देहरादून। डोला-पालकी आन्दोलन के ध्वजवाहक महान् स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं समाज सुधारक स्व० जयानन्द भारतीय गढ़वाल में अंग्रेजों और प्रतिक्रियावादियों के लिए एक बड़ी चुनौती थे। उन्होने शिल्पकारों को भूमि अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन किया और एक जातिविहीन समाज की स्थापना के लिए हमेशा संघर्षरत रहे।
उक्त बात प्रदेश के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने सोमवार को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं समाज सुधारक स्व० जयानन्द भारतीय के 141वें जन्म दिवस पर संस्कृति विभाग के प्रेक्षागृह में बीरोंखाल जिला निर्माण एवं जन विकास समिति, शारदा संगम व पहाड़ों की आवाज संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कही।
कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि यह हमारे गर्व की बात है कि आज हम अपने प्रेरणा स्रोत रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं समाज सुधारक स्व० जयानन्द भारतीय का 141वां जन्म दिवस मना रहे हैं। उन्होने बताया कि भारतीय जी ने बीरोंखाल स्थित पंचपुरी में अनेक समाज सुधार के काम किए। उन्होंने डोला पालकी आंदोलन का नेतृत्व किया। सामाजिक विसंगति के चलते उस समय दूल्हा पालकी पर नहीं जा सकता था और दुल्हन डोली पर सवारी नहीं कर सकती थी। जबकि वर-वधू की पालकी और डोली को शिल्पकार समाज के लोगों को ही ढोना पड़ता था। उन्होने इसके खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने इस कुप्रथा के खिलाफ महात्मा गांधी से मुलाकात की और उनसे शिल्पकारों की दुर्दशा की शिकायत करते हुए हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया।
महाराज ने बताया कि स्व० जयानन्द भारतीय का डोला पालकी आंदोलन बाद में स्वतंत्रता आंदोलन का एक हिस्सा बन गया था। उन्होने 13 जून 1932 को संयुक्त प्रांत के गवर्नर लॉर्ड मैल्कम हेली को पौड़ी जिला मुख्यालय पर तिरंगा झंडा दिखाया, जिसके लिए उन्हें कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। स्वतंत्रता के प्रबल योद्धा के रूप में जयानंद भारती को छह बार जेल भी जाना पड़ा।
उन्होने कहा कि समाज को सुधारने की जयानंद भारती की प्रकृति रही है। दलितों को यज्ञोपवीत धारण करने के आर्य समाज के संस्कार उन्होंने ही क्षेत्र में फैलाये। जब मैं पहली बार सांसद बना तो अपनी सांसद निधि सबसे पहले पंचपुरी को ही दी। समाज के प्रति जयानंद भारती जी के समर्पण और स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए पंचपुरी बीरोंखाल में उनके जन्मदिन पर आयोजित होने वाले मेले को मैंने राजकीय मेला घोषित किया। राजनीतिक की संकीर्ण मानसिकता में हम अपने महापुरुषों को बुलाते जा रहे हैं ऐसा नहीं होना चाहिए। महान विभूतियों का क्षेत्र किसी भी सूरत में उपेक्षित नहीं रहना चाहिए।
स्व० जयानन्द भारतीय के जन्मोत्सव पर नरेंद्र रौथाण के सांस्कृतिक दल शारदा संगम द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रंगारंग प्रस्तुति भी की गई।
इस इस अवसर पर डॉक्टर अरुण प्रकाश ढौडियाल, मोहन सिंह कंडारी, पी.एस. बिष्ट, कर्नल सूरजपाल नेगी, आलम सिंह रावत, कैलाश मढवाल, भूपेंद्र सिंह बिष्ट, राजेंद्र सिंह रावत, विक्रम सिंह बिष्ट, मेहरबान सिंह रावत और नरेंद्र रौथाण आदि उपस्थित थे।