शिव को समर्पित विशेष रात्रि को हम अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा को दृढ़ता प्रदान करते है। शिव को सभी देवताओं के द्वारा महादेव की संज्ञा से विभूषित किया गया है। यह वही महादानी शिव है जिन्होने कुबेर को लक्ष्मी का खजांची नियुक्त किया। यह वही शिव है जिनकी आराधना राम ने की और रामेश्वर ज्योतिर्लिंग एवं धाम की स्थापना हुई। यह वही शिव है जिनकी पांडवों ने आराधना की और शिव सदैव केदारनाथ में विराजमान हो गए। महादेव, लिंगराज रूप में विष्णु के साथ यानि हरि-हर स्वरूप में उड़ीसा में विराजते है। यह वही शिव है जो सती के प्रेम में तांडव नृत्य करते है, वर्षो तक अपनी पत्नी की प्रतीक्षा करते है। यह वही शिव है जो अर्धनारीश्वर स्वरूप में शिव-शक्ति के अद्वितीय रूप की भावना को उजागर करते है। शिव ही तो गजानन को प्रथम पूज्य बनाते है। महांकाल की आराधना द्वारा तो व्यक्ति मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कर सकता है। शिव ही तो है जिन्होने कालकूट विष को ग्रहण कर, सभी को चिंता मुक्त किया। कितने भोले है शिव जो भस्मासुर को उसकी मनोकामना के अनुरूप वरदान दे दिया। कितने सतचरित्र है शिव जो अपनी बारात में भी सरल एवं सच्चे रुप में प्रत्यक्ष हुए। भूत-पिशाचों को जब कहीं आश्रय न मिला, तो शिव ने उन्हें भी अपने परिवार में संयुक्त कर लिया। ऋषि मार्कन्डेय को चिरंजीवी होने का आशीर्वाद भी शिव कृपा से ही मिला।
महाशिवरात्रि पर हम शिवशक्ति की आराधना करते है। गृहस्थ जनों के लिए शिव परिवार एक आदर्श रूप है। शिवशक्ति के विवाह में शिव ने पार्वती की अनेकों रूप में परीक्षा ली, परन्तु माँ ने अपनी अटूट श्रृद्धा और निष्ठा शिव के प्रति न्यून न होने दी। माँ ने शिव के सच्चे स्वरुप को पहचान लिया और उनके प्रति समर्पित हो गई। गृहस्थ जीवन की श्रेष्ठता तो शिव-पार्वती की शक्ति को समझने में निहित है। शिव परिवार तो एक अनुकरणीय परिवार है, जो कार्तिक और गणेश जैसे पुत्रों से सुशोभित है। यदि आप शिव परिवार का सूक्ष्म विश्लेषण करेंगे तो देखेंगे कि शिव का वाहन नन्दी बैल, माता का वाहन सिंह, एकदन्त गजानन का वाहन मूषक और कार्तिकेय का वाहन मयूर, शिव के गले में सर्प विद्यमान है। सर्प, चूहा, मोर यह सब जातिगत दृष्टि से परम शत्रु की श्रेणी में आते है, वहीं सिंह और बैल भी उसी श्रेणी में आते है। पर शिव परिवार में तो बस सौहाद्र और प्रेम का भाव ही परिलक्षित होता है।
शिव की सहजता कितनी अनोखी है, सभी मंदिरों में शयन, भोग एवं श्रृंगार के अनेकों नियम है परंतु शिव मंदिर में तो समय की बाध्यता ही नहीं है। पूजा के लिए किसी संसाधन की उपलब्धता नहीं चाहिए। जल सरलता से सर्वत्र उपलब्ध है और शिव को जलधारा सर्वाधिक प्रिय है। शिव की सरलता की उत्कृष्टता तो इससे भी परिलक्षित होती है कि वे सबसे फलदायी पूजा और आराधना पार्थिव शिवलिंग की मानते है, अर्थात भक्त मिट्टी से शिवलिंग का निर्माण कर मिट्टी में ही विलीन कर दे। विष को अपने भीतर रखकर भी स्वयं को उद्वेलित न होने देना एवं ध्यान में सदैव लीन रहना तो शिव की ही विशेषता हो सकती है। त्याग की चरमसीमा भी शिव ही दर्शाते है। कैलाश पर निवास, व्याघ्रचर्म, सर्पमाला, शरीर पर भस्म लगाकर आप यह सिद्ध करते है कि संसार में भोग पदार्थो में आनंद नहीं है बल्कि आत्मानंद से श्रेयस्कर कुछ भीं नहीं।
दशानन रावण को भी तीनो लोको पर विजय होने का आशीर्वाद शिव ने ही दिया था। शिव की शक्ति का ज्ञान तो हमें तब भी होता है जब रावण ने कैलाश को उठाने का प्रयास किया तो आपने सिर्फ पैर के अंगूठे से उसे दबा कर भयभीत कर दिया। जिस गंगा के प्रवाह को देखकर हम आश्चर्यचकित हो जाते है उन्हें तो आपने अपनी जटाओं में कैद कर फिर उनमें स्थान दिया है। शिव ने कामदेव को तत्क्षण भस्म कर दिया था। शिव के अपमान और अवहेलना के कारण ही दक्ष प्रजापति के यज्ञ का विध्वंस हुआ। शिव ऐसे देव है जिनकी पूजा पाताललोक, मृत्युलोक और देवलोक में भी होती है।
शिव को समर्पित अनेक स्तुति है, जैसे शिव तांडव स्तोत्र, रुद्राष्टकम, बिलवाष्टकम, वेदसार शिव स्तव:, शिव पंचाक्षर स्तोत्र, श्री पार्वती वल्लाभष्ट्कम, शिवाष्टक, चन्द्रशेखराष्ट्कम, लिंगाष्टकम, शिव मानस पूजा, द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र आदि, पर उन सभी में सबसे श्रेष्ठ शिव आराधना के लिए शिव महिम्नस्तोत्र को बताया गया है। इस स्तोत्र में ही उल्लेखित है कि शिव से श्रेष्ठ कोई देव नहीं है एवं शिव महिम्नस्तोत्र से श्रेष्ठ शिव की कोई स्तुति नहीं है। इस स्तोत्र की रचना पुष्पदंत नाम के एक गंधर्व ने की थी। आशुतोष को अतिशीघ्र प्रसन्न किया जा सकता है और शिवरात्रि तो इसके लिए श्रेष्ठ दिन है।
महाशिवरात्रि पर हम भी भक्ति की अविरल धारा को शिवशक्ति से प्राप्त कर अपने जीवन को नवीन दिशा प्रदान कर सकते है। तो आइयें हम इस शिवरात्रि शिवशक्ति का आशीर्वाद प्राप्त कर जीवन में नवीन आशा, उमंग, उत्साह एवं नवीन आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करें। शिवशक्ति की सत्ता तो जीवन की पूर्णता को दर्शाती है, साथ ही शिवशक्ति का अर्द्धनारीश्वर स्वरुप जीवन में पुरुष और स्त्री के समान महत्त्व को उजागर करता है। शिवशक्ति का अनुसरण कर जीवन में हम आनंद और ज्ञान की धारा भी प्रवाहित कर सकते है। कभी भी जीवन में शुष्कता न आने दे, अर्थात आनंद को समाप्त न होने दे, क्योंकि शिव तो सदैव आनंद स्वरुप में ही विद्यमान रहते है।
– रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)