मतदान प्रतिशत के साथ प्रतिभागी दलों की संख्या घटी, प्रदेश में 2012 और 2017 विधानसभा चुनाव के बीच बढे रिकॉर्ड मतदाता

मतदान प्रतिशत के साथ प्रतिभागी दलों की संख्या घटी, प्रदेश में 2012 और 2017 विधानसभा चुनाव के बीच बढे रिकॉर्ड मतदाता

दून विनर संवाददाता/ देहरादून
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद वर्ष 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव से लेकर वर्ष 2022 के पांचवें विधानसभा चुनाव तक चुनावी आंकड़ों की जुबानी में प्रदेश की चुनावी तस्वीर में अलग-अलग रंग उभरे और उतरे हैं, पर भाजपा और कांग्रेस का रंग इस तस्वीर के फलक पर पूरी तरह चमकता रहा है। इनके राजनैतिक दबदबे को कोई अन्य दल चुनौती नहीं दे पाया है।
चुनाव की पूरी जंग में दोनों दलों के दाव-पेंच पर सियासत का पहिया अपनी मंजिल की ओर जाता है। इस विधानसभा चुनाव में भी भाजपा और कांग्रेस ने 82 प्रतिशत से अधिक मतों पर कब्जा जमाया है। दोनों दलों के हिस्से कुल मिलाकर 66 सीटें गई हैं। केवल चार सीटों पर अन्य दलों की जीत हुई जिनमें दो बसपा और दो निर्दलियों के हिस्से गईं हैं। चुनावों में राजनैतिक दलों की भागीदारी से बात शुरू करें तो वर्ष 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में 6 राष्ट्रीय दलों, स्टेट पार्टी में एकमात्र सपा, 8 स्टेट पार्टी (अन्य स्टेट) व 13 पंजीकृत गैर मान्यताप्राप्त दलों ने भाग लिया। यूकेडी पंजीकृत गैर मान्यताप्राप्त दलों में था। इसके बाद वर्ष  2007 में हुए विधानसभा चुनाव में 6 राष्ट्रीय दलों, यूकेडी व एसपी समेत 11 राज्य पार्टी और 20 पंजीकृत गैर मान्यताप्राप्त दलों ने भाग लिया था। वर्ष 2012 में हुए तीसरे विधानसभा चुनावों में 6 राष्ट्रीय दलों, स्टेट पार्टी में एकमात्र यूकेडी, 9 स्टेट पार्टी (अन्य राज्य) और 27 पंजीकृत गैर मान्यताप्राप्त दलों ने हिस्सा लिया। वर्ष 2017 में हुए चौथे विधानसभा चुनाव में 6 राष्ट्रीय दल, 4 स्टेट पार्टी (अन्य स्टेट), 24 पंजीकृत गैर मान्यताप्राप्त राजनैतिक दलों की भागीदारी रही। विधानसभा चुनाव 2022 में 5 राष्ट्रीय दलों और 18 पंजीकृत गैर मान्यताप्राप्त दलों ने अपने प्रत्याशी उतारे।
अब तक हुए पांच विधानसभा चुनावों में कुल प्रत्याशियों की संख्या क्रमशः 927, 785, 788, 637 और 632 रही है, वहीं महिला प्रत्याशियों की संख्या 72, 56 ,63, 62 व 62 रही। महिला प्रत्याशियों की हिस्सेदारी का अनुपात किसी भी चुनाव में दो अंकों में नहीं पहुंच पाया, हालांकि राज्य में पंचायतों में 50 फीसदी सीटें महिलाओं को सुरक्षित की गई हैं। कुल मतदाताओं की संख्या के मामले में इन चुनावों में पंजीकृत सामान्य व सर्विस मतदाताओं को जोड़ने पर कुल संख्या  5270375, 5985302, 6377330, 7606688, 8238187 रही। कुल मतदाताओं की संख्या में, पिछले विधानसभा चुनाव से तुलना करने पर यह बढोतरी 2007 में 13.57 फीसदी, 2012 में 6.55 फीसदी, 2017 में 19.28 फीसदी और 2022 में 8.30 फीसदी की है।ं
मतदाताओं की संख्या में अधिक अनुपातिक बढोतरी 2007 और फिर 2017 के विधानसभा चुनावों में देखी गई है। वर्ष 2012 से 2017 के विधानसभा चुनाव में 5 साल के भीतर यह बढोतरी 20 फीसदी के पास पहुंच गई। असामान्य वृद्धि के कारणों की तह में जाने की जरूरत थी पर मामले पर ज्यादा गौर नहीं किया गया। अब तक हुए पांच विधानसभा चुनावों में कुल मतदान 54.34, 59.45, 66.80, 65.60 और 65.37 फीसदी रहा है।
पहले से तीसरे विधानसभा चुनाव तक मतदान प्रतिशत लगातार बढता गया और वह 66 फीसदी के पार चला गया पर चौथे विधानसभा चुनाव से मतदान प्रतिशत में गिरावट आ रही है। पहाड़ी जिलों में खासकर अल्मोड़ा, पौडी, टिहरी में कम मतदान चिंता का विषय है। राज्य गठन के बाद मतदाताओं में एक दशक में ही मतदान में घटती भागीदारी का रुझान पैदा होना कई तरह की आशंकाओं को पैदा करने वाला है। 2022 के विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक 74.77 फीसदी मतदान हरिद्वार और उसके बाद 72.27 फीसदी ऊधमसिंह नगर जिले में हुआ। अल्मोड़ा जिले में सबसे कम 53.71 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाले जबकि कम मतदान में 54.87 फीसदी के साथ पौड़ी जिला दूसरे स्थान पर रहा है।
अब राज्य में दो बड़े राजनैतिक दलों को मिले समर्थन पर नजर डाली जाए। पहले चुनाव में कांग्रेस को 26.91 फीसदी मत मिला और 36 सीटें हासिल हुईं।
2002 के विधानसभा चुनाव में सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ी कांग्रेस के 10 प्रत्याशियों की जमानत भी जब्त हो गई। भाजपा ने 69 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए और उसको 19 सीटों पर जीत मिली, कुल 25.45 फीसदी वोट मिले वहीं 12 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। दूसरे विधानसभा चुनाव में 69 सीटों पर चुनाव हुआ जिसमें भाजपा और कांग्रेस ने सभी सीटों पर अपने-अपने प्रत्याशी उतारे। सबसे बड़ा दल बने भाजपा को बहुमत नहीं मिला। उसे 34 सीटें मिली, 31.90 प्रतिशत मत मिले वहीं 7 प्रत्याशियों की जमानत भी जब्त हुई। कांग्रेस ने इस चुनाव में 29.59 फीसदी मत हासिल किए और 21 सीटें अपनी झोली में समेटी, वहीं 8 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। वर्ष 2012 के चुनाव में भी बहुमत के आंकड़े से दोनों दल फासले पर रहे पर मजेदार ये है कि दोनों में आपस में भी केवल एक सीट का ही फासला रहा। कांग्रेस को 32 सीटों और भाजपा को 31 सीटों पर विजय प्राप्त हुई, वहीं कांग्रेस के 4 प्रत्याशियों तो भाजपा के 3 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। मत फीसदी के मामले में कांग्रेस 33.79 और भाजपा 33.13 के आंकड़े पर रही थी। चौथे विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बाउंस बैक करते हुए 70 सीटों में से 57 पर जीत दर्ज कर पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में नया इतिहास रच दिया। भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव से 13.38 फीसदी ज्यादा यानी कुल  46.61 फीसदी वोट मिला और भाजपा के किसी भी प्रत्याशी को जमानत नहीं गंवानी पड़ी। इस चुनाव में कांग्रेस को 33.49 फीसदी वोट मिले पर केवल 11 सीटें ही उसके खाते में जा पाई। 70 प्रत्याशियों में 4 ने अपनी जमानत भी गंवाई।
2022 के चुनाव में भी असली जोर आजमाइश भाजपा और कांग्रेस में ही हुई। भाजपा ने 47 सीटों पर जीत दर्ज कर दो तिहाई सीटों पर कब्जा किया है। पार्टी को कुल 44.33 प्रतिशत मत और 23,83,838 वोट मिले। कांग्रेस ने 37.91 प्रतिशत मत व 20,38,509 वोट हासिल किए। कुल हासिल वोटों के मामले में भाजपा, कांग्रेस से 3,45,329 वोटों से आगे रही।.चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी को तीसरे क्रम की ताकत अधिकांश सर्वे बता रहे थे पर आप को केवल 3.31 फीसदी मत मिला है और कुल 1,78,134 मत प्राप्त हुए। चुनावी प्रदर्शन में अभी भी बसपा तीसरी ताकत बनी हुई है।
इस बार बसपा के दो प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। 2022 के चुनाव में बसपा को 4.82 फीसदी मत और कुल 2,59,371 वोट मिले हैं। बसपा का इस बार का मत प्रतिशत सबसे कम है। उत्तराखंड में बहुजन समाज पार्टी चुनावों में एक अहम ताकत के तौर पर मौजूद रही है, हालांकि चुनाव दर चुनाव उसकी सीटें कम होती गइंर् और 2017 में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। बसपा ने 2002 के चुनाव में 10.93 फीसदी मतों साथ 7 सीटों पर विजय पाई, दूसरे चुनाव में 11.76 फीसदी मत और 8 सीटें हासिल की वहीं वर्ष 2012 के चुनाव में बसपा को बढे हुए आंकड़े के साथ कुल 12.19 फीसदी मत मिले पर सीटों के तौर पर केवल 3 सीटों पर ही जीत मिली। 2017 में बसपा का मत प्रतिशत 6.98 पर सिमट गया। पूरी 70 सीटों पर नजर दौड़ाने पर पता चलता है कि बसपा के पहले चुनाव में 68 में से 55 प्रत्याशियों, दूसरे चुनाव में 69 में से 57 प्रत्याशियों, तीसरे चुनाव में 70 में से 52 प्रत्याशियों, चौथे विधानसभा चुनाव में 69 प्रत्याशियों में से 60 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई।ं ये बात भी सच है कि हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और नैनीताल जिले ही खासतौर पर बसपा के लिए उर्वरा साबित हुए हैं। पर्वतीय क्षेत्र की सीटों पर बहुजन समाज पार्टी का मत आधार काफी कमजोर रहा है और वह यहां भाजपा और कांग्रेस किसी को भी चुनौती देने की स्थिति में नहीं दिखाई दी।
यहां गौर करने वाली बात ये है कि मैदानी जिलों के विपरीत बहुधा पर्वतीय क्षेत्र में लोकप्रिय राजनैतिक दल के तौर पर वर्णित किए जाने वाले यूकेडी की चुनावी प्रदर्शन के संकेतक क्या कहते हैं। वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में यूकेडी ने पूरे जोशोखरोश से 62 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। उसे 4 सीटों पर विजय मिली और कुल 5.49 फीसदी मत मिले। अगले विधानसभा चुनाव में यूकेडी ने 61 सीटों पर चुनाव लड़ा और 5.49 फीसदी मत हासिल करने के साथ 3 सीटों पर जीत पाई। कई टुकड़ों में बंटने के बाद वर्ष 2012 का चुनाव आते-आते यूकेडी की सांगठनिक ताकत और जनाधार कम हो गए। 2012 में पार्टी ने केवल 44 सीटों पर ही चुनाव लड़ा, एक सीट पर विजय मिली और मत प्रतिशत भी गिरकर 1.93 पर आ गया। चौथे विधानसभा चुनाव में यूकेडी ने 54 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए पर सीट के लिहाज से खाता खुल नहीं पाया और इसके साथ ही इस बार केवल 0.74 फीसदी मत ही दल को मिले।
2022 के चुनाव में यूकेडी कुछ एकजुटता के साथ मैदान में उतरी पर उसका प्रदर्शन सुधरता हुआ नहीं दिखता है। इस बार पार्टी का मत प्रतिशत करीब एक प्रतिशत रहा है। यूकेडी प्रत्याशी पहले चुनाव में 54, दूसरे चुनाव में 52, तीसरे चुनाव में 41, चौथे चुनाव में 54 सीटों पर जमानत गंवा बैठे। चौथे चुनाव में दल के सभी प्रत्याशी जमानत से हाथ धो बैठे थे। जाहिर है यूकेडी का लगातार गिरता ग्राफ पार्टी के कर्णधारों को बड़ा सवाल बनकर सामने खड़ा है। यूकेडी के अलावा वोट शेयर की दृष्टि से समाजवादी पार्टी ने पहले दो विधानसभा चुनावों में कुल 6.27 फीसदी और 4.96 फीसदी मत प्राप्त कर चुनावी जंग में पांव जमाने की कोशिश की हालांकि उसका खाता नहीं खुला। इसके बाद वर्ष 2012 के चुनाव से सपा को केवल 1.41 फीसदी, 2017 के चुनाव में 0.37 और 2022 में और कम होकर 0.29 फीसदी वोट मिले हैं।
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