उत्तराखंडियत को बचाए रखने के लिए पहाड़ की जनता के दुख दर्द को समझना अति आवश्यक : नेता प्रतिपक्ष

उत्तराखंडियत को बचाए रखने के लिए पहाड़ की जनता के दुख दर्द को समझना अति आवश्यक : नेता प्रतिपक्ष

देहरादून। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर समस्त प्रदेश वासियों को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए कहा कि जिस उत्तराखंड का सपना राज्य आंदोलनकारियों ने देखा था। वह आज तक पूरा नहीं हो पाया है। उत्तराखंड राज्य गठन के पीछे दो सदियों का संघर्ष है। कई राज्य आंदोलकारियों की शहादत है, जिसके बदौलत आज उत्तराखंड अपने अस्तित्व में आया है, लेकिन अभी भी उनके सपनों का उत्तराखंड अधूरा है। राज्य की मूल अवधारणा के प्रश्न हमारे सामने आज भी वैसे ही खड़े है ।

आर्य ने कहा कि उत्तराखंड में लगातार घट रही उत्पादकता और बढ़ रहे खर्च के बदौलत आज प्रदेश लगातार कर्ज में डूबता जा रहा है, जिसका सरकार अभी तक स्थाई समाधान नहीं ढूंढ पाई है। आज यह स्थिति है कि हर महीने सरकार को 200 से 300 करोड़ रुपये तक का ऋण बाजार से उठाना पड़ता है। राज्य बनते समय हम बात करते थे कि, हमारी आर्थिकी का आधार पर्यटन, उद्यान और जल विद्युत परियोजनाऐं होंगी। आज हम इन तीनों ही क्षेत्रों में लक्ष्य से बहुत दूर हैं। राज्य के स्थानीय निवासियों की इन तीनों महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हिस्सेदारी लगातार घट रही है। हमारी संस्थाएं विशेष तौर पर हमारी विश्वविद्यालयी संस्थाएं उनके शैक्षिक व अनुसंधानिक स्तर में जो गिरावट आई है वह चिंतनीय है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में महिलाओं की स्थिति बेहद चिंताजनक आज भी बनी है। आज भी उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ी-लिखी ग्रेजुएट बेटियां घास काटते और गांव में घर का काम करते नजर आती हैं। इसका मूल कारण महिलाओं के रोजगार को लेकर सरकार ने कोई बड़े कदम नहीं उठाए।
श्री आर्य ने कहा कि पहाड़ी इलाकों से पलायन राज्य का एक बड़ा नासूर बन चुका है। सरकार पलायन पर नकेल लगाने में नाकाम साबित हुई है। पलायन को लेकर राज्य में हालात इतने बदतर होते जा रहे हैं कि कई गांव अब घोस्ट विलेज बन चुके हैं।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि भाजपा सरकार की गैरसैण, ग्रीष्मकालीन राजधानी केवल घोषणा और नाम तक ही सीमित रह गई है। पर्वतीय जिले मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। बीते दो दशक में 1200 से अधिक गांव वीरान हो चुके हैं। 4000 स्कूल बंद हो चुके हैं। सरकार अब पर्वतीय क्षेत्रों में पॉलीटेक्निक व आइटीआइ भी बंद करने जा रही है। स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में रोजाना कई लोग दम तोड़ रहे हैं।

आर्य ने कहा कि रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता के लिए पृथक राज्य की मांग की गई थी, पर स्थिति यह है कि राज्य का युवा रोजगार की मांग को लेकर सड़कों पर उतरा हुआ है। प्रदेश में रोजगार की पूरी व्यवस्था ठेकेदारों के अधीन है। उत्तराखंड में सरकारी सेवाएं ही रोजगार का सबसे बड़ा आधार रही । प्रदेश में 15 लाख पंजीकृत बेरोजगार हैं और लगभग इसी संख्या से ज्यादा अपंजीकृत बेरोजगार राज्य मे दर-दर रोजगार के लिए भटक रहा हैं। लगभग 1 लाख के करीब पद रिक्त हैं। उत्तराखंड सरकारी महकमों, निगमों व सहायतित संस्थाओं में विभिन्न श्रेणियों के 82 हजार से अधिक पद खाली हैं। इनमें सबसे अधिक समूह ग के 41,842 पद खाली हैं, जबकि समूह घ के 9,591 पद भी रिक्त चल रहे हैं। समूह क और ख श्रेणी के 8266 पद भी खाली हैं। इसी तरह सार्वजनिक संस्थाओं में भी विभिन्न श्रेणियों के कुल 14019 पद खाली चल रहे हैं। सहायतित संस्थाओं में भी स्थायी व अस्थायी वर्ग में समूह क, ख, ग व घ श्रेणी के 8798 पद खाली चल रहे हैं। इनमें से सबसे अधिक पदों को भरने के लिए उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की जिम्मेदारी थी लेकिन आयोग द्वारा आयोजित हर परीक्षा विवादों में रही है , बेरोजगारों ने इसके सबूत सार्वजनिक किए। परीक्षाओं को लेकर जो गड़बड़ियां सामने आई हैं उसमें पब्लिक सर्विस कमीशन से लेकर अधीनस्थ सेवा चयन आयोग और दूसरी संस्थाएं, राज्य की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाई हैं। राजकीय सेवाओं में भर्तियों को लेकर जो एक चिंतनीय स्थिति बनी हुई है वह हमको झगझोरती है।

उन्होंने कहा कि कर्मचारियों का उत्पीडन हो रहा है। महिलाओं पर अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। राज्य के संसाधनों पर बाहरी लोगों का कब्जा हो चुका है। स्कूलों में अध्यापक नहीं हैं, बिजली प्रदेश को आज भी दूसरे प्रदेशो से बिजली लेनी पड़ रही है। जंगलो के हालत यह हैं कि हर साल आग लगना आम बात हो गई हैं, जिससे जल संकट बढ़ता जा रहा है। भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। हमारे सपनो के राज्य में माफिया दीमक की तरह कितने अंदर तक घुस चूका है ।

आर्य ने कहा कि उत्तराखंडियत को बचाए रखने के लिए पहाड़ की जनता के दुख दर्द को समझना अति आवश्यक है। प्रदेश में एक सख्त भू कानून और मूल निवास लागू करने की आवश्यकता है और यह भू-कानून पूरे प्रदेश की 100 प्रतिशत भूमि के लिए लागू होना चाहिए। पर्वतीय जिलों में सबसे बड़ी समस्या गुणवत्ता वाले स्कूलों की है और रोजगार सृजन के अवसरों के लिए राज्य स्तरीय कौशल निर्माण विश्विद्यालय की स्थापना की मांग अरसे हो रही है। राज्य सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में मूलतः गांव ही विकास और लोगों की बसाहट की मूल इकाई हैं। गांवों की खुशहाली मजबूत करनी होगी जिससे पलायन रुके और स्थानीय लोगों को छोटे मोटे रोजगार की तलाश में गांव से पलायन न करना पड़े।

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि मैं यही आशा करता हूँ भविष्य में हम भी अपने राज्य की भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार कानून बनाऐं और यहां के निवासियों की आकांक्षाओं के अनुसार उन नीतियों को जमीन पर उतारें।

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