दून विनर संवाददाता/देहरादून।
हिमवंत कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान समिति के संस्थापक सचिव डाॅ0 योगम्बर सिंह बर्त्वाल का 75 वर्ष की आयु में 28 अगस्त 2023 को देहरादून के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। वे डेंगू से पीड़ित थे। बहुआयामी कृतित्व के धनी डाॅ0 योगम्बर सिंह बर्त्वाल ने युवावस्था से लेकर अपने अंतिम दिनों तक सृजनात्मक समाजोपयोगी कार्यों में अनवरत सक्रियता दर्शायी। अस्पताल में भर्ती होने के दिन भी उन्हें पूर्व निर्धारित एक कार्यक्रम में जाना था। सहमित्रों का वहां से फोन आने पर उनका कहना था कि वे जांच कराकर जल्दी ही कार्यक्रम में शामिल होने आएंगे परन्तु तबीयत अधिक बिगड़ने पर ऐसा नहीं हो सका। साहित्य, राजनीति, पत्रकारिता, इतिहास से जुड़े जो लोग योगम्बर सिंह जी के सम्पर्क में रहे उनका कहना है कि डाॅ0 बर्त्वाल के अध्ययन-मनन का विस्तृत दायरा और बेहतरीन स्मरण शक्ति उन्हें विशिष्ट बनाती है। साधारण बातचीत में सहृदय और विषय केन्द्रित बहसों में दृढता के साथ पेश तार्किकता उनकी खासियत थी। बतौर दृष्टि विज्ञानी राजकीय स्वास्थ्य सेवा में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विभिन्न स्थानों पर कार्य करने और देहरादून में स्थायी तौर पर बसने के बाद भी उनके जेहन में सदैव चमोली जिले में स्थित अपना जन्म स्थान ग्राम रडुवा और गढ़वाल की मंदाकिनी घाटी रची-बसी रहती। रडुवा में जब भी कोई सामूहिक आयोजन होता वे जरूर जाते।
मात्र 28 वर्ष की अल्पआयु में दुनिया से विदा लेने वाले रुद्रप्रयाग जिले के मालकोटी गांव में 20 अगस्त सन् 2019 को जन्मे हिन्दी साहित्य के अप्रतिम कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की रचनाओं के संकलन एवं प्रकाशन और पूर्व प्रकाशित उनकी रचनाओं के पुनर्प्रकाशन के श्रमसाध्य कार्य में एक तपस्वी की भांति रत रहने की अपेक्षा डाॅ0 बर्त्वाल से ही की जा सकती थी। इस दिशा में उन्होंने शम्भु प्रसाद बहुगुणा, डाॅ0 उमाशंकर सतीश के कार्यों को आगे बढाया। उन्होंने मुख्यतः चन्द्र कुंवर संबंधी रचनाक्रम को क्रमबद्ध रूप देने के लिए अपने सहयोगियों के साथ मिलकर हिमवंत कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान समिति, देहरादून की स्थापना की। इस संस्थान के तत्वावधान में अब तक चन्द्र कुंवर बर्त्वाल का जीवन दर्शन, हिमवंत काव्य उन्नायक शम्भु प्रसाद बहुगुणा शताब्दी स्मृति ग्रंथ, विकास पुरुष नरेंद्र सिंह भंडारी शताब्दी स्मृति ग्रंथ सहित चन्द्र कुंवर की कविताओं की पुस्तकों का पुनर्प्रकाशन किया जा चुका है और हिमवंत कवि की मूर्तियों की स्थापना की गई है। इन कार्यों में योगम्बर सिंह जी अनवरत लगे रहे। उनके प्रयासों से साहित्य जगत के नवागंतुकों के साथ-साथ पठन-पाठन करने वाली नई पीढ़ी चन्द्र कुंवर बर्त्वाल के विस्तृत रचना संसार को जानने की ओर उन्मुख होने लगी है। संस्थान के बैनर तले बर्त्वाल जी के इस ऐतिहासिक प्रयास को उनकी मृत्यु के बाद लगातार आगे बढ़ाने की बड़ी चुनौती है।
योगम्बर सिंह बर्त्वाल जी ने प्रारम्भिक शिक्षा रडुवा, हाई स्कूल नागनाथ और इंटरमीडिएट की शिक्षा छिनका गमशाली स्थित विद्यालय से पूरी की। दृष्टि विज्ञान की व्यावसायिक शिक्षा ओ0डी0, बनारस से हासिल की। वे दून अस्पताल देहरादून से सेवानिवृत्त हुए । स्वास्थ्य विभाग में नौकरी लगने से पहले बर्त्वाल जी ने भारतीय पत्रकारिता विद्यापीठ, नई दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा भी किया। उन्होंने गढ़वाल विश्वविद्यालय से एमए, एलएलबी की शिक्षा प्राप्त की। विभिन्न स्थानों पर राजकीय सेवा का दायित्व बखूबी निभाते हुए उन्होंने लेखन के माध्यम से अपनी सृजनात्मक अभिरुचि को विकसित किया। उनके पत्र-पत्रिकाओं में लेख छपे और आकाशवाणी से कई वार्ताओं का प्रसारण हुआ। ‘मंगसीरू उत्तराखंड में‘ शीर्षक से प्रकाशित उनकी पुस्तक काफी लोकप्रिय है। इसमें समसामयिक जनजीवन के पहलुओं को चुटीले अंदाज में रखा गया है और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों से सवाल हैं। ‘यायावर ययाति के पत्र‘ समाज की समस्याओं को रणनीतिकारों और पाठकों के सामने रखते हैं। इन दिनों वे संविधान सभा के सदस्य रहे ठाकुर किशन सिंह और प्रसिद्ध मूर्तिकार व लखनऊ आर्ट कॉलेज के डीन (प्रोफेसर)अवतार सिंह पंवार पर पुस्तक लिख रहे थे। अपने पेशे से जुड़े विषयों में उन्होंने ‘लो विजन एड डिवाइसेस‘, ‘रोल आफ आप्टोमैट्रिस्ट इन प्रिवेंशन आफ ब्लाइंडनेस‘ और ‘नेत्रदान‘ पुस्तकों का संपादन किया।
योगम्बर सिंह जी के बहुमुखी कार्यों और किसी वैचारिक खांचे में बंधकर नहीं रह जाने की वजह से उनके सहयोगियों, मित्रों, प्रशंसकों का दायरा काफी बड़ा था। यह बात 3 सितम्बर को चन्द्र कुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान द्वारा देहरादून के उत्तरांचल प्रैस क्लब में आयोजित दिवंगत बर्त्वाल की श्रद्धांजलि सभा में भी दिखाई दी। श्रद्धांजलि सभा में मंचासीन लोगों में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज भी रहे तो कांग्रेस नेता पूर्व कैबिनेट मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण भी रहे। डाॅ0 बर्त्वाल के परिजनों के साथ सभागार में मौके पर वाम दलों के नेता और उत्तराखंड आंदोलनकारी भी मौजूद रहे। साहित्यकार , पत्रकार, रंगकर्मी, शिक्षक, सेवानिवृत्त चिकित्साधिकारी, सेवानिवृत्त सैन्य कर्मी वहां उपस्थित थे। श्रद्धांजलि सभा में जहां वक्ताओं ने योगम्बर सिंह बर्त्वाल को अद्भुत जिजीविषा युक्त और समाजोपयोगी कृतित्व के प्रति समर्पित व्यक्तित्व बताया वहीं सभी ने हिमवंत कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल संबंधी रचना संसार को और अधिक सुलभ और प्रचारित करने पर सहमति दिखाई। वक्ताओं ने कहा कि डाॅ0 बर्त्वाल को गढ़वाल की ऐतिहासिक घटनाओं के विवरण दिन और वर्ष के साथ याद थे। केंद्र और उत्तर प्रदेश की राजनीतिक घटनाओं के बारे में उनकी याददाश्त कमाल की थी। साथियों के लिए कई जानकारियों के लिए योगम्बर सिंह बर्त्वाल जी बहुत आसानी से उपलब्ध संदर्भ स्रोत थे। अगर आप बर्त्वाल जी से कुछ देर बात करेंगे तो अवश्य ही कोई ऐसी जानकारी मिलेगी जिसे आप पहले नहीं जानते थे। यह भी एक बड़ी वजह है कि चाय की दुकान हो या गंभीर बहसों की बैठक, योगम्बर सिंह जी की उपस्थिति वांछित रहती। सही मायने में कहें तो वे एक चलती-फिरती लाइब्रेरी की तरह थे। उन्होंने राजनीति में धर्म के इस्तेमाल का हमेशा विरोध किया। वे किसी खास राजनैतिक दल से बंधे नहीं थे हालांकि उनका झुकाव प्रायः कांग्रेस की ओर था।
योगम्बर सिंह बर्त्वाल जी ने प्रारम्भिक शिक्षा रडुवा, हाई स्कूल नागनाथ और इंटरमीडिएट की शिक्षा छिनका गमशाली स्थित विद्यालय से पूरी की। दृष्टि विज्ञान की व्यावसायिक शिक्षा ओ0डी0, बनारस से हासिल की। वे दून अस्पताल देहरादून से सेवानिवृत्त हुए । स्वास्थ्य विभाग में नौकरी लगने से पहले बर्त्वाल जी ने भारतीय पत्रकारिता विद्यापीठ, नई दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा भी किया। उन्होंने गढ़वाल विश्वविद्यालय से एमए, एलएलबी की शिक्षा प्राप्त की। विभिन्न स्थानों पर राजकीय सेवा का दायित्व बखूबी निभाते हुए उन्होंने लेखन के माध्यम से अपनी सृजनात्मक अभिरुचि को विकसित किया। उनके पत्र-पत्रिकाओं में लेख छपे और आकाशवाणी से कई वार्ताओं का प्रसारण हुआ। ‘मंगसीरू उत्तराखंड में‘ शीर्षक से प्रकाशित उनकी पुस्तक काफी लोकप्रिय है। इसमें समसामयिक जनजीवन के पहलुओं को चुटीले अंदाज में रखा गया है और जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों से सवाल हैं। ‘यायावर ययाति के पत्र‘ समाज की समस्याओं को रणनीतिकारों और पाठकों के सामने रखते हैं। इन दिनों वे संविधान सभा के सदस्य रहे ठाकुर किशन सिंह और प्रसिद्ध मूर्तिकार व लखनऊ आर्ट कॉलेज के डीन (प्रोफेसर)अवतार सिंह पंवार पर पुस्तक लिख रहे थे। अपने पेशे से जुड़े विषयों में उन्होंने ‘लो विजन एड डिवाइसेस‘, ‘रोल आफ आप्टोमैट्रिस्ट इन प्रिवेंशन आफ ब्लाइंडनेस‘ और ‘नेत्रदान‘ पुस्तकों का संपादन किया।
योगम्बर सिंह जी के बहुमुखी कार्यों और किसी वैचारिक खांचे में बंधकर नहीं रह जाने की वजह से उनके सहयोगियों, मित्रों, प्रशंसकों का दायरा काफी बड़ा था। यह बात 3 सितम्बर को चन्द्र कुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान द्वारा देहरादून के उत्तरांचल प्रैस क्लब में आयोजित दिवंगत बर्त्वाल की श्रद्धांजलि सभा में भी दिखाई दी। श्रद्धांजलि सभा में मंचासीन लोगों में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज भी रहे तो कांग्रेस नेता पूर्व कैबिनेट मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण भी रहे। डाॅ0 बर्त्वाल के परिजनों के साथ सभागार में मौके पर वाम दलों के नेता और उत्तराखंड आंदोलनकारी भी मौजूद रहे। साहित्यकार , पत्रकार, रंगकर्मी, शिक्षक, सेवानिवृत्त चिकित्साधिकारी, सेवानिवृत्त सैन्य कर्मी वहां उपस्थित थे। श्रद्धांजलि सभा में जहां वक्ताओं ने योगम्बर सिंह बर्त्वाल को अद्भुत जिजीविषा युक्त और समाजोपयोगी कृतित्व के प्रति समर्पित व्यक्तित्व बताया वहीं सभी ने हिमवंत कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल संबंधी रचना संसार को और अधिक सुलभ और प्रचारित करने पर सहमति दिखाई। वक्ताओं ने कहा कि डाॅ0 बर्त्वाल को गढ़वाल की ऐतिहासिक घटनाओं के विवरण दिन और वर्ष के साथ याद थे। केंद्र और उत्तर प्रदेश की राजनीतिक घटनाओं के बारे में उनकी याददाश्त कमाल की थी। साथियों के लिए कई जानकारियों के लिए योगम्बर सिंह बर्त्वाल जी बहुत आसानी से उपलब्ध संदर्भ स्रोत थे। अगर आप बर्त्वाल जी से कुछ देर बात करेंगे तो अवश्य ही कोई ऐसी जानकारी मिलेगी जिसे आप पहले नहीं जानते थे। यह भी एक बड़ी वजह है कि चाय की दुकान हो या गंभीर बहसों की बैठक, योगम्बर सिंह जी की उपस्थिति वांछित रहती। सही मायने में कहें तो वे एक चलती-फिरती लाइब्रेरी की तरह थे। उन्होंने राजनीति में धर्म के इस्तेमाल का हमेशा विरोध किया। वे किसी खास राजनैतिक दल से बंधे नहीं थे हालांकि उनका झुकाव प्रायः कांग्रेस की ओर था।