दून विनर/देहरादून
पंजाब कांग्रेस का घमासान शांत करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कांग्रेसी दिग्गज पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की इंटरनेट मीडिया में की गई एक पोस्ट ने कांग्रेस में दून से दिल्ली तक बड़ी हलचल पैदा कर दी है। रावत अकसर इंटरनेट मीडिया के जरिये की गई अपनी पोस्ट को लेकर चर्चाओं में रहते हैं, लेकिन इस बार जब पानी उनके सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो वह तल्ख तेवरों के साथ आगे आ गए।
हरीश रावत उत्तराखंड के साथ ही कांग्रेस के दृष्टिकोण से राष्ट्रीय राजनीति का बड़ा चेहरा हैं। वर्ष 2016 में कांग्रेस में हुई बड़ी टूट के बाद वह राज्य में पार्टी के एकमात्र बड़े नेता के रूप में स्थापित तो हो गए, लेकिन टूट के बाद पार्टी अत्यंत कमजोर हो गई। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस महज 11 सीटों पर सिमट गई और रावत स्वयं दो सीटों से चुनाव हार गए।
फिर हाईकमान ने उन्हें केंद्र की राजनीति में सक्रिय कर महासचिव जैसे बड़ी जिम्मेदारी देते हुए असम का प्रभारी बना दिया। इसके बाद उन्हें पंजाब जैसे महत्वपूर्ण राज्य का प्रभार सौंपा गया। पंजाब कांग्रेस में चले घमासान के समाधान में उन्हीं की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रही।
रावत के तेवरों में जो तीखापन बुधवार को सामने आया, उसकी पटकथा पिछले लगभग एक साल से लिखी जा रही थी। कांग्रेस हाईकमान ने लगभग सवा साल पहले युवा नेता देवेंद्र यादव को प्रदेश प्रभारी बनाकर भेजा।
इसके बाद से ही रावत की घेराबंदी शुरू हो गई। यद्यपि यादव के लिए रावत जैसे कद्दावर नेता की अनदेखी संभव नहीं थी, लेकिन राज्य में कांग्रेस के दूसरे धड़े से उनकी बढ़ती नजदीकी को सबने महसूस किया। इस धड़े में शामिल तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष व वर्तमान नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह के साथ ही तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष स्व इंदिरा हृदयेश धीरे-धीरे पार्टी के अंदर रावत के लिए चुनौती बनने लगे।
इस बीच कुछ महीने पहले नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश का निधन हो गया। तब हरीश रावत ने हाईकमान तक अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर अपने नजदीकी गणेश गोदियाल को उत्तराखंड कांग्रेस का अध्यक्ष बनवा दिया।
प्रीतम सिंह को ठीक चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष पद से हटकर नेता प्रतिपक्ष का दायित्व संभालना पड़ा। हाईकमान ने पार्टी में गुटीय संतुलन बनाने के लिए उत्तराखंड में चार कार्यकारी अध्यक्ष भी नियुक्त कर दिए।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद हालांकि सतह पर शांति रही, मगर अंदरखाने मतभेद लगातार बढ़ते रही। रावत लगातार स्वयं को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की बात उठाते रहे, लेकिन हाईकमान ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। अधिकांश मौकों पर प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव ने इसे खारिज कर सामूहिक नेतृत्व में ही चुनाव लड़ने की बात कही।