देहरादून। उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने सोमवार को प्रदेश मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत के दौरान बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति पर गंभीर सवाल खड़े किए।
गरिमा ने कहा कि आखिर भाजपा सरकार की क्या मजबूरी है कि वह बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति जैसे गरिमामई संस्थान के अध्यक्ष के चयन में गलती कर रही है।
दसोनी ने कहा कि बीकेटीसी के अध्यक्ष का पद बहुत समय से रिक्त चल रहा था, समय रहते इस पद पर नियुक्ति हो जानी चाहिए थी, यात्रा और चारों धामों के कपाट खोलने की तिथि की भी औपचारिक घोषणा हो चुकी थी लेकिन बीकेटीसी के अध्यक्ष का चयन नहीं हो पाया। यात्रा प्रारंभ होने के बाद आनन फानन में राज्य सरकार ने बीकेटीसी के अध्यक्ष और दो उपाध्यक्षों की घोषणा की ऐसे में यह समझ से परे है कि आखिर बीकेटीसी में दो उपाध्यक्षों की नियुक्ति क्यों चाहिए क्योंकि दो उपाध्यक्ष मतलब राज्य पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ?
इसके अतिरिक्त दसौनी ने कहा कि पूरे उत्तराखंड में धामी सरकार को बीकेटीसी के अध्यक्ष के रूप में हेमंत द्विवेदी ही सबसे काबिल दिखाई पड़े? जिनकी निशंक सरकार में तराई बीज निगम के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति ही बहुत विवादास्पद रही और हेमंत द्विवेदी के ऊपर करोड़ों के घोटाले के आरोप लगे? दसौनी ने ताजा मामला प्रस्तुत करते हुए कहा कि हल्द्वानी के निवासी गुरमीत सिंह ने पुलिस अधीक्षक नैनीताल को शिकायती पत्र लिखकर हेमंत द्विवेदी द्वारा अपने साथ हुए फ्रॉड का मामला विस्तार से दर्ज कराया है।
गरिमा ने बताया कि मामला 2020 का है जब गुरमीत को हेमंत द्विवेदी की धर्मपत्नी विजया द्विवेदी के नाम दर्ज एक प्लॉट दिखाया गया, डील 6 करोड़ में तय हुई जिसका रजिस्टर्ड एग्रीमेंट भी हुआ,अलग-अलग तारीखों में गुरमीत ने हेमंत द्विवेदी के बताए गए अकाउंट में करोड़ों रुपए जमा भी किया परंतु ऐन रजिस्ट्री के दिन हेमंत द्विवेदी नहीं आए। और उसके बाद से लगातार संपर्क करने की कोशिशों के बावजूद गुरमीत हेमंत द्विवेदी से संपर्क नहीं कर पाए। हताश और निराश होकर गुरमीत ने पुलिस निरीक्षक नैनीताल को सारा मामला और कागजात सौंपे लेकिन हेमंत द्विवेदी की ऊंची पहुंच के चलते आज 5 साल बाद भी गुरमीत को न्याय नहीं मिल पाया है।
गरिमा ने कहा कि यह उत्तराखंड राज्य का दुर्भाग्य ही है कि हमारे धामों की गरिमा, परंपरा और मान्यता के अनुसार मंदिर समिति को अध्यक्ष नहीं मिल पाता। दसौनी ने सरकार को आढ़े हाथों लेते हुए कहा कि जितना ऊंचा हमारे केदारनाथ और बद्रीनाथ का नाम और माहात्म्य है उसकी समिति के अध्यक्ष का भी उतना ही ऊंचा चाल चरित्र चेहरा होना चाहिए था परंतु इतने महीने विलंब के बाद समिति का अध्यक्ष चुना भी गया तो ऐसा व्यक्ति जिसका अतीत और वर्तमान सब स्याह है।