‘माहरा’ से मीलों आगे ‘महेंद्र’ (पढ़िए पूरी खबर)

‘माहरा’ से मीलों आगे ‘महेंद्र’ (पढ़िए पूरी खबर)

कुलदीप सिंह राणा/ देहरादून।
विधानसभा चुनाव 2022 के बाद प्रदेश में दोनों राष्ट्रीय दलों ने बड़े बदलाव किए। हार के कारण कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल की कुर्सी चली गयी और जीत के बावजूद मदन कौशिक भी अपनी कुर्सी बचाने में नाकामयाब रहे। देश की राजनीति में शायद ही ऐसे चौंकाने वाले निर्णय कभी हुए हों, जब राष्ट्रीय दलों नें अपनी पार्टी की कमान हारे हुए सिपाहियों को सौंप दी हो। उत्तराखंड में यही हुआ। कांग्रेस में करण माहरा और बीजेपी में महेंद्र भट्ट प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किए गए।
दोनों लगभग समान आयु के राजनीतिक युवा हैं। करण माहरा की नियुक्ति के लगभग चार माह बाद महेंद्र भट्ट की ताजपोशी हुई। बावजूद इसके महेंद्र भट्ट सांगठनात्मक नेतृत्व में करण माहरा से काफ़ी आगे निकल गए। एक माह के भीतर ही प्रदेश कार्यकारिणी का गठन कर अपने इरादों के संकेत दे डाले, वहीं कांग्रेस के नए कप्तान आज भी पुरानी टीम से ही काम चला रहे हैं। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि प्रदेश कांग्रेस पूर्व अध्यक्ष प्रीतम सिंह एवं पूर्व सीएम हरीश रावत में बंटी हुई है।
कांग्रेस में दोनों धड़ों में  संतुलन साधना करण माहरा के लिए विकट चुनौती थी, जो आज भी जस की तस बनी हुई है। कमान सँभालते हुए माहरा ने आत्मविश्वास से भरे अंदाज में कहा था कि, ‘‘यहां न मेरा कोई गुट होगा, न हरीश रावत का होगा, न प्रीतम सिंह का।’’
उक्त तमाम  झंझावतों के बीच वर्ष 2022 बीत गया। 2023 की जनवरी भी चली गई है, लेकिन माहरा कांग्रेस में कोई बदलाव करने में सफल हुए हों, ऐसा नहीं दिखता है। इसके उलट भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी में महेन्द्र भट्ट क्षेत्रीय व जातीय संतुलन साधते हुए वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव का लक्ष्य लेकर सभी जिलों को प्रदेश संगठन में दायित्व सौंप चुके हैं। उन्होंने पार्टी के विभिन्न प्रकोष्ठों में कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंप दी है। भाजपा में सभी मोर्चा का गठन भी हो चुका है, जिसका नतीजा यह है कि अब उत्तराखंड बीजेपी का संगठनात्मक ढांचा कांग्रेस से मीलों आगे निकल गया है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि भाजपा के भीतर भी अंतर्विरोध है, किंतु वह खुलकर सार्वजनिक नहीं हो पाता है। यहां अनुशासन का डंडा ज्यादा सख्त बना दिया गया है। वहीं कांग्रेस में अभी संगठन विस्तार को लेकर उहापोह की स्थिति बनी हुई है।
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि करण माहरा, प्रीतम सिंह व हरीश रावत के बीच पेंडुलम की तरह  झूलते रहे हैं और धड़ों में बंट चुके कांग्रेस कार्यकर्ताओं को पार्टी लाइन से इतर एक दूसरे के खिलाफ मीडिया में सार्वजानिक बयानबाजी से भी रोक पाने में असमर्थ दिख रहे हैं। इसका एक बड़ा करण यह भी माना जा रहा है कि अनेक अवसरों पर जब खुद माहरा अपने वरिष्ठ नेताओं को भी कटघरे में खड़ा करने से नहीं चूकते हंै तो वह कार्यकर्ताओं पर कैसे लगाम लगा सकते हैं, जबकि महेंद्र भट्ट भाजपा में संगठन, सरकार और पूर्व मुख्यमंत्रियों के बीच संतुलन साधने में काफी सफल नजर आते हैं।
महेंद्र भट्ट के इस सांगठनात्मक कौशल को समझने के लिए भाजपा में उनकी शुरुआत को देखना होगा। वर्ष 1992 के  राम मंदिर आंदोलन की ऊष्मा से तप कर निकले महेंद्र भट्ट संगठन में विभिन्न दायित्वों पर रहते हुए आज अध्यक्ष पद तक पहुंचे हैं। वहां से अनुभवों का लाभ अब वह सरकार व संगठन में  संतुलन के साथ विस्तार करने में ले रहे हैं।
10 अप्रैल 2022 को अध्यक्ष बने कारण माहरा अभी तक कांग्रेस को एकजुट करने में सफल नहीं हो सके हैं। ऐसे में वर्ष 2023 में होने वाले निकाय चुनाव में कांग्रेस कैसे भाजपा का सामना करेगी, इस पर सवाल खड़े होने लगे हैं, वहीं भाजपा निकाय चुनाव को लेकर पहले से ही तैयार खड़ी दिख रही है।
यहां यह बात भी दीगर है कि मदन कौशिक का गृह जनपद होने के बावजूद विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन हरिद्वार में पिछले चुनाव की तुलना में  अच्छा नहीं रहा, जिले में भाजपा मात्र ३ सीटों पर ही कमल खिला सकी। बावजूद इसके अध्यक्ष का दायित्व संभालने के मात्र दो माह के भीतर उसी जिले में हुए पंचायत चुनावों में पार्टी को भारी जीत दिलवाकर महेंद्र भट्ट ने अपने कुशल सांगठनिक नेतृत्व कौशल का लोहा मनवा लिया था।
2024 के लोकसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरु हो गयी है। भाजपा के राष्ट्रीय एवं प्रदेश नेतृत्व ने इसके लिए कमर कस ली है। हाल ही में दिल्ली में सम्पन्न हुई भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका बिगुल भी बजा दिया है, वहीं दिल्ली से लौटकर महेन्द्र भट्ट ने कार्यकर्ताओं को घर-घर तक भाजपा सरकार के कार्यों को पहुंचाने का  टास्क दे दिया है। जिसका लाभ निश्चित तौर पर भाजपा के खाते में जायेगा। वहीं कांग्रेस अब आगे क्या कदम उठाएगी और कितनी सफल होंगी यह सवाल समय के कटघरे में अनुत्तरित है?
(लेखक राज्य स्तरीय स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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