देहरादून। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि केंद्रीय बजट 2025-26 आम लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान किए बिना बड़े-बड़े वादों का एक और प्रयास है। बड़े-बड़े दावों के विपरीत, जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है, बेरोजगारी और मुद्रास्फीति घरेलू आय को कम कर रही है। ग्रामीण संकट गहराता जा रहा है। इन चिंताओं को दूर करने के लिए परिवर्तनकारी नीतियों की पेशकश करने के बजाय, बजट उन लाखों नागरिकों की आकांक्षाओं को नजरअंदाज करता है जो सार्वजनिक सेवाओं पर निर्भर हैं। यह पारदर्शिता, राजकोषीय घाटे के लक्ष्यों और राजस्व अनुमानों के बारे में भी चिंताएं पैदा करता है जो अवास्तविक प्रतीत होते हैं।
आर्य ने कहा कि बजट 2025 एक सुव्यवस्थित आर्थिक योजना के बजाय मात्र चुनावी घोषणा-पत्र बनकर रह गया है।
उन्होंने कहा कि युवाओं और किसानों को कोई वास्तविक राहत नहीं है। बेरोजगारी और महंगाई पर ठोस समाधान की बजाय सतही दावे है। एम.एस.एम.ई., स्वास्थ्य, शिक्षा और मनरेगा की उपेक्षा जारी है। स्मार्ट सिटी, मेडिकल कॉलेज जैसी पुरानी घोषणाओं का कोई हिसाब नहीं है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) और कृषि ऋण माफी पर सरकार की चुप्पी साध रखी है। बेरोजगारी दूर करने के लिए कोई ठोस योजना नहीं, बस खोखले वादे किए जा रहे है। बजट में साहसिक सुधारों की कमी, केवल चुनावी लॉलीपॉप है।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि किसानों की आय दोगुना करने के लिए कोई रोडमेप नहीं, खेती के सामान पर जीएसटी दर में कोई रियायत नहीं दी गई। आसमान छूती महँगाई कि बावजूद मनरेगा का बजट वही का वही है। श्रमिकों को आय बढ़ाने के लिये कुछ नहीं किया गया। बेरोजगारी को कम करने के लिए, नौकरियां बढ़ाने की कोई बात नहीं की स्टार्ट अप इंडिया, स्टेण्ड अप इन्डिया, स्कील इंडिया सभी योजनाएँ बस घोषणाएँ साबित हुईं।
उन्होंने कहा कि विकास दर और रोजगार पर नकारात्मक प्रभावदृ पूंजीगत व्यय (कैपटैक्स) में ₹92,682 करोड़ की कटौती से बुनियादी ढांचे के विकास की गति धीमी हो सकती है। इससे नई परियोजनाओं में देरी होगी, जिससे निर्माण और विनिर्माण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर कम हो सकते हैं। कोविड-19 महामारी के बाद स्वास्थ्य क्षेत्र को और मजबूत करने की जरूरत थी, लेकिन बजट में ₹1,255 करोड़ की कटौती कर दी गई। यह सरकारी अस्पतालों, ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं और नई स्वास्थ्य योजनाओं के विस्तार को प्रभावित कर सकता है।
आर्य ने कहा कि शिक्षा बजट में ₹11,584 करोड़ की कटौती भारत के भविष्य के लिए हानिकारक हो सकती है। जब भारत को नई शिक्षा नीति (नैप) को प्रभावी ढंग से लागू करने और उच्च शिक्षा में निवेश बढ़ाने की जरूरत थी, तब इस कटौती से शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। कृषि बजट में ₹10,992 करोड़ और ग्रामीण विकास में ₹75,133 करोड़ की कटौती से किसानों और ग्रामीण गरीबों को बड़ा झटका लगेगा। यह मनरेगा जैसी योजनाओं की फंडिंग को प्रभावित कर सकता है, जिससे ग्रामीण बेरोजगारी बढ़ सकती है।
उन्होंने कहा कि सामाजिक कल्याण बजट में ₹10,019 करोड़ की कमी से कमजोर और वंचित वर्गों के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर असर पड़ेगा। सरकार की यह नीति सामाजिक न्याय के खिलाफ प्रतीत होती है। शहरी विकास बजट में ₹18,907 करोड़ और पूर्वोत्तर विकास में ₹1,894 करोड़ की कटौती से इन क्षेत्रों में अधूरी योजनाओं के पूरा होने में देरी होगी। इससे पूर्वोत्तर राज्यों के विकास की गति प्रभावित होगी, जो राष्ट्रीय एकता और संतुलित विकास के लिए आवश्यक है।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि सरकार ने फिस्कल डेफिसिट को कम करने के नाम पर खर्च घटाया है, लेकिन यह दीर्घकालिक दृष्टि से नुकसानदेह हो सकता है। सार्वजनिक निवेश में कटौती से निजी क्षेत्र की भागीदारी भी कम हो सकती है, जिससे संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।इस बजट में किए गए खर्च में कटौती कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों को कमजोर कर सकती है, जिससे विकास दर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि सरकार को वित्तीय अनुशासन और विकास के बीच संतुलन बनाना चाहिए था, लेकिन इस बार का बजट दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिए चिंता का कारण बन सकता है।