राज्य गठन के बाद प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला कांग्रेस व भाजपा के बीच ही रहा है। शुरुआती दो विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) व उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) ने जरूर तेवर दिखाए, मगर 2017 तक आते-आते ये दल भी हाशिये पर चले गए। स्थिति यह बनी कि 2017 के चुनाव में इन दोनों दलों को एक भी सीट नहीं मिली। बसपा का मत प्रतिशत घटा तो उक्रांद ने मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल के रूप में पहचान खो दी। इन दलों के सामने अब अपना वोट बैंक बचाने की चुनौती है।
राज्य गठन के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा व कांग्रेस के साथ ही बसपा व उक्रांद पर भी भरपूर प्यार लुटाया। नतीजतन इन चुनावों में बसपा को सात और उक्रांद को चार सीटें प्राप्त हुई थीं। इस कारण उक्रांद को पंजीकृत राज्य स्तरीय दल का दर्जा भी मिला। इस चुनाव में विशेष यह कि एनएसीपी के खाते में भी एक सीट आई। तीन सीटें निर्दलीय जीते।
2007 के चुनाव में जनता ने कांग्रेस व भाजपा के अलावा अन्य दलों पर भी अपना स्नेह बरकरार रखा। नतीजतन बसपा को आठ व उक्रांद को तीन सीटें मिलीं। इनके अलावा तीन सीटें निर्दलीयों के खाते में आई। 2012 के चुनाव में जनता ने अन्य दलों से किनारा करना शुरू कर दिया। बसपा का मत प्रतिशत भले ही बढ़ा, लेकिन उसकी सीटों की संख्या सात से घटकर तीन पर आ गई। उक्रांद को भी जनता ने करारा झटका दिया और उसे मात्र एक सीट ही नसीब हुई। इससे उक्रांद को मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल का दर्जा भी छिन गया। 2017 के चुनाव में मोदी लहर के आगे कांग्रेस समेत सभी दल चित हो गए। नतीजतन, कांग्रेस को छोड़ कोई अन्य दल एक भी सीट हासिल करने में नाकाम रहा। यह स्थिति तब रही जब चुनावों में छह राष्ट्रीय दलों, चार राज्य स्तरीय दल और 24 गैरमान्यता प्राप्त पंजीकृत दलों ने हिस्सा लिया, जिन्हें जनता ने सिरे से नकार दिया।