दून विनर संवाददाता/ देहरादून
कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दे रही भाजपा ने इस बार उत्तराखंड विधानससभा चुनाव में 47 सीटें जीतकर मतदान के बाद सत्ता में वापसी के लिए जश्न के मूड में दिखी। कांग्रेस को केवल 19 सीटों पर ही सीमित कर जबर्दस्त धक्का पहुंचाया है, परन्तु मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की हार ने भाजपा को भी बगैर जख्म के नहीं रहने दिया।
मुख्यमंत्री की हार से भाजपा हाईकमान की कसरत इस कदर उलझ चुकी है कि वर्तमान विधानसभा के कार्यकाल की अवधि पूरी होने के तीन दिन पहले तक मुख्यमंत्री को लेकर असमंजस की हालत बनी हुई है। भाजपा के बेकरार हुए कई विधायक मुख्यमंत्री का नाम जानने के लिए मीडिया वालों की भी थाह ले रहे हैं। पार्टी के नेताओं के साथ मीडिया को भी कयास लगाते आज नौवां दिन हो गया है पर फिर भी दिल्ली के दरबार से कोई पक्की खबर नहीं आई। अब कहा जा रहा है कि 20 मार्च को देहरादून में विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री को लेकर निर्णय होगा। जब विधायकों की आम सहमति से मुख्यमंत्री के लिए नाम तय होना है तो ये बैठक होली से पहले भी की जा सकती थी, हालांकि ये छुपी बात नहीं रह गई है कि मुख्यमंत्री दिल्ली में तय होते हैं और औपचारिक तौर पर विधायकों को उनके नाम पर मुहर लगाने को दून में बैठक बुलाने की रश्म अदायगी की जाती है, और ये पैटर्न निवर्तमान भाजपा सरकार में तीनों मुख्यमंत्रियों के चयन में भी सामने आ चुका है। दिल्ली में पर्दे के पीछे नौ दिनो से मुख्यमंत्री के लिए जोड़, घटा, गुणा, भाग चल रहा है। मीडिया अब तक मुख्यमंत्री के घोषित उम्मीदवार मुख्यमंत्री धामी के साथ सतपाल महाराज, प्रेमचंद अग्रवाल, धन सिंह रावत, मदन कौशिक, रेखा आर्य, ऋतु खंडूड़ी, अनिल बलूनी, रमेश पोखरियाल निशंक और अजय भट्ट के नामों को फेंट चुका है। असल में मुख्यमंत्री कौन होगा यह भाजपा हाईकमान के सिवाय किसी को पता नहीं है।
यूं भी दो तिहाई के आरामदायक बहुमत के साथ सत्ता में पहुंची भाजपा के लिए मुख्यमंत्री के नाम पर निर्णय पहेली नहीं हो सकता पर ये बात समझ से बाहर है कि पार्टी हाईकमान इसे आखिर तक लटकाने में क्यों लगा है? महंगाई, बेरोजगारी और लुंज-पुंज शिक्षा व्यवस्था की हालत से प्रदेश को राहत देने के लिए नई सरकार से ही कुछ उम्मीद की जा रही है, पर सरकार बनाने को जिम्मेदार दल में मुख्यमंत्री के चयन पर ही मामला अटका पड़ा है।