नवरात्रि के अंतिम पड़ाव में हम माँ सिद्धिदात्री का स्मरण करते है। जैसा की माँ के नाम से ही विदित होता है कि वह सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्रदान कर भक्त का मनोरथ पूर्ण करने वाली है। जो लोग पूर्ण समर्पण से माँ की आराधना करते है वे माँ में और माँ उनमें स्थित हो जाती है। माँ की पूर्ण कृपा प्राप्ति के लिए हमें अन्तःकरण की शुद्धता एवं विद्याओं को ग्रहण करने की आवश्यकता होती है। देवी भागवत पुराण के अनुसार महादेव ने भी माँ से ही सिद्धियाँ प्राप्त की है, इसलिए भगवान शंकर का एक स्वरूप अर्धनारीश्वर है। नवमी के दिवस कई भक्त सिद्धि प्राप्ति के लिए पूर्ण विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते है।
माँ का यह स्वरूप सिंह पर विराजित है। माँ चतुर्भुज रूप में सुशोभित दिखाई देती है। गतिवान होनें पर माँ सिंह और अचला स्वरूप में कमलपुष्प के आसन पर विराजती है। माँ के हस्त में चक्र, गदा, शंख एवं कमलपुष्प दिखाई देता है। यदि नवरात्रि के अंतिम दिवस भी पूर्ण एकाग्रता एवं निष्ठा से माँ की आराधना की जाए तो भी भक्त को निश्चित ही सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती है। इस संसार में कोई भी कार्य असंभव नहीं है। देवी की आराधना तो ब्रह्मांड में भी विजय प्राप्ति का मार्ग अग्रसर करती है। नवरात्रि के प्रथम दिवस हमनें दृढ़ता, द्वितीय दिवस सद्चरित्रता, तृतीय दिवस मन की एकाग्रता, चतुर्थ दिवस असीमित ऊर्जाप्रवाह व तेज, पंचम दिवस वात्सल्य एवं प्रेम, छठवे दिवस अपने भीतर की आसुरी प्रवृत्तियों का नाश, सप्तम दिवस मृत्यु के भय से मुक्ति, अष्टम दिवस अमोघ शक्ति एवं सुख-संपत्ति तथा नवम दिवस हमनें सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त की है। नवरात्रि के नौ दिन की उपासना भक्त के मन को निर्मल, अन्तःकरण को पवित्र, अन्तर्मन में निहित बुराइयों का नाश, सकारात्मक ऊर्जा की तीव्रता एवं तेज प्रदान करती है। जो भी माँ भगवती का परम सानिध्य करता है उसकी कोई इच्छा शेष नहीं रह जाती है। वे मानसिक स्तर की उच्चता को भी प्राप्त करते है। माँ की कृपा उन्हें अलौकिक आनंद की अनुभूति कराती है।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)