दून विनर संवाददाता
उत्तराखंड की चारधाम यात्रा में यात्रियों को सामान सहित अपनी पीठ पर ढोते निरीह घोड़े-खच्चरों के लिए अपनी जान बचाना मुश्किल हो गया है। मानकों से अधिक वजन उठाने को मजबूर और थके-मांदे भूखे इन पशुओं की हालत दयनीय है। भगवान के दरबार में भी बंधन में जकड़े रहना और डंडों की मार सहना जैसे इनके भाग्य में लिखा हो।
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उत्तराखंड की सरकार ने इस ओर से आंखें मूंद ली हैं। निरीह पशुओं की हालत पर कुछ धर्मध्वजी कह रहे हैं कि यही पूर्व जन्मों के कर्म होते हैं। कर्म फल भोग से बच नहीं सकते। कम से कम यात्री ही संवेदनशील होकर कमजोर-बीमार पशुओं की सवारी से परहेज कर लें तो देव भूमि में चल रहे इस पाप पर कुछ तो लगाम लग सकती है।