उत्तराखंड में बढ़ रहा बिजली संकट

उत्तराखंड में बढ़ रहा बिजली संकट

तापमान बढने के साथ आने वाले दिनों में देश में बिजली संकट बढ सकता है। उत्तराखंड सरकार हर दिन पन्द्रह करोड़ की बिजली खरीद रही है, जबकि इस वक्त उत्तराखंड से अन्य प्रदेशों की बिजली की कमी को कम करने में भूमिका निभाने की अपेक्षा की जाती है। उत्तराखंड की आर्थिकी के लिए यह बड़ा योगदान होता। सरकारों की अदूरदर्शी नीति से यह हालत तो आनी ही थी।
संवाददाता/देहरादून
तापमान बढऩे के साथ आने वाले दिनों में देश में बिजली संकट बढ सकता है। देश में बिजली की इस कमी के लिए कोयले की मांग और आपूर्ति के बीच बढ रहे अंतर को प्रमुख वजह माना जा रहा है। वर्तमान में देश में बिजली उत्पादन सेक्टर में कोयला आधारित बिजली उत्पादन 52 प्रतिशत के करीब है और कई राज्यों में कुल बिजली उत्पादन का 70 से 75 प्रतिशत तक उत्पादन कोयला आधारित संयंत्रों से हो रहा है। कोयले की आपूर्ति में कमी होने की वजह से पिछले साल अक्टूबर में भी बिजली संकट गहरा गया था पर उसके बाद तापमान के घटते जाने से बिजली की मांग में कमी आने पर विद्युत संयंत्रों पर उत्पादन बढाने का दबाव कम हुआ। ताजा हालत में आने वाले दिनों में गर्मी बढने से एयरकंडिशनर्स, रेफ्रिजरेटर्स में विद्युत खपत में और बढोतरी होने से बिजली की मांग और बढेगी जिसके चलते घंटों बिजली कटौती और कम बोल्टेज की समस्या से जूझना पड़़ सकता है। बिजली की कमी का बुरा असर औद्योगिक गतिविधियों पर भी पड़ेगा। कोरोना लॉकडाउन की मार से खस्ता हाल में पहुंची अर्थव्यवस्था में पिछले कुछ समय से अच्छे संकेत आ रहे हैं, पर बिजली आपूर्ति की समस्या बढने पर अर्थव्यवस्था की गति पर भी ब्रेक लग सकता है।
देश के कई राज्यों में बढा बिजली संकट
उत्तराखंड सहित उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, गुजरात, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, झारखंड और हरियाणा जैसे राज्यों में बिजली संकट बढ़ रहा है। खबर है कि उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े संयंत्र अनपरा में केवल चार से पांच दिन का कोयला बचा है जबकि 24 दिन के लिए स्टॉक को सही माना जाता है। बताया गया है कि ज्यादातर राज्यों में रेल के जरिए कोयले की आपूर्ति में पर्याप्त सुधार होने में हो रही देरी की वजह से स्थितियां और विकट हो रही हैं। इसके साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमतों में तेजी आई है, ऐसे में कोयले का आयात बढाने का विकल्प भी सीमित दिखाई देता है। कोयले की बढती मांग को घरेलू स्तर पर हो रहे उत्पादन से पूरा करना संभव नहीं हो पा रहा है। पिछले साल भी कोरोना की दूसरी लहर के गुजरने के बाद औद्योगिक गतिविधियों में तेजी आने से कोयले की मांग बढने पर कोयले की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ गई पर घरेलू स्तर पर आपूर्ति मांग के स्तर से कम होने पर देश में बिजली उत्पादन को मांग के अनुकूल करने में भारी कठिनाई आ गई हालांकि जाड़ों की वजह से यह संकट इतना नहीं बढ पाया। जहां तक उत्तराखंड की बात है सेन्ट्रल इलेक्ट्रिकल अथॉरिटी के 28 फरवरी 2022 के आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में कोल आधारित विद्युत संयंत्र से करीब 492 मेगावाट उत्पादन होता है, जबकि राज्य में बिजली उत्पादन की कुल स्थापित क्षमता 3925 मेगावाट है। उत्तराखंड सरकार के अधीन कोल आधारित बिजली उत्पादन नहीं हो रहा है, इस क्षेत्र में लगभग 393 मेगावाट केन्द्रीय व 99 मेगावाट निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी है।
उत्तराखंड हर रोज खरीद रहा 12 से 15 करोड़ की बिजली
देश के कई राज्यों में कोयले की मांग के मुकाबले आपूर्ति की कमी की वजह से विद्युत उत्पादन पर बेहद खराब असर पड़़ रहा है। उत्तराखंड सरकार के अधीन कोयला आधारित विद्युत संयंत्र से बिजली उत्पादन नहीं होने से कोयले की आपूर्ति राज्य के लिए तत्काल बड़ी समस्या नहीं है, पर बिजली की बढती घरेलू मांग को पूरा करने में उत्तराखंड में भी सरकार के माथे पर पसीना आ रहा है। बिजली उत्पादन में बढोतरी के लिए गैस आधारित संयंत्र से उत्पादन बढाने का विकल्प भी राज्य सरकार के पास नहीं है। वर्तमान में राज्य में गैस आधारित संयंत्रों से हो रहे कुल उत्पादन 520 मेगावाट में अकेले निजी सेक्टर के हिस्से 450 मेगावाट और बाकी केन्द्रीय सेक्टर के अधीन है। हालांकि रूस-यूक्रेन युद्ध से गैस की आपूर्ति पर भी बुरा असर पडऩे से गैस की आपूर्ति को भी बढाना आसान नहीं रह गया है। उत्तराखंड सरकार राज्य में बिजली की मांग पूरा करने के लिए अप्रैल के पहले सप्ताह के दौरान 11 मिलियन यूनिट हर दिन बाजार से जुटा रही है। यूजेवीएनएल समेत तमाम स्रोतों से राज्य को 33 मिलियन यूनिट बिजली मिलती है जबकि कुल मांग 44.5 मिलियन यूनिट के रिकॉर्ड स्तर को छू रही है। बाजार में बिजली की उपलब्धता कम होने से रेट ऊंचे बने हुए हैं। 12 रुपए प्रति यूनिट की दर पर भी बिजली खरीदनी पड़ रही है। मुख्यमंत्री ने कहा है कि राज्य में बिजली की समस्या नहीं होने दी जाएगी। सरकार इसकी उपलब्धता को बनाए रखने के लिए काम कर रही है। पावर सेक्टर के अधिकारी कहते हैं कि जून के बाद ही बिजली संकट से राहत मिल पाएगी। यूजेवीएनएल का बिजली उत्पादन आज की तुलना में 8.5 मिलियन यूनिट बढकर जून के अंत तक 22 मिलियन यूनिट के करीब हो जाएगा जिससे यूपीसीएल की परेशानी कम हो जाएगी। इस वक्त यूपीसीएल को रोज 12 से 15 करोड़ रुपए की बिजली खरीदनी पड़ रही है।
जल विद्युत के क्षेत्र में उत्तराखंड की कछुवा चाल
उत्तराखंड गठन के बाद के पिछले डेढ दशक में विद्युत उत्पादन की स्थिति को देखने पर पता चलता है कि उत्तराखंड में कुल स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता वित्तीय वर्ष 2004-05 के अंत में 1443.05 मेगावाट थी। 2006-07 में यह 1991.76 मेगावाट, 2011-12 में 2526.94 मेगावाट, 2016-17 में 3313.45 मेगावाट और 2020-21 में 3731.0 मेगावाट हो गई। ये स्टेटिस्टा डॉट काम के आंकड़े कहते हैं। सेन्ट्रल इलेक्ट्रिकल अथॉरिटी का कहना है कि 28 फरवरी 2022 की स्थिति के अनुसार उत्तराखंड में कुल स्थापित विद्युत क्षमता 3925.07 मेगावाट है। इसमें जल विद्युत की स्थापित क्षमता में राज्य सरकार के अधीन 1252.15 मेगावाट, केन्द्र के अधीन 475.54 मेगावाट और निजी क्षेत्र में 248.20 मेगावाट है। इसके साथ ही सोलर, विन्ड आदि से पैदा की जाने वाली नवीकरणीय ऊर्जा के स्थापित संयंत्रों की कुल क्षमता 906.68 मेगावाट है, जिसमें राज्य सरकार के मातहत केवल 67.87 मेगावाट और बाकी सारी निजी क्षेत्र के अधीन है। जन्म के बाद 20 वर्ष की अवस्था पार कर चुके उत्तराखंड राज्य में आज भी जल विद्युत की स्थापित क्षमता करीब 2 हजार मेगावाट है जबकि बार-बार यह प्रचारित किया जाता है कि उत्तराखंड में मैजूद जल शक्ति को देखते हुए यहां 22 हजार मेगावाट से ज्यादा जल विद्युत की संभावना है।
ऊर्जा प्रदेश के नाम पर राजनीति
सस्ती और बेहद न्यून प्रदूषणकारी जल विद्युत ऊर्जा के दोहन के लिए उत्तराखंड में अभी तक कोई टिकाऊ व कारगर ब्लू प्रिन्ट नहीं बन पाया है जिसका खामियाजा हर रोज करोड़ों रुपए की बिजली खरीद के तौर पर राज्य के खजाने पर आ रहे भार के रूप में यहां की जनता को भी भुगतना पड़ रहा है। ऊर्जा प्रदेश के नाम पर राजनीति होती रही पर राज्य ऊर्जा के क्षेत्र में सरप्लस राज्य बनने के बजाय अपनी घरेलू मांग को भी पूरा नहीं कर पा रहा है। राज्य सरकार की एजेंन्सी यूजेवीएनएल की स्थिति ऐसी है कि उसके दो बड़े प्रोजेक्ट पाला मनेरी( 480 मेगावाट) और भैंरोघाटी( 400 मेगावाट) की फाइल बंद पड़ी है। वह अब खुलेगी, इसकी संभावना कम है। पाला मनेरी, भैंरोघाटी और एनटीपीसी की निर्माणाधीन लोहारी नागपाला(600 मेगावाट) तीनों बड़ी परियोजनाएं उत्तरकाशी में भागीरथी के प्रोजेक्ट हैं। इन्हें पर्यावरण विद डॉ. जीडी अग्रवाल और उनके साथ संघ परिवार के संगठनों के विरोध के चलते बंद किया गया। तीनों प्रोजेक्ट 2013 से पूरी तरह बंद हैं। इसमें एक पक्ष नदी की सामाजिक-धार्मिक महत्ता व अविरलता का है तो दूसरा पर्यावरण को होने वाले अपूरणीय नुकसान का है। 2009-10 में तेज आंदोलन चलने पर राज्य की भाजपा सरकार ने अपनी बला टालने के लिए यूजेवीएनएल के प्रोजेक्ट स्थगित करने की घोषणा कर डाली जिसके बाद केन्द्र की यूपीए सरकार ने भी राजनीतिक नुकसान की आशंका में एनटीपीसी के प्रोजेक्ट पर ताला डालने की घोषणा कर दी।
वर्ष 2013 की आपदा के बाद राज्य में करीब 70 परियोजनाओं को बंद किया गया था जिसका बड़ा कारण ये दिया गया था कि इन परियोजनाओं से प्रदेश में आपदाएं आने की सम्भावना हैं और परियोजनाओं से बड़ा खतरा है। इनमें से 24 परियोजनाओं को सुप्रीम कोर्ट ने भी बंद करने के आदेश दिए थे। इन परियोजनाओं में 10 ऐसे हाइड्रो प्रोजेक्ट्स थे जिन पर किसी भी प्रकार की आपत्तियां नहीं थीं, लेकिन इनको भी बंद कर दिया गया था, हालांकि इन पर अब दोबारा से काम शुरू करने के लिए तैयारी की जा रही है। फरवरी 2021 में ऋषिगंगा में आई बाढ में एक निजी हाइड्रो प्रोजेक्ट ध्वस्त होने पर इसमें करीब 2 सौ लोगों की जान चली गई। यह घटना जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण की अवैज्ञानिक और असंवेदनशील समझ का भी जीता जागता उदाहरण है। इस त्रासदी से स्थानीय लोगों के इस आरोप को बल मिल रहा है कि परियोजनाओं के निर्माण को मंजूरी देने से पहले सामाजिक प्रभाव और पर्यावरणीय प्रभाव की अध्ययन रिपोर्ट में भारी खामियां हैं। पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञों ने भी ये बातें कही हैं।
कुल मिलाकर जल विद्युत परियोजनाओं को लेकर उत्तराखंड में विवाद है। सरकार निजी क्षेत्र को आकर्षित करने के लिए नियम-कानूनों की भारी अनदेखी करती है। निजी कंपनियां इसका पूरा लाभ उठा रही हैं। इससे   जनता में विरोध होना स्वाभाविक है। सरकार की एजेंसियां छोटे-छोटे प्रोजेक्ट लगाकर एक वैकल्पिक रास्ता अपनाएं तो कुछ सकारात्मक हो सकता है।
Latest News उत्तराखण्ड