“पिता की अनुपम छाया”

“पिता की अनुपम छाया”

माँ की ममता और पिता की कठोरता जीवन के दो महत्वपूर्ण नियामक है। प्रारम्भ में हमें पिता के वक्तव्य बड़े साधारण प्रतीत होते है, परन्तु समयोपरांत उन वक्तव्यों में छिपी गहराई की थाह ज्ञात होती है। माता की छत्रछाया और गर्भ में बालक सुरक्षित होता है, परन्तु जो अदृश्य सुरक्षा कवच उसके दिन-रात की सुरक्षित रुपरेखा निर्धारित करता है वह है पिता। माँ की चिंताएँ दृश्यरूप में प्रतिपल अनुभव होती है, परन्तु पिता के मन की कशमकश को पिता स्वयं ही समझ सकता है।

जिस प्रकार सागर की गहराई और लहरों की तीव्रता की थाह पाना मुश्किल है, उसी प्रकार पिता के मर्म को समझना भी बहुत मुश्किल है। माता के संरक्षण एवं छाँव के पीछे पिता का सुरक्षा कवच ही महत्वपूर्ण होता है। पिता की कठोरता तो नारियल के समतुल्य ही है, अंदर कोमल स्वभाव और बालक के उज्जवल भविष्य के लिए बाहर कटुता के वचन।

वह पिता ही तो है जो बचपन से ही बालक को गोदी में उठाकर और कंधे पर बैठाकर ऊंचाइयों की ओर अग्रसर होना सिखाता है। वह अपने शीर्ष पर बैठाकर उसे सफलता और उन्नत आकाश की दिशा प्रदान करता है। जिद के लिए डाँटना और जिद को पूरी करना यह निश्छल स्वाभाव तो पिता का ही हो सकता है। छोटी-छोटी खुशियों को सँजोने में पिता का दिन-रात का चक्र कब व्यतीत होता है कुछ ज्ञात नहीं होता। आर्थिक सामंजस्य, घर-परिवार का भरण-पोषण, मान-प्रतिष्ठा और छोटी से छोटी जरुरत का ध्यान इतनी सहजता एवं सरलता से पिता ही कर सकता है। वह अपने मन के अंदर की उथल-पुथल परिवारजन को महसूस नहीं होने देता। पिता के कारण ही तो माँ को हिम्मत प्राप्त होती है बालक को अपर स्नेह प्रदान करने की। बालक हौसलों की उड़ान तो पिता के कंधों पर ही तय करता है।

दो अक्षर से बना है पिता शब्द, पर उसका होना बढ़ाता जीवन में सफलता का कद।
पिता का कर्त्तव्य निभाना नहीं है आसान, प्रतिपल बाहरी और भीतरी परिस्थितियों से करना होता है घमासान।

हमारे ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक ग्रह कहा गया है क्योंकि जहाँ सूर्य विद्यमान होता है वह स्थान प्रकाश से देदीप्यमान हो जाता है और जब अस्त होता है तो अंधकार व्याप्त हो जाता है। परिवार में भी पिता उजाले का प्रसार करता है, इस उजाले में साहस, अनुभव, ज्ञान एवं कठोर समझाइश निहित होती है जो जीवन के अंधकार का विनाश कर देता है और हमें अपने पिता से ओज, तेज और साहस प्राप्त होता है।सफलता का चरम हमें प्राप्त होता है, पर त्याग एवं परिश्रम की सीढ़ी सदैव वे चढ़ते है। समय व्यतीत होने पर ज्ञात होता है कि स्वयं की कमाई पर जिद करने का आनंद कुछ नहीं होता। पिता के सम्मुख वो जिद और उसके पूर्ण होने का आनंद अत्यंत न्यारा होता है। पिता का व्यक्तित्व शब्दों से परे है। वह भूमिका अन्यंत्र कोई रिश्ता नहीं निभा सकता।

पिता की सच्चाई, गहराई और जीवन के प्रति उनकी गूढ़ समझ अकथनीय है। पिता की सीख सदैव एक कड़वी सच्चाई प्रतीत होती है। जीवन की महकी सी बगियाँ में पिता के पसीने की बूँद निहित होती है। पिता के सरल वाक्य जीवन की नींव के निर्धारक होते है। उनके संघर्षों के कुछ सरल वाक्य इस प्रकार है: “पढाई-लिखाई में मन लगाओं समय बार-बार नहीं मिलता”, “खुद के पैरो पर खड़ा होकर दिखाओं”, “खर्चा सोच-समझकर करों पैसे पेड़ों पर नहीं लगते”, “बचपना छोड़ों अब तो संभल जाओं”, “दोस्ती यारी सोच समझकर करों”, “मैं यह सबकुछ तुम्हारी भलाई के लिए बोल रहा हूँ”, उनकी सीख में उनकी गलतियाँ और अनुभव दोनों ही समाविष्ट होते है। वे एक सच्चे पथ प्रदर्शक है। जो चाहते है कि बालक प्रतिकूल परिस्थितियों में ना उलझे। वह अनुकूलता के मार्ग पर निरंतर प्रशस्त हो। पिता की सुव्यवस्था परिवार को खुशहाल बनाती है। हर त्यौहार की सजावट और ख़ुशी उनके खून पसीने की कमाई होती है। समय और जिम्मेदारियों का बंधन वह पिता ही पूर्ण करता है। बाहरी वातावरण को समझना और आतंरिक वातावरण के अनुरूप परिस्थितियों से तालमेल बैठाना पिता के द्वारा ही संभव होता है। पिता की जीवन पर्यन्त भूमिका शब्दों से परे है।

पिता तो परिवार के लिए है साहस का पर्याय, वह सदैव करता जिम्मेदारियों और कर्तव्यों से मूक न्याय।
पिता की कठोरता में सच्चाई होती निहित, डॉ. रीना कहती, जीवन की खुशियाँ उसमें होती समाहित।

डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)

All Recent Posts Latest News उत्तराखण्ड