दस अक्तूबर को हेमकुंड साहिब और तीन नवंबर भाई दूज के दिन बाबा केदार के कपाट शीतकाल के लिए होंगे बंद

दस अक्तूबर को हेमकुंड साहिब और तीन नवंबर भाई दूज के दिन बाबा केदार के कपाट शीतकाल के लिए होंगे बंद

देहरादून। उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित सिक्खों के पवित्र धर्म स्थल हेमकुंड साहिब की यात्रा अपने अंतिम चरण में पहुंच गई है। 10 अक्तूबर गुरुवार को हेमकुंड साहिब के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे।

कपाट बंद होने को लेकर गुरुद्वारा प्रबंधन की ओर से सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। कपाट बंद होने के एक दिन पूर्व राज्यपाल ले. जनरल (सेनि) गुरमीत सिंह हेमकुंड साहिब दर्शन के लिए पहुंचेंगे। 10 अक्तूबर दोपहर 12:30 बजे अंतिम अरदास पढ़ी जाएगी। जिसके बाद पंच प्यारों की अगुवाई में गुरुग्रंथ साह को सचखंड में सोवित किया जाएगा। रविवार तक हेमकुंड साहिब में 181107 श्रद्धालुओं ने दर्शन किए हैं। पिछले साल दो लाख पांच हजार यात्री पहुंचे थे।

गुरुद्वारा प्रबंधक सेवा सिंह ने बताया कि कपाट बंद करने को लेकर सभी तैयारियां पूरी हो गई हैं। वहीं राजभवन से जारी कार्यक्रम के अनुसार राज्यपाल देहरादून से नौ अक्तूबर को सुबह 8:35 पर ब हेलीकॉप्टर से करीब साढ़े नौ बजे घांघरिया पहुंचेंगे। वहां से घोड़े से हेमकुंड साहिब जाएंगे और उसी दिन ज्योतिर्मठ आने के बाद देहरादून लौट जाएंगे।

केदारनाथ मंदिर के कपाट पूर्व परम्परा के अनुसार इस शीतकाल हेतु 03 नवंबर,  2024 को भाईदूज के दिन प्रातः 8 बजकर 30 मिनट पर बंद किए जाएंगे।
बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्याकारी अधिकारी विजय प्रसाद थपलियाल ने जानकारी देते बताया कि केदारनाथ मंदिर के कपाट पूर्व परम्परा के अनुसार इस शीतकाल हेतु 03 नवंबर, 2024 को भाई दूज के दिन प्रात 8 बजकर 30 मिनट पर बंद किए जाएंगे।

उन्होंने बताया कि केदारनाथ भगवान की चल-विग्रह डोली यात्रा कार्यक्रम के अनुसार 03 नवंबर को चल-विग्रह डोली केदारनाथ मंदिर से प्रातः 8ः30 बजे प्रस्थान होगी। इसके उपरांत रात्रि विश्राम हेतु रामपुर पहुंचेगी। 04 नवंबर को केदारनाथ भगवान की चल-विग्रह डोली रामपुर से प्रातः प्रस्थान होगी तथा फाटा, नाराय कोटी होते रात्रि विश्राम हेतु विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी पहुंचेगी। 05 नवंबर को चल-विग्रह डोली विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी से प्रातः 8ः30 बजे प्रस्थान कर प्रातः 11ः20 बजे अपने शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ पहुंचेगी तथा पूर्व परम्परा के अनुसार अपने गद्दी स्थल पर विराजमान होंगी।

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