दिक अर्थ शोभ, सुन्दरता और मिठास ही है। इन तीनो अर्थो को अपने नाम के अनुरूप आत्मसात किया है माधुरी डबराल ने। 20 बरस के सफर में उनके इस नेक कार्य से लोग खूब मिठास पा रहे है, हर किसान का खेत हर वक्त सुन्दर और शोभायमना दिखाई देता है। अर्थात ‘वर्मी कम्पोस्ट’ की महत्ता को भी माधुरी ने इन्हीं अर्थो में समझाने का प्रयास किया है।