सीडीएस जनरल विपिन रावत: सैन्य परम्परा का महायोद्धा

सीडीएस जनरल विपिन रावत: सैन्य परम्परा का महायोद्धा

डा0 योगम्बर सिंह बर्त्वाल/देहरादून 
भारतीय सेना के प्रथम मुख्य सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत का 8 दिसम्बर 2021 को तमिलनाडु के किन्नूरक्षेत्र में हेलिकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण पत्नी मधुलिका रावत एवं 11 सैन्य कर्मियों के साथ निधन हो गया। देश की सेवा करते वे शहीद हो गए। इस खबर के बाद सारा देश शोक में डूब गया।
इस स्तब्धकारी घटना के कारण सम्पूर्ण उत्तराखण्ड भी दुख में डूब गया। जनरल विपिन रावत वीर प्रसूता भूमि गढ़वाल के बेटे हैं। वे देश के सैन्य इतिहास में पहली बार सृजित सी.डी.एस. पद पर सुशोभित थे। महान सैन्य परम्परा के व्यक्ति लेफ्टिनेंट जनरल उप सेना प्रमुख लक्ष्मण सिंह रावत उनके पिता थे। दादा भी सन् 1952 में सुबेदार मेजर बन गए थे। सैनिक की सैन्य परम्परा, साहस एवं कुशल रणनीति के गुण उनको घुट्टी में मिले थे।
जनरल विपिन रावत का पैतृक गांव सैण पौड़ी गढ़वाल के द्वारीखाल विकासखण्ड में है। उनका जन्म 16 मार्च सन् 1958 को देहरादून में हुआ था। सरलता, सहजता एवं सौम्यता के गुण उन्हें पारिवारिक संस्कार में मिले थे। सेना के सर्वोच्च पद पर पहुंचने पर भी सहजता व शालीनता उनके स्वभाव में बने रहे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा देहरादून स्थित कैम्ब्रिज हॉल स्कूल से और इंटर शिमला के सेंट एडवर्ड स्कूल से हुई। उसके बाद सी.डी.एस. और मेडिकल दोनों में चयन हो गया था। मेडिकल में जाने के बजाय उन्होंने सैन्य जीवन में जाना ही उचित समझा जो आगे चलकर भारतीय सैन्य परम्परा में कई महत्वपूर्ण स्थलों पर उनका सही चुनाव साबित हुआ। देहरादून में एन.डी.ए. प्रशिक्षण के दौरान इनके प्रशिक्षक रहे सेवा निवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल दिगम्बर सिंह बर्त्वाल बताते हैं कि विपिन रावत में एक अच्छे सैनिक के गुण मौजूद थे। उनको प्रशिक्षण पूरा होने पर सोर्ड ऑफ ऑनर भी प्रदान किया गया था। एन.डी.ए. में प्रशिक्षण पूरा करने पर पासिंग आउट होने के बाद विपिन रावत को पिताजी की गोरखा, रेजीमेंट में तैनाती मिली।
पासिंग आउट परेड के समय सीडीएस विपिन रावत के साथ ठाकुर कृष्ण सिंह पंवार  का फोटो आज भी आकर्षण का केन्द्र है।
ठाकुर कृष्ण सिंह संविधान सभा के सदस्य एवं उत्तरकाशी के विधायक व उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे। विपिन रावत के पिता लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत का विवाह 1954 में सुशीला देवी पुत्री ठाकुर सूरत सिंह, ग्राम धाती, पट्टी धनारी के साथ हुआ था। ठाकुर सूरत सिंह ने सन् 1914 में इलाहाबाद से बी.ए. किया था। सुशीला देवी ने अन्य तीन बहनों के साथ-साथ सन् 1950-54 के दौरान लेडी हॉर्डिंग दिल्ली से उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। ठाकुर कृष्ण सिंह ने काशी के थियोसोफिकल कॉलेज से बी.एस.सी. किया। लखनऊ विश्व विद्यालय से एम.ए., एल.एल.बी. सन् 1925 में किया था। वे थियोसोफिकल सोसाइटी के सदस्य सन् 1920 में ही बन गए थे।
पौड़ी गढ़वाल से जिला बोर्ड के सचिव सुरेन्द्र सिंह बर्त्वाल व टिहरी गढ़वाल से ठाकुर कृष्ण सिंह राजपूतों में ऐसे व्यक्ति हुए जो स्त्री शिक्षा के बड़े हिमायती हुए। दोनों ने अपनी बेटियों को दिल्ली, लखनऊ व इलाहाबाद के विश्वविद्यालयों से स्नातक व परास्नातक की शिक्षा सन् 1950-55 के दौर में दिलाई। विपिन रावत की माता सुशीला देवी के मामा डा. उदयभान सिंह पुंडीर बागवानी के वैज्ञानिक थे जिन्होंने सेब के पेड़ों पर लगने वाली चिरबटिया पेस्ट का आविष्कार किया था। ठाकुर कृष्ण सिंह के एक दामाद भीम बहादुर सिंह कार्की भारतीय सर्वेक्षण विभाग में उप सर्वेयर जनरल रहे हैं एवं एक दामाद ले. कर्नल ओंकार सिंह सन् 1971 में युद्ध में छम्ब सेक्टर में शहीद हुए थे।ठाकुर कृष्ण सिंह के बिरादरी भाई टिहरी राज परिवार के गम्भीर सिंह प्रथम भारतीय सर्वेयर जनरल 1958-68 तक रहे। देहरादून स्थित 14 न्यू रोड़ में ठाकुर कृष्ण सिंह का आवासीय भवन था। इस आलेख का लेखक भी सन् 1985 से 1994 तक उसी में रहा। इस दौरान जनरल विपिन रावत अपने नाना ठाकुर कृष्ण सिंह व नानी श्रीमती विद्यावती देवी से मिलने आते थे। इस लेखक को भी उस दौरान जनरल रावत को नजदीक से देखने व मिलने का अवसर मिला। सन् 1986 में जनरल रावत की शादी रीवा रियासत के कुंवर मृगेन्द्र सिंह की बेटी मधुलिका से हुई। कुंवर मृगेन्द्र सिंह भी ठाकुर कृष्ण सिंह की भांति राजनेता थे। जब यह लेखक ठाकुर कृष्ण सिंह पर पुस्तक तैयार कर रहा था उस दौरान दृष्टि जनरल विपिन रावत के आकर्षक व्यक्तित्व पर केन्द्रित हो गई। तब वे मेजर जनरल थे। तब सोचा था कि पुस्तक उनको समर्पित की जाएगी। कतिपय कारणों से पुस्तक प्रकाशन में विलम्ब होता गया लेकिन निर्णय अडिग रहा।उन्हीं दिनों एक सेना अधिकारी ने कहा कि बर्त्वाल जी विपिन रावत अवश्य जनरल बनेंगे। सी.डी.एस. रावत के मामा ले. कर्नल सत्यपाल सिंह परमार ने एक बार उनसे मिलने का समय भी तय कर लिया था, लेकिन मुलाकात नहीं हो पाई, पर अब उस समय की स्मृतियां ही शेष हैं।
ऐसे दौर में जब सी. डी. एस. जनरल विपिन रावत भारतीय सेना को आधुनिकीकरण की ओर ले जा रहे थे उनका न रहना बड़ी अपूर्णीय क्षति है। सी. डी. एस. विपिन रावत का उत्तराखण्ड से लगाव लगातार बना रहा। 30 अप्रैल 2018 को थल सेनाध्यक्ष बनने पर वे सड़क मार्ग से अपने पैतृक गांव सैण विकासखण्ड द्वारीखाल आए थे। अपने पारिवारिक जनों से आत्मीय लगाव से मिले। अपनी बचपन की यादों को ताजा करने के लिए नाना सूरत सिंह परमार, कृष्ण सिंह परमार के गांव थाती पट्टी धनारी, जिला उत्तरकाशी 20 सितम्बर, 2019 को गए। उनके मामा खुशपाल सिंह के बेटे नरेन्द्र सिंह ने उनके बचपन का एक फोटो भी दिखाया। डुन्डा से गांव जाते समय गांव वालों ने अपने भांजे का ढोल नगाड़ों के बाजों के साथ स्वागत किया। रास्ते में भवान गांव में राजराजेश्वरी मंदिर में मामा के बेटे ज्ञानेन्द्रपाल सिंह परमार के साथ पूजा-अर्चना की। राजराजेश्वरी उनके ननिहाल की कुल देवी है। इसी अवधि में विपिन रावत एक बार गंगोत्री दर्शन के लिए भी आए।
सी.डी.एस. विपिन रावत उत्तराखण्ड की वीर प्रसूता भूमि के गौरव थे। मृदु भाषी व सौम्यता उनके स्वभाव की पहचान थी। उनके निधन से सम्पूर्ण उत्तराखण्ड गमगीन स्थिति में है। ऐसे शिखर पर पहुंचने से पहले सेना प्रमुख विपिन रावत ने लम्बी सैन्य सेवा में महत्वपूर्ण चुनौती वाले कार्यों को बेहतरीन ढंग से निभाया। चीन से लगी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर इन्फेंट्री बटालियन प्रमुख की भूमिका सन 1986 में निभाई। कांगो में संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति मिशन को कुशल नेतृत्व दिया। सन् 2015 में मणिपुर, आतंकी हमले के प्रत्युत्तर में 21 पैरा कमांडो ने सीमा पार जाकर आतंकी संगठन एन.एस.सी. के आतंकियों को ढेर किया। इसके कमांडर रावत ही थे। 29 सितम्बर सन 2016 को भारतीय सेना ने पी.ओ.के. जाकर सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंकवादी शिविरों को ध्वस्त किया था। ऐसे कई -कई सैनिक कार्यवाहियों का विपिन रावत ने सफल संचालन किया। उनके अन्दर अद्भुत रणकौशल था जो किसी मिशन को सफलतापूर्वक अन्जाम देते थे।
सेना प्रमुख बनने पर उनकी प्राथमिकता में सेनाओं का अत्याधुनिकीकरण था। इस योजना में वैश्विक स्तर के वैज्ञानिक रक्षा उपकरणों से भारतीय सेना को सुसज्जित किया जा रहा है। यह भी संयोग था कि  16 दिसम्बर 1978 को भारतीय सैन्य अकादमी से पास आउट होते समय उनके साथ संविधान सभा के सदस्य उनके नाना ठाकुर कृष्ण सिंह साथ में थे। उस समय का एक फोटो सामने आया है। सोशल मीडिया पर 43 साल पूर्व का यह फोटो यही सन्देश दे रहा है कि भारत के संविधान की भावना को आत्मसात करते हुए देश की रक्षा करो। दुनिया के सैन्य इतिहास में यह भी एक संयोग ही होगा कि तीन पीढियां सेना में रही, पिता लक्ष्मण सिंह रावत उप सेनाध्यक्ष तो बेटा सेना अध्यक्ष के बाद पहला सेना प्रमुख बना। माता सुशीला देवी भी भाग्यशाली महिला थी कि पति लेफ्टिनेंट जनरल व उप सेनाध्यक्ष व बेटा विपिन रावत भारतीय सेना का प्रथम सेना प्रमुख बना। जनरल विपिन रावत ने देश विदेश में सैन्य कार्यक्रम सफलता से संचालित किए, देश का गौरव बढ़ाया। यह भी एक संयोग था कि पति विपिन रावत व पत्नी मधुलिका रावत विवाह के यज्ञ मंडप के बाद से लेकर मृत्यु के पश्चात् भी साथ रहे। उनकी एक साथ चिता लगी। बेटी कृतिका, तरिणी, छोटे भाई कर्नल विजय रावत, भतीजे कैप्टेन पी.एस. रावत ने दिल्ली के बराड़ स्क्वायड में मुखाग्नि दी।
11 दिसम्बर 2021 को अस्थि कलश लेकर सड़क मार्ग से वी.आइ.पी. घाट में विसर्जन हेतु पारिवारिक जनों में सेना के अधिकारियों के साथ उनके मामा कर्नल सत्यपाल सिंह परमार भी थे। दोनों बेटियों ने विधि विधान से अस्थि विसर्जित की। बाद में कर्नल परमार, मेजर जनरल आर.पी.एस. राना को पांचों प्रयागों में विसर्जन हेतु अस्थि कलश सौंपे गए। हरिद्वार वी.आइ.पी. घाट पर विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चन्द अग्रवाल और उत्तराखण्ड के नेता, शासन, प्रशासन के लोग शामिल थे।
1 दिसम्बर 021 को सी.डी.एस. विपिन रावत गढ़वाल विश्व विद्यालय के दीक्षांत, समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे। वे वहां सभी से खुलकर मिले, 11 को देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी की पासिंग आउट परेड में आना था। 8 दिसम्बर को सैन्य संस्थान में संबोधन हेतु शामिल होना था। लेकिन एस.आइ. हेलिकॉप्टर से 13 लोगों की जीवन लीला खत्म हो गई। सारा देश स्तब्ध रह गया। पूरी दुनिया के लिए यह हृदय विदारक घटना थी।पूरी दुनिया के लोगों ने दुख व्यक्त किया। देवभूमि की माटी के लाल भारत के गौरव पुत्र सी.डी.एस. विपिन रावत के निधन पर राष्ट्र शोक में डूब गया। उत्तराखण्ड में शिक्षण संस्थाओं, सामाजिक संगठनों, सांस्कृतिक संगठनों ने सी. डी.एस. विपिन रावत के चित्र पर माल्यार्पण कर भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। देहरादून में कैम्ब्रिन स्कूल में पूर्व छात्रों ने विपिन रावत सी.डी.एस. को, श्रद्धांजलि अर्पित की। चन्द्र कुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान ज्योति विहार के कार्यालय से सुन्दर श्याम, कुकरेती, मनोहर रावत, डा. मीनाक्षी रावत, प्रभा सजवाण, कुलवन्ती देवी बर्त्वाल, ईशु रावत, पूर्व विधायक कुंवर सिंह नेगी, डॉ. योगम्बर सिंह बर्त्वाल ने अश्रुपूरित आंखों से पुष्पांजलि अर्पित की। यह लेखक 22 दिसम्बर को जनरल विपिन रावत की दूसरी नानी सुशीला देवी, कृष्ण सिंह की दूसरी पत्नी के पास शोक व्यक्त करने 58 लिटन रोड गया तो वह बेहद दुखी थी। उन्होंने बताया,  ‘‘अभी कुछ दिन पूर्व मैं दिल्ली में उनके यहां ठहरी थी, पति-पत्नी दोनों ने बड़ी सेवा की। उनके अपनत्व को महसूस कर मुझे मायके के दिनों की याद आने लगी थी। क्या पता था कि ऐसी दुखपूर्ण घटना भी होगी। भगवान दोनों को शांति प्रदान करें।‘‘
एक उत्कृष्ट सैन्य अधिकारी से सेना अध्यक्ष बनने व प्रथम बार सेना प्रमुख बनने तक पहुंचने में जनरल विपिन रावत की असाधारण क्षमता, रणकौशल एवं दूरदृष्टि की सोच थी। उन्होंने रक्षा एवं प्रबन्ध अध्ययन में एम.फिल., स्टेट स्ट्रेटेजिक और डिफेन्स स्टडीज में एफ. फिल., सैन्य मीडिया अध्ययन में पी.एचडी. की। सैनिकों को मिलने वाली सुविधाओं के उन्नयन में भूमिका, सेना में महिलाओं को इन्ट्री दिलाने में योगदान, भारतीय सेना को प्रोफेशनल आर्मी बनाने का श्रेय, कश्मीर में आतंकवाद के विरुद्ध आक्रामक नीति, सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसी उपलब्धि उनके नाम से जुड़ी हैं। जनरल विपिन रावत उच्च ऊंचाई के युद्ध क्षेत्र और आतंकवाद विरोधी अभियानों में विशेषज्ञ थे। सीडीएस विपिन रावत को पी.बी.एस.एम., ए.वी.एस.एम., यू.वाई.एस.एम., एम.एम.बी.एस.एम., वाई.एस.एम., वी.एस.एम., वी.एस.एम. आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। 43 साल के गौरवपूर्ण सैनिक अनुभवों ने उन्हें सीडीएस के सर्वोच पद पर आसीन किया था।( लेखक डॉ. योगम्बर सिंह बर्त्वाल पिछले लम्बे समय से उत्तराखंड के साहित्यिक, सांस्कृतिक सरोकारों पर लेखनरत हैं। वे ज्योति विहार, देहरादून में रहते हैं। )
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