देहरादून। आयुर्वेद विश्वविद्यालय में पिछले कई महीनों से वेतन न मिलने से नाराज शिक्षक और कर्मचारियों का धरना गुरुवार को भी जारी रहा। बता दें कि पिछले चार महीनों से वेतन न मिलने से कर्मचारी नाराज हैं और वे आंदोलन कर रहे हैं। उनके सामने परिवार के भरणपोषण का संकट खड़ा हो चुका है। इस आंदोलन की वजह से शिक्षण कार्य के साथ ही आयुष अस्पतालों में इलाज भी प्रभावित हो रहा है।
जानकारी के अनुसार गलत प्रमोशन, सरप्लस कर्मचारियों की भर्ती और अनुमन्यता के विपरीत कुछ शिक्षकों को अनियमित भुगतान कर लाभ पहुंचाने के मामलों को छोड़कर बाकी शिक्षकों एवं कर्मचारियों के लिए बजट जारी करने पर सहमति दी गई है। मुख्य पेंच अनियमित भुगतान को लेकर ही है। चूंकि विश्वविद्यालय के शिक्षकों संवर्ग के कार्मिक ही वर्तमान में कुलपति और प्रभारी कुलसचिव हैं, इसलिए अपने संवर्ग के शिक्षकों को किए गए और प्राप्त किए गए भुगतान पर सही स्थिति स्पष्ट करने के बजाय प्रकरण को और उलझाते हुए शासन को गुमराह करते रहे हैं, ताकि वित्तीय अनियमितता, जो कि भ्रष्टाचार की श्रेणी में भी आता है, के मामले में संबंधित से वसूली न हो सके।
आश्चर्यजनक है कि लगभग एक प्रतिशत लोगों को तत्कालीन अधिकारियों द्वारा अनियमित पदोन्नति दी गई और अनियमित भुगतान किए गए हैं, इस पर शासन प्रकरण को भ्रष्टाचार के दायरे में लेकर कार्यवाही करने के बजाय निर्दोष 99 प्रतिशत कार्मिकों का वेतन रोकने की जिद में है। शासन और विश्वविद्यालय संबंधितों के वेतन व पेंशन के साथ जिला प्रशासन के माध्यम से भी आरसी कटवाकर अधिक भुगतान मंजूर करने वालों और प्राप्त करने वालों से वसूली कर सकता है, तो फिर क्वैरी पर क्वैरी लगाकर वित्त विभाग कान घुमाकर क्यों पकड़ना चाहता है!
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिसने अपराध किया ही नहीं उन्हें सजा देने पर सरकारी तंत्र क्यों आमादा है? काम लेने के बावजूद महीनों तक वेतन नहीं देना आपराधिक कृत्य है, और इस पर जिम्मेदार प्रबंधन के विरुद्ध कार्यवाही होनी चाहिए। यह सब तब हो रहा है जबकि मुख्यमंत्री स्वयं आयुष शिक्षा विभाग के मंत्री भी हैं।