बाल रोग आनुवंशिकी एवं न्यूरो साइकियाट्रिक विकारों पर सत्र सफलतापूर्वक सम्पन्न

बाल रोग आनुवंशिकी एवं न्यूरो साइकियाट्रिक विकारों पर सत्र सफलतापूर्वक सम्पन्न

देहरादून। देवभूमि सोसायटी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (IAP) उत्तराखंड के सहयोग से “बाल रोग आनुवंशिकी एवं न्यूरो साइकियाट्रिक विकार” विषय पर एक सतत चिकित्सा शिक्षा (CME) कार्यक्रम का सफलतापूर्वक आयोजन किया। इस कार्यक्रम में प्रमुख बाल रोग विशेषज्ञों, आनुवंशिकी विशेषज्ञों और मनोचिकित्सकों ने शिरकत की और बच्चों में जटिल न्यूरोसाइकियाट्रिक एवं आनुवंशिक स्थितियों के निदान, प्रबंधन एवं उपचार में नवीनतम प्रगति पर चर्चा की।

कार्यक्रम का एक मुख्य आकर्षण डॉ. आस्तिक जोशी (बाल एवं किशोर तथा फॉरेंसिक मनोचिकित्सक, वेदा क्लिनिक एवं फोर्टिस हेल्थकेयर) का सत्र रहा। उन्होंने “डिजिटल युग में ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर की समझ” विषय पर विचार रखे।

डॉ. आस्तिक जोशी ने कहा, “आज का डिजिटल वातावरण बच्चों में ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) के लक्षणों, निदान और प्रबंधन पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। जहाँ एक ओर तकनीक ने संसाधनों तक पहुँच और शुरुआती हस्तक्षेप को आसान बनाया है, वहीं दूसरी ओर इसने नई चुनौतियाँ भी खड़ी की हैं—जैसे स्क्रीन टाइम का बढ़ना, आमने-सामने सामाजिक संपर्क में कमी और संवेदनात्मक (सेंसरी) ओवरलोड। ASD की प्रवृत्ति वाले बच्चों में यह प्रभाव और अधिक दिखाई देता है। ऐसे में डिजिटल उपयोग और वास्तविक जीवन के सामाजिक अनुभवों के बीच संतुलन बेहद आवश्यक है। आज आधुनिक निदान में व्यवहारिक अवलोकन के साथ-साथ आनुवंशिक आकलन को भी शामिल किया जा रहा है, जिससे हमें ASD को और व्यापक रूप से समझने में मदद मिल रही है। शोध से यह स्पष्ट है कि शुरुआती पहचान और समय पर हस्तक्षेप—संरचित थेरेपी और अभिभावक मार्गदर्शन के माध्यम से—बच्चों के विकासात्मक परिणामों को काफी बेहतर बना सकते हैं।”

इस CME में अन्य विशेषज्ञ वक्ताओं ने भी अहम विषयों पर चर्चा की। डॉ. वेरोनिका अरोड़ा ने “उपचार योग्य आनुवंशिक विकारों” पर जानकारी दी, वहीं डॉ. सुमीत धवन ने “बाल रोग अभ्यास में भाषण विलंब (स्पीच डिले)” पर प्रकाश डाला। इन सत्रों ने प्रतिभागियों को आनुवंशिकी और न्यूरोसाइकियाट्रिक विकारों के आपसी संबंध और चिकित्सा व तकनीक में हो रही प्रगति से बेहतर रोगी देखभाल के रास्ते समझाए।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. हंस वैष (अध्यक्ष, IAP उत्तराखंड), डॉ. रवि सहोता (सचिव, IAP उत्तराखंड) और डॉ. राकेश कुमार (कोषाध्यक्ष, IAP उत्तराखंड) द्वारा किया गया। इसके अलावा विशेषज्ञ चेयरपर्सन पैनल ने भी चर्चा को समृद्ध बनाया।

सत्र के समापन पर यह सहमति बनी कि जहाँ आनुवंशिकी कई बाल न्यूरोसाइकियाट्रिक विकारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, वहीं जीवनशैली के कारक—विशेषकर डिजिटल युग में—इन स्थितियों के लक्षणों और प्रगति को तेजी से प्रभावित कर रहे हैं।

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