पहाड़ों में डॉक्टर, पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी से स्वास्थ्य सेवा बुरी तरह चरमराई

पहाड़ों में डॉक्टर, पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी से स्वास्थ्य सेवा बुरी तरह चरमराई

विनोद खंडूड़ी/देहरादून। 
बीते सालों में उत्तराखंड में राज्य सरकार के अधीन चार मेडिकल कालेज स्थापित हुए और ऋषिकेश में केन्द्र सरकार के अधीन एम्स में कई कोर्स आरम्भ किए गए। राज्य सरकार के अधीन नर्सिंग कॉलेज खुले हैं। आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय शुरू किया गया। इसके साथ ही निजी क्षेत्र में मेडिकल कॉलेज, पैरामेडिकल कॉलेज स्थापित हुए हैं।
मेडिकल और पैरामेडिकल शिक्षा में हुए इस बदलाव के नतीजों की परख केवल शहरी इलाकों में बढी स्वास्थ्य सुविधाओं से नहीं की जा सकती, बल्कि स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की विरल पहुंच और उनकी गुणवत्ता के अभाव का मामला आज भी राजनैतिक बहस का मुद्दा बना हुआ है। इसकी तथ्यात्मक बानगी को बताने के लिए केन्द्र सरकार के नीति आयोग की स्वास्थ्य सूचकांक रिपोर्ट काफी है। 24 संकेतकों के आधार पर तैयार किए गए नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक में नवजात शिशु मृत्यु दर, पांच वर्ष से कम के शिशु में मृत्यु दर, जन्म पर लिंगीय अनुपात, मातृ मृत्यु दर, पूर्णत: टीकाकरण का स्तर, जन्म-मृत्यु पंजीकरण का स्तर, संस्थागत प्रसव, चालू स्वास्थ्य केन्द्रों एवं वैलनेस सेंटर का अनुपात, मानव संसाधन की तैनाती और राज्य सरकार के कुल खर्चे में स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यय का अनुपात जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल हैं।
स्वास्थ्य सूचकांक के लिए राज्यों को बड़े राज्य, छोटे राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश की तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है। स्वास्थ्य सूचकांक साल-दर-साल के आधार पर तैयार किया गया है इसका फायदा ये है कि राज्यों के लिए यह देखने में मदद मिलती है कि उसके प्रदर्शन में कितना सुधार हुआ या कमी आई है। इससे राज्यों को सुधार करने के लिए प्रेरणा मिलती है। स्वास्थ्य सूचकांक की गणना के लिए संदर्भ वर्ष, 2019-20 के लिए आधार वर्ष, 2018-19 है। बड़े राज्यों में संदर्भ वर्ष के स्वास्थ्य सूचकांक में पहले स्थान पर यानी पहले रैंक पर 82.20 अंकों के साथ केरल मौजूद है, आधार वर्ष में भी केरल 81.60 अंकों के साथ पहले रैंक पर था। तमिलनाडु भी आधार वर्ष (70.79 अंक) और संदर्भ वर्ष (72.42 अंक) दोनों बार दूसरे रैंक पर है। जबकि उत्तराखंड आधार वर्ष में 43.63 अंकों के साथ 14वें रैंक पर था परन्तु संदर्भ वर्ष, 2019-20 में वह एक रैंक नीचे चला गया हालांकि उसके अंक बढ कर 44.21 हो गए। केरल को मिले अंकों के मुकाबले उत्तराखंड के स्कोर में लगभग 38 अंकों का फासला है, जो दिखाता है कि क्यों उत्तराखंड में केरल के मुकाबले स्वास्थ्य सेवा की हालत काफी खराब है जिसके सुधार के लिए सरकार हर बार दावे करती रहती है।
आधार वर्ष के मुकाबले संदर्भ वर्ष में वृद्धि संबंधी सुधार में उत्तर प्रदेश ने 5.52 अंक बढोतरी की, जिसके बाद उसका कुल स्कोर 30.57 हो गया, परन्तु फिर भी उत्तर प्रदेश 19 बड़े राज्यों में आखिरी रैंक पर खड़ा है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश ने आधार वर्ष और संदर्भ वर्ष दोनों में रैंक के मामले में क्रमश: अपने 16,17,18 व 19 वें रैंक बरकरार रखे हैं, जबकि उत्तराखंड एक पायदान नीचे चला गया। यह साफ बता रहा है कि सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद स्वास्थ्य व्यवस्था की समग्र तस्वीर के मामलें में उत्तराखंड बड़े राज्यों में पिछड़ी हालत में खड़ा है।
All Recent Posts Latest News उत्तराखण्ड