दून विनर/देहरादून।
चुनावों में नेतृत्व के मामले में भाजपा खुलकर कुछ नहीं बोल रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व मेंं चुनाव लडऩे पर शुरुआत की दबी जुबान से हामी भरने के बाद अब जवाब टालने वाले हैं।
युवा नेतृत्व की जगह चुनाव आते ही पार्टी सामूहिक नेतृत्व की बात करने लगी है। बताया जाता है कि भाजपा में चुनावों में नेतृत्व के सवाल पर हुए मंथन के बाद तय हुआ कि प्रदेश स्तर पर युवा और अनुभवी दोनों तरह के नेताओं की टीम नेतृत्व करेगी। यूं भी वर्ष 2002 और वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में चेहरे को आगे करने पर मिली हार का सबक भी भाजपा के सामने है।
उत्तराखंड गठन के बाद भाजपा ने नित्यानंद स्वामी के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनाई पर पार्टी में ही स्वामी का विरोध देखते हुए विधानसभा चुनावों से पहले भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाकर उन्हीं के नेतृत्व में 2002 का चुनाव लड़ा गया। अटल बिहारी वाजपेयी की केन्द्र सरकार के कार्यकाल में उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ। भाजपा अपने जीत के प्रति आश्वस्त थी, पर उसकी हार हुई और कांग्रेस को 36 सीटों पर जीत के साथ बहुमत मिल गया। इसी तरह भाजपा ने ‘खंडूरी हैं जरूरी’ का नारा देकर वर्ष 2012 का चुनाव लड़ा पर वह 31 सीटों पर ही सिमट गई, खंडूड़ी खुद कोटद्वार सीट पर चुनाव हार गए।
हालांकि 2007 के विधानसभा चुनाव में बी.सी. खंडूड़ी को आगे करने पर भाजपा को चुनावों में 34 सीटें मिलने के बाद यूकेडी के साथ मिलकर सरकार बनाने का मौका मिला। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा बिना नेतृत्व की घोषणा किए चुनाव में उतरी और मोदी के सहारे 57 सीटों की रिकॉर्ड तोड़ जीत दर्ज की। इस बार भी चुनाव में मोदी के नाम को आगे करने की रणनीति है इसीलिए पहले-पहल मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के युवा नेतृत्व में चुनाव लडऩे की बात अब नहीं होती। भाजपा के चुनाव प्रचार में मोदी की छवि को भुनाने की पूरी तैयारी है।
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे प्रोजेक्ट, चारधाम बारहमासी सड़क परियोजना, कोरोना पर रोक के लिए वैक्सीनेशन, केदारनाथ-बद्रीनाथ धाम पुनर्निर्माण का प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट और देहरादून में 4 दिसम्बर को प्रधानमंत्री द्वारा जनसभा में नई परियोजनाओं की घोषणाओं को भाजपा प्रमुखता से चुनाव प्रचार का साधन बनाने जा रही है। प्रदेश सरकार की उपलब्धियों पर फोकस का क्रम इसके बाद है। भाजपा की उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों को लेकर बनाई जा रही रणनीति की आक्रामकता का अंदाजा उसके ‘अब की बार 60 पार’ के नारे से ही लग जाता है। पार्टी ने सदन में विपक्ष को अप्रभावी संख्या तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा है। भारतीय जनता पार्टी के उत्तराखंड चुनाव प्रभारी प्रह्लाद जोशी कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि पार्टी की पिछले कई चुनावों की तैयारियों की तुलना में इस बार हम काफी आगे बढ़ चुके हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि 60 पार का लक्ष्य जो हमने रखा है, उसे हम 100 प्रतिशत प्राप्त कर लेंगे।’ पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 70 में से 57 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जोशी का कहना है कि लक्ष्य हासिल करने के लिए दोनों सहप्रभारियों आर.पी. सिंह और लॉकेट चैटर्जी, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक सहित वरिष्ठ नेताओं के साथ वे खुद जमीनी स्तर तक कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं और इस बात पर मंथन चल रहा है कि पार्टी के विचार और रणनीति जनता तक कैसे पहुंचे।
भाजपा में उपसमितियों के बीच घोषणापत्र, विशेष जन संपर्क अभियान और प्रबंधन पर प्रमुखता से बैठकों का दौर चला है। पार्टी विधानसभा क्षेत्र स्तर तक जाकर प्रबुद्ध वर्ग के 50-100 लोगों से संपर्क और बातचीत कर उनसे प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने के लिए सहयोग का आग्रह भी करेगी। प्रदेश की चुनाव प्रबंधन समिति सभी 13 जिलों में जल्दी ही जिला स्तरीय और फिर विधानसभा स्तरीय चुनाव प्रबंधन समिति बनाने की दिशा में काम कर रही है ताकि चुनाव प्रबंधन का काम सुगठित रूप से जल्द शुरू हो सके। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक बताते हैं कि जल्द ही सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी की एक समिति भेजी जाएगी जो वहां के सभी प्रमुख लोंगों और कार्यकर्ताओं से बातचीत कर वहां की स्थिति और दावेदारों की सूची प्रदेश पार्टी को उपलब्ध कराएगी। उन्होंने कहा कि टिकट के बारे में अंतिम निर्णय पार्टी का केंद्रीय संसदीय बोर्ड करेगा।