जनसंख्या के मामले में 2001 और 2011 के दशक के अध्ययन कई चौंकाने वाले आंकड़े दे रहा है। इस दशक के दौरान उधमसिंह नगर की आबादी वृद्धि दर सबसे ज्यादा 33.45 प्रतिशत, उसके बाद देहरादून की 32.33 प्रतिशत, हरिद्वार की 30.63 प्रतिशत और नैनीताल की आबादी वृद्धि दर 25.13 प्रतिशत रही। ये चारों जिले आबादी के संकेन्द्रण के केन्द्र बन रहे हैं।
हैरत करने वाली बात है कि इस एक दशक में पौड़ी गढवाल की आबादी में 1.41 प्रतिशत और अल्मोड़ा जिले की आबादी में 1.28 प्रतिशत की गिरावट आई, वहीं टिहरी में 2.35 प्रतिशत, बागेश्वर में 4.18 प्रतिशत, पिथौरागढ में 4.58 प्रतिशत, चमोली में 5.74 प्रतिशत, रुद्रप्रयाग में 6.53 प्रतिशत और उत्तरकाशी में 11.89 प्रतिशत व चम्पावत में 15.63 प्रतिशत आबादी बढी। उत्तराखंड की दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर (19.71 प्रतिशत) देश की दशकीय वृद्धि दर 17.64 प्रतिशत से करीब 2 प्रतिशत ज्याद रही परन्तु यहां के पर्वतीय जिलों में जनसंख्या की वृद्धि दर में गिरावट बड़ी चिंता की बात है। याद रहे कि जनसंख्या घनत्व के मामलें में भी जबर्दस्त असमानता है।
उत्तरकाशी में 41, चमोली में 49, पिथौरागढ में 68 तीनों पर्वतीय जिलों में प्रति वर्ग किमी क्षेत्रफल में 100 से कम व्यक्ति रहते हैं जबकि दूसरी ओर हरिद्वार में 801, उधमसिंह नगर में 649, देहरादून में 549 व्यक्ति औसतन प्रति वर्ग किमी में रहते हैं। शिशु (0 से 6 वर्ष) लिंग अनुपात की स्थिति के मामले में भी जहां उत्तराखंड 890 पर ठहरा हुआ है वहीं जिलों में काफी ज्यादा असमानता है, फिर भी एक भी जिला ऐसा नहीं है जहां का शिशु लिंगानुपात महिलाओं के पक्ष में हो। सबसे बेहतर शिशु लिंगानुपात अल्मोड़ा (922), उत्तरकाशी(916), रुद्रप्रयाग(905), पौड़ी और बागेश्वर( दोनों 904-904), नैनीताल(902) जिलों में है। पिथौरागढ में शिशु लिंगानुपात मात्र 816 है जो 13 जिलों सबसे कम है। उधमसिंह नगर में 899, हरिद्वार में 877, टिहरी में 897, देहरादून और चमोली दोनों में 889-889, चम्पावत में 873 लिंगानुपात है। जिलों के सामान्य लिंगानुपात के मामले में यद्यपि चमोली, टिहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ, अल्मोड़ा और बागेश्वर में लिंगानुपात महिलाओं के पक्ष में हैं परन्तु यह बड़ी चिन्ता की बात है कि इन जिलों में भी 0 से 6 वर्ष के बीच के बच्चों के लिंगानुपात में काफी गिरावट आई है। वर्ष 2021 की जनगणना नहीं होने से जनसंख्या संबंधी सभी आंकड़े 2011 की जनगणना पर आधारित हैं, इसलिए दशकीय बदलाव के बाद हालत कैसी है यह ठीक-ठीक बता पाना संभव नहीं है परन्तु पिछले पैटर्न के अनुसार जनसंख्या में शिशु लिंगानुपात में पैदा हुई खाई को पाटना आसान नहीं है।