गैरसैंण को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का सोशल मीडिया पर ट्वीट…

गैरसैंण को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का सोशल मीडिया पर ट्वीट…

गैरसैंण को लेकर पिछले दिनों आये एक समाचार ने मेरी मनोस्थिति को झकझोरा है। एक तरफ तो मन में भाव आता है कि हरीश जब तेरी भावना का सही मूल्यांकन ही नहीं किया जा रहा है तो फिर इस मामले में चुप हो जाना ही अच्छा है। तर्क कहता है कि और भी बहुत सारे दर्द हैं उत्तराखंड में गैरसैंण के सिवाए।

शायद इसी भावना से प्रेरित होकर मैं दो बार सार्वजनिक रूप से कह चुका हूं कि गैरसैंण के लिए अब मैं आगे राजनैतिक यात्रा नहीं करूंगा। फिर कोई शक्ति मेरे अंतर मन को झकझोरती है और कहती है कि हरीश उन लाखों-लाख उत्तराखंडियों, जिन्होंने यह उद्घोष किया कि राजधानी गैरसैंण-गैंरसैंण, उनकी भी तो कुछ सोच, समझ व भावना रही होगी!

गैरसैंण का समाधान केवल राजनीतिक दल और उसकी सरकार ही कर सकती है। कुछ कहो और कुछ वादा करो तो फटकार, यदि वादा न करो तो सन्नाटा। यदि सन्नाटा ऐसे ही पसरा रहा तो इस भावना, यदि गैरसैंण राजधानी हो गई होती तो गांव-गांव में स्कूल, अस्पताल, पानी, बिजली, सड़क आदि की समस्या का समाधान हो गया होता, उस दिशा में कैसे आगे बढ़ा जाएगा?

यूं अब तो यह तथ्य सारे उत्तराखंड को स्वीकार करना चाहिए कि हमारी #कांग्रेस_सरकार ने गैरसैंण-भराड़ीसैंण में इतना इंफ्रास्ट्रक्चर बना दिया है और संस्थाएं खड़ी कर दी है कि वहां यदि आज की सरकार चाहे तो ग्रीष्मकालीन राजधानी के अपने वादे को तत्काल पूरा कर सकती है। केवल अटैची लेकर ही तो जाना है।
हमारे राज्य की विडंबना यह है जो करता है वह डांट खाता है, उसकी आलोचना होती है और उसे दंडित किया जाता है। जो सोचता है, वह फटकार खाता है और जो कुछ नहीं करता है उसकी जय-जय कार होती है। हमारे राज्य में काम करने वाले को ठेंगा और जो गलमरा है उसको सारे पुरस्कार दिए जाते हैं। उत्तराखंड को अपना यह स्वभाव बदलना पड़ेगा। तभी पलायन, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अनियोजित व असंतुलित विकास, दलित और कमजोर महिलाओं पर अत्याचार और बलात्कार जैसे कलंकों से छुट्टी मिलेगी।

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