लोग कहते हैं, देखो जी देहरादून बन रहा स्मार्ट सिटी!

लोग कहते हैं, देखो जी देहरादून बन रहा स्मार्ट सिटी!

आवारा मस्तराम की कलम से

स्मार्ट सिटी की सूची में देहरादून का नाम आते ही कुछ राजनैतिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों और मीडिया के भोंपुओं ने इसकी शान में कसीदे पढ़ डाले। प्रकृति ने दून घाटी को इतनी खूबसूरती और तरोताजा करने वाली आबोहवा दी है कि उसमें निर्माण कार्यों की इजाजत के लिए व्यवस्था में बैठे लोगों का संवेदनशील होना बहुत जरूरी है। लोग कहते हैं कि देहरादून सिटी को जब स्मार्ट बनाने का फरमान आया तो सिटी को स्मार्ट बनाने के लिए सबसे पहले सिटी एरिया का आस-पास के गाँवों तक विस्तार कर ग्रामीण क्षेत्र में अब तक बची कृषि जमीन के बेरोक-टोक क्रय-विक्रय का रास्ता सुलभ कराया गया।

कहते हैं कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को केन्द्र और राज्य सरकार बराबर की वित्तीय भागीदारी से बना रहे हैं। योजना से जुड़े अधिकारियों का दावा है कि राजधानी देहरादून को स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित करने के लिए कई बड़ी योजनाएँ चल रही हैं। शहर में बिजली-पानी के साथ में स्मार्ट पार्किंग बनाई जा रही है और चौराहों को भी खास तरह से विकसित किया जा रहा है।

जिले की कलेक्टर कहती हैं कि साल 2024 तक देहरादून को स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित कर दिया जाएगा यानी अगले साल तक काम पूरे कर लिए जाएँगे। लोग कहते हैं कि अब तक हुए कामों में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट ने मुख्य शहर में कई जलवे दिखाए हैं। कई नेता और अफसरों, रियल एस्टेट के कारोबारियों की नजर में खाली बची हुई जगह परेड ग्राउंड घूमा करती थी। स्मार्ट सिटी के नाम पर उसका ऐसा चीर-फाड़ कराया है कि उसे ग्राउंड नहीं सराउंड कह सकते हैं। उस सराउंड में जमीन के कई कम्पार्टमेंट बन रहे हैं। हालांकि उनमें सजावट अच्छी है। यह भी एक तरीका होता है। एक नजर देखेंगे तो कुछ-कुछ स्मार्ट के मायने भी समझ में आ जाएँगे। पैसों का कमाल है परन्तु अलमस्त सा दिखने वाला परेड ग्राउंड का मैदान ढूँढे नहीं मिल रहा है। कुछ समय बाद वहाँ प्रवेश के लिए भी पैसा लिया जा सकता है। करोड़ों खर्च कर रहे हैं तो उगाही भी करेंगे।

सरकार पुल, सड़क बनाती है तो प्राय: ठेके बेचकर वर्षों तक टोल टैक्स भी वसूलती है।  वाहन लेकर विभिन्न प्रदेशों में राष्ट्रीय राजमार्गों से घूमने वाले ही इसे बता सकते हैं कि टोल टैक्स से उनकी जेब पर कितनी मार पडती है। लोग कहते हैं कि स्मार्ट सिटी में अनिवार्य आवश्यकता पेयजल से लेकर पार्कों में सुस्ताने के भी पैसे देने होंगे। दुनिया में कई देशों में जलवे दिखाने के बाद देहरादून ही नहीं इस स्मार्ट सिटी के जलवे को देश के दर्जनों शहर भी देख रहे हैं। आने वाले वक्त में जो लोग दैनिक कार्य अथवा घूमने के लिए स्मार्ट सिटी की परिधि के दायरे में प्रवेश करेंगे उन्हें स्मार्ट सिटी में लघु शंका के निवारण के लिए भी दिन में कई बार पैसे चुकाने होंगे। आजकल स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के पैसों से कुछ ई बसें भी चलाई जा रही हैं। इनमें एयरकंडिशनर लगे हैं। बस में बैठने वाले यात्री खुश हो रहे हैं कि कितना स्मार्ट सफर हो रहा है। वे इलेक्ट्रिक सिटी बस में जाना पसंद करने लगे हैं। अभी किराया अन्य सिटी बसों की तरह है लेकिन कितने दिन तक यह चल सकेगा। स्मार्ट बस चलाने के लिए स्मार्ट किराया भी लगेगा यानी इन बसों में कुछ समय बाद दैनिक यातायात महंगा होगा। नहीं तो घाटे के चलते बसें बंद करनी पड़ेंगी।

स्मार्ट शहर में अब स्मार्ट विक्रम और ऑटो रिक्शा ही रह पाएँगे। पुराने डीजल अथवा पेट्रोल इंजन वाले विक्रम और ऑटो कुछ समय बाद शहर में नहीं आ सकेंगे। वे गैर स्मार्ट सिटी के हिस्से होंगे। स्मार्ट सिटी के भूत ने बेताल होकर निर्माणाधीन स्मार्ट सिटी में एक-एक कर पुराने या़त्री शेड भी उखाडऩे शुरू कर दिए हैं।

कुछ वर्ष पहले नगर निगम देेहरादून द्वारा एक-एक पर लाखों के खर्चे से शहर में कई यात्री शेड बनाए गए थे परन्तु उनमें से कइयों का आज नामो निशान मिट चुका है। कितना दुरुपयोग जनता से कर के तौर पर इकट्ठे किए गए पैसों का होता है? एक योजना में लगाते हैं दूसरी योजना में उजाड़ते हैं।

सीमेट, सरिया, ईंट, गारा बहुत कुछ बिका और ओहदाधारियों के हाथ कमीशन लगा परन्तु साधारण जनता को क्या मिला? स्मार्ट  शहर की सड़कों के चौड़ीकरण में यात्री शेड भी गायब हो चुके हैं। कहते हैं कि नगर निगम को स्मार्ट सिटी बनाने की धुन में यकायक यह समझ में आया कि यात्री शेड भी सड़कों पर अतिक्रमण है, इसलिए उन्हें उखाडऩे में जरा भी ना-नुकर नहीं हुई। तेज धूप, वर्षा में वाहनों की इंतजारी करते यात्री कहाँ पर खड़े हों या बैठें अब यही पता नहीं चल पा रहा है। बस स्टाप के बिना स्मार्ट बस वाले भी कहाँ बस रोक लेंगे ये कोई यात्री नहीं जान सकता। लोग कहते हैं कि बस में चढऩे के लिए यात्रियों को स्मार्ट बनना होगा। दौड़ लगाएँगे तो स्वास्थ्य को लाभ मिलेगा। ये फायदे की ही बात है।

लोग कहते हैं कि स्मार्ट सिटी ने शहर में तीन-चार साल से सड़कों, नाली, मैन होलों का हाल ऐसा किया हुआ है कि अगर किसी ने जरा भी असावधानी बरती तो फजीहत जरूर होगी। शहर के मार्गों का हाल देख लोग नाराजगी भी व्यक्त करते हैं, व्यापारी शिकायत करते हैं और इसके राजनैतिक निहितार्थ की आशंकाओं से चिंतित राजपुर विधायक और शहर के महापौर दोनों कई बार स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के अधिकारियों को फटकार भी लगाते हैं। पर जनाब इस पहिए को तेजी से घुमाना इतना आसान नहीं है। अब मानसून ज्यादा बरस गया तब सड़कों का हाल क्या होगा?

लोग कहते हैं कि उन्हें यह पता है कि कुछ बड़े लोग पुराने बसे-बसाए सुंदर शहर को स्मार्ट बनाने की ठान बैठे हैं, इसलिए जो होना है वह होगा ही। शायद इसी तरह की विवशता की स्थिति देख तुलसी दास भी ”होई सोई जेहि राम रचि राखा” कह गए हैं। कहीं ऐसा न हो कि एक दिन स्मार्ट सिटी और गैर-स्मार्ट सिटी के नागरिकों को पहचानने के लिए अलग से पहचान पत्र भी जारी होने लगें। आखिर स्मार्ट सिटी में रहना हर किसी के बस की बात नहीं होगी। यूजर चार्ज को वहन करना आसान नहीं रहेगा। यह लोगों के बीच एक और विभाजन की इबारत लिखने वाला है।  ऐसा लोग कहते हैं।

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