तो क्या हरदा के साथ होगा ‘यूज एंड थ्रो’ !

तो क्या हरदा के साथ होगा ‘यूज एंड थ्रो’ !

चुनाव परिणाम आने में अभी भले ही 23 दिन बचे हों, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मुख्यमंत्री पद को लेकर अपनी दिली इच्छा फिर जता कर कांग्रेस हाईकमान को संदेश दे दिया है। चुनाव से पहले ही मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर उत्तराखंड में स्वयं को आगे किए जाने की पैरवी करते रहे रावत की मंशा पार्टी ने पूरी नहीं की। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने से पहले ही रावत ने दबी जुबान मे इच्छा जाहिर कर पार्टी के भीतर भी राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है।

हालांकि यह भी सच है कि उत्तराखंड में मृतप्राय सी कांग्रेस और कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने में रावत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।चुनाव अधिसूचना जारी होने से पहले ही वह अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में भ्रमण और सभाओं के माध्यम से जहां भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहे, वहीं जमीनी कार्यकर्ताओं में जोश भी भरते रहे।

उत्तराखंड की पांचवीं विधानसभा के चुनाव के लिए बीते सोमवार मतदान हुआ है। मतदान के बाद कांग्रेस के खेमे में खुशी दिखाई दे रही है। पार्टी के सभी दिग्गज नेता सरकार बनने का दावा कर रहे हैं। इस दावे के बीच पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस की प्रदेश चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष रहे हरीश रावत ने मुख्यमंत्री पद की इच्छा जताकर खलबली मचा दी है। दरअसल, हरीश रावत चुनाव से काफी पहले से ही उत्तराखंड में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के पक्ष में रहे हैं। पार्टी में रावत समर्थकों ने भी गाहे-बगाहे यह मांग उठाई।

यह अलग बात है कि पार्टी ने उनकी मांग का सीधे तौर पर समर्थन नहीं किया। कांग्रेस हाईकमान ने सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लडऩे का समर्थन तो किया, लेकिन प्रदेश में चुनाव की बागडोर हरीश रावत  को सौंपने में देर नहीं लगाई। दरअसल पार्टी में पार्टी के भीतर एक गुट किसी भी मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में चुनाव में आगे किए जाने के विरोध में रहा है। पार्टी हाईकमान ने चुनाव में इस विवाद को तूल न देने और सभी को एकजुट रखने को संतुलन साधने की रणनीति पर कदम बढ़ाए। बाद में सामूहिक नेतृत्व में चुनाव की पार्टी लाइन के साथ रावत खड़े दिखाई दिए।

अब हरीश रावत ने जिस तरह मुख्यमंत्री बनने अथवा घर में बैठने की बात कही है, उसे पार्टी हाईकमान को संदेश देने की उनकी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। चुनाव से ऐन पहले टिकट तय किए जाने की कवायद की दौरान पार्टी के भीतर उनके नेतृत्व को चुनौती मिलने की सूरत में रावत तीखे तेवर दिखा चुके हैं। हाईकमान ने तुरंत रावत के गिले-शिकवे दूर करने में देर नहीं लगाई। मुख्यमंत्री नहीं बनाने की स्थिति में घर बैठने के उनके वक्तव्य को भी पार्टी के भीतर एक तबका दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर देख रहा है।

कांग्रेस की सरकार बनने और मुख्यमंत्री बनने की इच्छा पूरी होने से पहले ही हरीश रावत ने एक और वायदा कर दिया है। उन्होंने कहा कि सत्ता में आने पर वह घस्यारी सम्मान पेंशन प्रारंभ करेंगे, चाहे 500 रुपये से ही इसे शुरू करना पड़े। इस वायदा के पीछे की वजह उन्होंने अपनी माता को बताया। उन्होंने कहा कि जब वह मुख्यमंत्री थे तो जब भी मां का स्मरण कर उनके दर्शन करते थे। उन्हें लगता था कि उनकी मां उनसे गरीबों के लिए कुछ करने को कह रही हैं। उन्होंने कहा कि वह नहीं जानते की नियति ने उनके लिए क्या रास्ता निर्धारित किया है, मगर वह मां को घस्यारी सम्मान पेंशन समर्पित करेंगे।

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