सरल-सौम्य स्वभाव के थे शेर सिंह दानू

सरल-सौम्य स्वभाव के थे शेर सिंह दानू

डॉ0 योगम्बर सिंह बर्त्वाल
अब उत्तराखण्ड में व केन्द्र में भी भाजपा की सरकार है, लेकिन सन् 1960-70 के दशक में कांग्रेस का एक छत्र राज था। संसोपा, प्रसोपा, कम्युनिस्ट पार्टी, जनसंघ जैसे अन्य राजनैतिक दल थे। उत्तर प्रदेश में सन् 1967 में पहली बार संविद सरकार चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में बनी फिर मध्यावधि चुनाव सन् 1969 में हुआ। उत्तर प्रदेश में उत्तराखण्ड से पहली बार जन संघ के विधायक शेर सिंह दानू चुने गए। यह अपने-आप में एक चमत्कार था कि पर्वतीय क्षेत्र में जहां कांग्रेस का दबदबा था चमोली जनपद के कर्णप्रयाग विधानसभा क्षेत्र से शेर सिंह दानू जनसंघ (बाद में भाजपा बनी) से भारी बहुमत से विजयी हुए। गढ़वाल कांग्रेस के नेता श्रीधर आजाद ने दो महीने पहले दानू की जीत की चर्चा कर दी थी। यह जीत शेर सिंह दानू के व्यक्तिगत प्रभाव की जीत थी। पूरी पिण्डर घाटी में शेर सिंह दानू के प्रति लोगों में अपार उत्साह था जिसकी परिणति दानू जी की जीत में हुई। कर्णप्रयाग से लेकर देवाल तक सम्पूर्ण पिण्डर घाटी में दानू को जिताने के लिए जनता उमड़ पड़ी थी। इस जीत के बाद से शेर सिंह दानू का नाम राजनैतिक क्षेत्र में फैल गया।
जन भावनाओं का यह सैलाब शेर सिंह दानू के प्रति अचानक नहीं उमड़ा। यह जनता के मन में उठी उमंग व उत्साह का परिणाम था। इसका कारण शेर सिंह दानू की उच्च शिक्षा, शालीनता व पारिवारिक पृष्ठ भूमि थी जो जनता के मन में हिलौरें मार रही थीं। शेर सिंह दानू उस पिछड़े क्षेत्र से उच्च शिक्षा प्राप्त पहले युवक थे। उनका जन्म 23 नवंबर 1925 को पिनाऊं गांव में हुआ था। शेर सिंह दानू के पिताजी देव सिंह दानू गढ़वाल रेजीमेंट में सुबेदार मेजर थे जो बाद में सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिंद फौज में ले0 कर्नल के पद पर रहते हुए नेताजी के बॉडी गार्ड बटालियन के कमांडिंग इन चीफ भी रहे। सुभाष चन्द्र बोस की आई0एन0ए0 में 4 गढ़वाली कमांडेंट थे। चारों बहुत बड़े नाम थे- कर्नल पितृ शरण रतूड़ी, कर्नल बुद्धि सिंह रावत, कर्नल खुशहाल सिंह रावत, ले0 कर्नल देव सिंह दानू। देव सिंह दानू बाद में आई0एन0ए0 के रंगून स्थित ट्रेनिंग स्कूल के कमांडेंट भी रहे। कर्नल पितृ शरण रतूड़ी व बुद्धि सिंह रावत आजादी के बाद भारत सरकार की सेवा में आ गए थे। करीब 3500 गढ़वाली सैनिक आई0एन0ए0 में थे। ब्रिगेडियर शाह नवाज खान, ब्रिगेडियर ढिल्लों, ब्रिगेडियर सहगल शीर्ष अधिकारी थे। ले0 कर्नल देव सिंह दानू की बड़ी ख्याति थी। उनके पुत्र शेर सिंह दानू देश की आजादी के समय किशोरावस्था को पार कर युवावस्था में प्रवेश कर गए थे। शेर सिंह दानू जी की प्रारम्भिक शिक्षा देहरादून स्थित कर्नल ब्राउन स्कूल में हुई, हाई स्कूल व इण्टर की शिक्षा राजकीय कॉलेज जयहरीखाल में हुई तथा बी0ए0, एम0ए0 (राजनीति विज्ञान) एवं एल0एल0बी0 की उच्च शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय से सन् 1942 से लेकर 1949 तक हुई।
एल0एल0बी0 की पढाई के बाद दानू जी ने वकालत के बजाय सामाजिक सेवा को जीवन का विषय बनाया। वे सादगी से रहते थे। पिण्डर घाटी की विकास योजनाओं के प्रति सचेष्ट रहते थे। सन् 1960 में चमोली तहसील का पृथक जनपद के रूप में निर्माण हो गया। सन् 1965 तक दानू जी सम्पूर्ण पिण्डर घाटी ही नहीं चमोली जनपद में लोकप्रिय हो गए थे। उनकी पत्नी लीला देवी के पिताजी बैनोली गांव के रतन सिंह थे व रतन सिंह के पिताजी नैन सिंह चिनवाण सुबेदार मेजर थे। पत्नी के चाचा कर्नल मेहरवान सिंह चिनवाण जी भारतीय सेना में महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित कर रहे थे। वे सन् 1962 में हुए स्टाफ सलैक्शन बोर्ड मेरठ के अध्यक्ष थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कुमार मंगलम जो बाद में भारतीय सेना में जनरल बने, याहियाखान जो पाकिस्तान में जनरल बने, दोनों कर्नल मेहरवान सिंह चिनवाण के साथ भारतीय सेना में रहे। कर्नल मेहरवान सिंह की पत्नी भाजपा की शीर्ष नेता विजय राजे सिंधिया की बहन थी।
सन् 1969 से 1974 तक दानू जी उत्तर प्रदेश में विधायक रहे। वे क्षेत्र के विकास के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते थे। उनके निवास, विधायक निवास, ए ब्लॉक-144 में लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले कई छात्र रहे थे जिनमें कोटद्वार के योगम्बर सिंह नेगी, जिला विद्यालय निरीक्षक उत्तरकाशी उमेद सिंह नेगी के पुत्र व अगस्तमुनि के कुंवर सिंह रावत आदि प्रमुख हैं। उनके निवास पर प्रायः जनसंघ के अग्रणी नेता ऋषि बल्लभ सुंदरियाल, अल्मोड़ा के पूर्व विधायक मोहन सिंह मेहता भी ठहरते थे। सन् 1985-87 में दानू जी गढ़वाल मण्डल विकास निगम के अध्यक्ष रहे। निगम में रहते उन्होंने बड़े बुनियादी कार्य किए।
सन् 1969 से सन् 1987 तक इन पंक्तियों के लेखक का उनसे काफी संपर्क रहा। सादा जीवन, उच्च विचार की वे प्रतिमूर्ति थे। राजनीति भी आदर्श तरीके से निभाते थे। उस दौर में गढ़वाल के विधायक किसी भी दल के रहे हों सार्वजनिक और जनहित के मुद्दे पर एक साथ रहते थे। बदरी केदार के विधायक नरेन्द्र सिंह भण्डारी कांग्रेस में थे, कर्णप्रयाग के विधायक शेर सिंह दानू जनसंघ में थे, टिहरी के विधायक गोविन्द सिंह नेगी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में थे लेकिन क्षेत्र के विकास लिए सरकार के पास सामूहिक रूप से प्रयास करते थे। दानू जी के पांचों पुत्र उच्च शिक्षा प्राप्त हैं। कनिष्ठ पुत्र प्रेम सिंह दानू हाई कोर्ट में अधिवक्ता के रूप में कार्यरत हैं।
राजनैतिक जीवन में तलवाड़ी कॉलेज बनाने, यातायात व परिवहन की सुविधा बढ़ाने में शेर सिंह दानू जी का खास योगदान रहा। 9 जनवरी, 1987 को उनका देहरादून में निधन हो गया। इस बार भी देवाल में 23 नवम्बर से शेर सिंह दानू के नाम पर औद्योगिक विकास मेला लगा  है। देवाल में वर्ष 2015 से प्रतिवर्ष 23 नवंबर से 27 नवंबर, पांच दिवसीय मेला आयोजित किया जाता है। यह मेला क्षेत्र के प्रसिद्ध समाजसेवी इन्द्र सिंह राणा के नेतृत्व में मेला कमेटी द्वारा क्षेत्रीय जनता के सहयोग से चलाया जाता है।
सन् 1940 से पूर्व के उच्च सैनिकों की पृष्ठभूमि में पले-बढे शेर सिंह दानू एक संत के रूप में राजनीति में रहे। ले0कर्नल देव सिंह दानू, कैप्टन नैन सिंह चिनवाण, लेफ्टिनेंट मकर सिंह कुंवर ग्राम ग्वाड़ गोपेश्वर, कप्तान धूम सिंह चौहान गौचर, सुबेदार बहादुर सिंह बर्त्वाल पट्टी खदेड़ चमोली, ख्यातिनामा सैनिकों में थे। सुबेदार बहादुर सिंह बर्त्वाल ने सन् 1918 में राय बहादुर डॉ0 पातीराम के साथ मिलकर रडवा स्कूल में गढ़वाल क्षत्रिय समिति एवं धर्मादा फण्ड की स्थापना की। यह संस्था 105 साल बाद अब पौड़ी में चल रही है। सन् 1947 में उन्होंने 108 गीता स्वामी के साथ मिलकर गोपेश्वर में इण्टर कॉलेज की स्थापना में सहयोग दिया। इसके पश्चात् चमोली जिला सोल्जर बोर्ड के सेक्रेट्री रहे तथा सैकड़ों युवकों को फौज में भर्ती कराया।
उत्तराखंड के इन सभी जांबाजों ने सैन्य नेतृत्व की क्षमता का ब्रिटिश राज्य में परिचय दिया था जिसका प्रसंग ‘गढ़वाल के राजपूत सैनिकों की परम्परा‘ नामक पुस्तक में मिलता है। देवाल, थराली, तलवाड़ी, ग्वालदम, नारायणबगड़ के विकास के लिए दानू जी ने बड़ी भूमिका निभाई थी जिसके लिए आज भी लोग उन्हें याद करते हैं। वास्तविकता यह है कि शेर सिंह दानू जैसे संत वृति के राजनेता अब दुर्लभ हैं।
(लेखक डॉ0 योगम्बर सिंह बर्त्वाल लंबे समय से उत्तराखंड के सामाजिक, राजनैतिक और ऐतिहासिक विषयों पर स्वतंत्र तौर पर लेखनरत हैं। उनसे सम्पर्क का पता है : बी-25 ज्योति विहार (सारथी विहार), देहरादून) 
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