आज से शुरू हुआ फूलदेई त्योहार, आज बच्चों ने निकाले रंग बिरंगे फूल,

आज से शुरू हुआ फूलदेई त्योहार, आज बच्चों ने निकाले रंग बिरंगे फूल,

उत्तराखंड में आज सोमवार को चैत्र संक्रांति से फूलदेई का त्यौहार मनाया जाएगा। गढ़वाल और कुमाऊं में आठ दिनों तक मनाये जाने वाले फूलदेई त्यौहार को लेकर बच्चों में बड़ी उत्सुकता देखी जा रही है। गाँवों में बच्चों ने फूलदेई के एक दिन पहले शाम को रिंगाल की टोकरी लेकर फ्यूंली, बुरांस, आडू, पन्या के फूलों को इकट्ठा भी कर लिया है। फूल से भरी टोकरियों के साथ बच्चों के मन में इस त्यौहार को लेकर उत्सुकता है। सुबह बच्चे घर-घर जाकर लोगों की सुख-समृद्धि के पारंपरिक गीत गाते हुए देहरियों में फूल बिखेरेंगे। इसके साथ ही बसंत ऋतू के आगमन का स्वागत भी हो जायेगा।

उत्तराखंड में यह पर्व बच्चों की खुशियों का त्यौहार है बच्चों द्वारा लोगों को घरों में फूल सजाकर वसंत के मौसम का स्वागत किया जाता है। यह पर्व कहीं-कहीं पूरे महीने मनाया जाता है लेकिन अधिकतर जगह यह आठ दिन ही मनाया जाता है। गढ़वाल और कुमाऊं में घोघा माता फुल्यां फूल, दे-दे माई दाल चौंल’ और ‘फूलदेई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भरी भकार’ गीत गाते हुए बच्चे सुबह-सुबह रोज सभी परिवारों की देहरियों में फूल सजाते हैं। फूल डालने वाले बच्चों को फुलारी कहते हैं। इस त्योहार को फूल संक्रांति भी कहा जाता है, इसका सीधा संबंध प्रकृति से है। इस समय चारों ओर छाई हरियाली और नाना प्रकार के खिले फूल प्रकृति के यौवन में चार चांद लगाते है। बता दें कि बच्चों के देहरी में फूल सजाने के बदले में लोग उन्हें दाल, चावल, आटा, गुड़, घी और दक्षिणा (रुपए) दान करते हैं।

बच्चे इस दान को जमा करते हैं और आठवें दिन अठोला पर्व पर इसका प्रसाद बनाते हैं इस दिन बच्चे घोघा (सृष्टि की देवी) की पुजा करते हैं। कुछ क्षेत्रों में बच्चे घोघा की डोली बनाकर देव डोलियों की तरह घुमाते और नचाते हैं। डोली की पारम्परिक तरीके से पूजा अर्चना की जाती है। इसके बाद चावल, गुड़, तेल से मीठा भात बनाकर या गुड़ का प्रसाद बनाकर सबको बांटा जाता है। इस कार्य में बच्चे खुद ही भागेदारी निभाते हैं। बड़े लोग उनके इस त्यौहार में उनकी भरपूर मदद करते है।

चला फुलारी फूलोंकु, सौदा सौदा फूल बिरोला…
भौंरों का झूठा फूल न तोड्या, म्वार्यों का झूठा फूल न लांया।

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