दून विनर संवाददाता
दुनिया इस वक्त रूस और यूक्रेन युद्ध की आग में झुलस रही है। इस युद्ध के परिणामों के बारे में आज कोई नहीं जानता पर ये सभी मानते हैं कि युद्ध में विनाश अवश्यम्भावी है, इसीलिए शांतिकामी व जनतांत्रिक पद्धति में यकीन रखने वाले दुनियाभर के लोग युद्ध के विरोध में खड़े हैं। रूस
द्वारा अपने पड़ोसी देश यूक्रेन पर 24 फरवरी को सैन्य हमला शुरू करने के बाद पिछले पांच दिनों में रूसी फौजें राजधानी कीव की ओर बढने की लगातार कोशिश कर रही हैं, वहीं यूक्रेन की फौजें इस आक्रमण के खिलाफ लड़ रही हैं। इस बीच यूक्रेन के आंतरिक मामलों के मंत्रालय ने कहा है कि रूस के सैन्य आक्रमण में उसके 352 नागरिक मारे गए हैं जिनमें 14 बच्चे शामिल हैं। इस युद्ध ने आसपास के देशों सहित दुनिया के लोगों की चिंता बढाई है। कोरोना जैसी महामारी ने दुनिया के अधिकांश देशों की आर्थिक हालत पहले ही खराब की हुई है ऐसे में युद्ध के कुछ और दिनों जारी रहने की हालत में इसका अन्य देशों में भी गहरा दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका है। इस वक्त दुनिया के कई देशों के लिए सबसे ज्यादा चिंता यूक्रेन में फंसे अपने नागरिकों की सुरक्षित स्वदेश वापसी की है। भारत सरकार ने अपने नागरिकों की जल्दी और सुरक्षित वापसी के लिए यूक्रेन और रूस दोनों से बातचीत की है, कई भारतीय छात्र स्वदेश वापस पहुंच चुके हैं।
बीते साल जब जनवरी में यूक्रेन के राष्ट्रपति ब्लादिमिर जलेंस्की ने संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति जो बाइडन से उनके देश को नाटो की सदस्यता का आग्रह किया तभी से पुतिन ने यूक्रेन के मौजूदा राष्ट्रपति के खिलाफ अपना रुख और भी कड़ा कर लिया है। उन्होंने यूक्रेन की मौजूदा सरकार पर नरसंहार करने और नाजीवाद को पालने-पोषने का आरोप लगाया है, हालांकि पश्चिमी देश इन आरोपों को दुनिया की नजर में धूल झोंकन वाला बता रहे हैं। रूस ने पिछले साल युद्धाभ्यास कहकर यूक्रेन की सीमा के नजदीक अपनी सैन्य शक्ति बढाने का काम शुरू कर दिया था। दिसम्बर 2021 में रूस ने नाटो और संयुक्त राज्य के सामने अपनी सुरक्षा को लेकर मांगे प्रस्तुतज की थी। रूस का कहना था कि यूक्रेन को नाटो में नहीं लिया जाना चाहिए और पूर्वी यूरोपीय देशों से नाटो को अपनी सेनाएं वापस हटानी चाहिए। नाटो के देशों ने इन मांगों को सिरे से खारिज कर दिया और रूस के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाने की धमकी दी। इसके बाद रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव और बढ गया है।
नाटो को रूस क्यों मानता है खतरा
यूक्रेन और रूस के विवाद और युद्ध में नाटो सबसे ज्यादा चर्चा में है। इसका पूरा नाम नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन है। नाटो रूस की ओर से किए गए हमले का सीधा विरोध कर रहा है। रूस के यूक्रेन पर दबाव बनाने और चढाई करने से नाटो इतना नाराज है कि वो यूक्रेन के समर्थन में रूस पर हमला करने के लिए भी तैयारी करता हुआ लगता है। वहीं, रूस भी नाटों के खिलाफ है और माना जाता है कि इस युद्ध के कारणों में नाटो भी सबसे अहम है। कहा जाता है कि रूस नाटो को पंसद नहीं करता है, लेकिन सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्यों है। दरअसल नाटो कुछ देशों की सरकारों के बीच मिला जुला मिलिट्री संगठन है, जिसके फैसले संयुक्त राज्य अमेंरिका के रुख पर काफी निर्भर करते हैं। इस संगठन का मकसद साझा सुरक्षा नीति पर काम करना है। ऐसे में अगर किसी नाटो देश पर कोई दूसरा देश हमला करता है तो पूरे नाटो के देश प्रभावित देश के साथ खड़े हो जाते हैं और उसकी मदद करते हैं। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब नाटो बनाया गया तो उस वक्त पश्चिम के देश नाटो से जुड़े थे, लेकिन यह धीरे-धीरे यूरोप में पूर्व की तरह बढ़ रहा है, जो रूस को रास नहीं आ रहा है।
यहां यूक्रेन की जमीन पर नाटो की फोर्स भी होगी, वहीं, अगर रूस के करीब नाटो की फोर्स पहुंच जाती है तो रूस के लिए मुश्किल हो सकती है, क्योंकि, रूस का मानना है कि नाटो में जितने देश शामिल होंगे, उतना ही अमेरिका शक्तिशाली हो जाएगा, जिस वजह से विवाद हो रहा है। नाटो के जरिए संयुक्त राज्य पूर्व की तरफ आगे बढ़ रहा है और सोवियत संघ पहले ही 15 देशों में विभाजित होने से कमजोर हो गया है। बाल्टिक गणराज्य के लिथुआनिया, लातविया, एस्टोनिया और कभी सोवियत संघ के खेमे में रहे पोलैंड व रोमानिया आदि कुछ देश नाटो में पहले ही शामिल हो गए हैं। ऐसे में रूस चाहता है कि यूक्रेन नाटो में शामिल ना हो और उसके बॉर्डर तक नाटो की सेना ना आ सके। इस वजह से रूस की ओर से नाटो का विरोध किया जा रहा है। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद अलग देश के तौर पर अस्तित्व में अपने के बाद से यूक्रेन पश्चिमी यूरोप के साथ क़रीबी रिश्ते बनाना चाहता है किन्तु रूस को लगता है कि यूक्रेन का पश्चिम के पाले में जाना उसके लिए ठीक नही होगा। यही कारण है कि यूक्रेन पश्चिम और रूस की खींचतान के बीच फंसा हुआ है।
यूक्रेन के तीन दशक का इतिहास
करीब 4.55 करोड़ की आबादी वाले यूरोपीय देश यूक्रेन में एक ओर उपजाऊ मैदानी इलाक़ा है तो दूसरी ओर पूर्व में बड़े उद्योग हैं। यहां के पश्चिमी हिस्से का यूरोपीय पड़ोसियों, ख़ासकर पोलैंड से ज़्यादा नजदीकी रिश्ता है। यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से में राष्ट्रवादी भावना भी ज़्यादा है, वहीं यूक्रेन में रूसी भाषा बोलने वाले अल्पसंख्यक भी खासकर पूर्वी इलाके में अच्छी ख़ासी तादाद में हैं। 90 के दशक में लगभग ढाई लाख क्रीमियाई तातार और उनके वंशज सोवियत संघ के विघटन के बाद क्रीमिया लौट आए। ये वही लोग थे जिन्हें स्टालिन के समय निर्वासित किया गया था। 1994 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में लियोनिद कुचमा ने लियोनिद क्रावचुक को हराकर राष्ट्रपति का पद हासिल किया। उन्होंने पश्चिम और रूस के साथ संतुलन बनाने की नीति अपनाई।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में रूस-यूक्रेन मामले में सीधे-सीधे किसी की भी खिलाफत नहीं की। आपसी विवाद को दूर करने के लिए कूटनीतिक रास्तों को तवज्जो देने पर भारत का जोर रहा। मौजूदा दौर में रूस और संयुक्त राज्य दोनों से भारत के बेहतर संबंध हैं। ऐसे में एक संतुलित एप्रोच सही कदम माना जा रहा है। इसके अलावा भारत की त्वरित चिंता यूक्रेन में फंसे अपने हजारों लोगों की सुरक्षित वापसी को लेकर भी ज्यादा है। यूक्रेन में भारत के 20 हजार के करीब लोग रहते हैं जिनमें 18 हजार से अधिक डॉक्टरी और इंजीनियरिंग की शिक्षा के लिए गए हैं। उत्त्राखंड के 200 से अधिक लोग यूक्रेन में हैं जिनमें ज्यादा छात्र हैं। ज्यादातर वहां एमबीबीएस की पढाई कर रहे हैं। हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, केरल, उप्र, कर्नाटक, जम्मू एवं काश्मीर के छात्र भी यूक्रेन में रह रहे हैं। युद्धग्रस्त क्षेत्र से सुरक्षित जगह पर पहुंचना इनकी पहली प्राथमिकता है। भारत सरकार इसके लिए सम्पर्क बनाए हुए है। वायु सेवा द्वारा उन्हें वापस लाने का काम चल रहा है।