दून विनर/ देहरादून
आगामी चुनाव को लेकर बहुजन समाज पार्टी ने बहुत पहले ही एलान किया कि वह अकेले ही चुनाव में उतरेगी, किसी से गठबंधन नहीं होगा।
उत्तराखंड में चुनाव की तैयारियों पर बसपा के प्रदेश अध्यक्ष चौधरी शीशपाल ने कहा कि पार्टी बूथ कमेटी, सेक्टर और विधानसभा कमेटी पर फोकस कर रही है। उनका कहना है कि पार्टी इस बार शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी के सवाल लेकर जनता के बीच जाएगी। अभी तक बसपा ने हरिद्वार जिले की पांच सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नाम भी घोषित किए हैं। प्रदेश में कुल कितनी सीटों पर चुनाव लड़ा जाएगा यह निर्णय बसपा अध्यक्ष मायावती करेंगी।
गौरतलब है कि बसपा का प्रदेश के हरिद्वार और उधमसिंह नगर जिलों में अच्छा आधार है, हालांकि इसमें पिछले चुनाव में काफी गिरावट भी आई है। पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को एक सीट पर भी जीत नसीब नहीं हुई और उसका मत प्रतिशत भी गिरकर 6.98 पर आ गया। उत्तराखंड के विधानसभा चुनावों में बसपा का यह अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था। 2002 के पहले चुनाव में बसपा ने कुल सात सीटों पर जीत दर्ज की और 2007 के विधानससभा चुनाव में वह आठ सीटों पर विजय पताका फहराने में कामयाब रही। मत प्रतिशत के लिहाज से पहले चुनाव में पार्टी को 10.95 और दूसरे चुनाव में 11.76 प्रतिशत मत हासिल हुए। 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा को अब तक के सबसे ज्यादा, 12.19 प्रतिशत मत मिले पर सीटों के मामले में वह मात्र तीन सीटों पर आकर सिंकुड़ गई। ये तीनों सीटें भी हरिद्वार जिले की थी। ऊधमसिंहनगर जिले में कोई सीट हाथ नहीं आई।
इस तरह पहले के तीन चुनावों में पार्टी को हर बार 10 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले जो भाजपा और कांग्रेस के बाद सबसे बड़ा जनाधार है। यह विचित्र बात है कि चुनावों में प्रदर्शन की दृष्टि से प्रदेश में तीसरी ताकत रही बहुजन समाज पार्टी की मीडिया में चर्चा ज्यादा नहीं होती।
बसपा के अलावा समाजवादी पार्टी ने भी काफी सीटों पर चुनावों में प्रत्याशी उतारे पर वह कोई उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर सकी। पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव में मात्र 0.4 प्रतिशत मत मिले थे और वह कोई सीट नहीं जीत पाई। अभी तक के विधानसभा चुनावों में 2007 के चुनाव में समाजवादी पार्टी को 55 सीटों पर लड़कर लगभग 5 प्रतिशत वोट मिले और वह कोई सीट नहीं जीत सकी। इससे पहले वर्ष 2002 के चुनाव में सपा ने 63 सीटों पर चुनाव लड़ा, 6.27 प्रतिशत मत प्राप्त किए पर वह कोई सीट जीत नहीं पाई। वोट शेयर के हिसाब से समाजवादी पार्टी का यह सबसे अचछा प्रदर्शन है। इस बार सपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सचान ने सभी सीटों पर चुनाव लडऩे का एलान किया है। इसके साथ ही वे वाम दलों से समझौता कर चुनाव लडऩे की भी कोशिश में लगे हैं, पर कुल मिलाकर समाजवादी पार्टी का जनाधार अब कमजोर पड़ गया है।
विनोद बड़थ्वाल के इस दुनिया से चले जाने के बाद सपा के पास कोई प्रभावी नेता भी नहीं रहा है। उत्तर प्रदेश के जमाने में पर्वतीय इलाके उत्तराखंड में राजनीति में अच्छी दखल रखने वाले वाम दल राज्य गठन के बाद हाशिये पर हैं। कुल एक दर्जन सीटों पर प्रत्याशी उतारने के बाद भी तीन वामदलों का कुल वोट शेयर एक प्रतिशत भी नहीं पहुंच पाता है। इस बार भी वाम दलों की तैयारी मिलकर चुनाव लडऩे की है पर अभी तक घोषित तौर पर तय कुछ नहीं है। अगर तीसरे मोर्चे की बात को सपा-वामदल आगे बढाते भी हैं तो सवाल उठता है कि नेतृत्व कौन करेगा। इस तरह देखा जाए तो नेतृत्व की घोषणा के मामले में इस बार के चुनावों में आम आदमी पार्टी ने अन्य दलों से बाजी मारी है। यह समय ही बताएगा कि पार्टी को मतदाताओं का समर्थन कितना मिलता है।