आंदोलनकारी विशेषण उत्तराखंड में किसे नहीं भा रहा?

आंदोलनकारी विशेषण उत्तराखंड में किसे नहीं भा रहा?

दून विनर संवाददाता/देहरादून।
प्रदेश सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने कहा कि वेद उनियाल वैचारिक तौर पर सुदृढ, उत्तराखंड के हित चिंतक और मजलूमों के लिए संघर्ष करने प्रेरक व्यक्तित्व हैं। आज की पीढी को उनके जीवन से सीखना चाहिए और प्रदेश के हित के बारे में चिंतन मनन कर उसके लिए प्रयास करने चाहिए। यह वेद उनियाल जी की वैचारिक निधि को याद रखने का सही तरीका होगा। वेद उनियाल उत्तराखंड राज्य आंदोलन में अपने पल-पल को लगा देने के बाद शरीर से काफी दुर्बल हो गए थे किन्तु उनकी अपराजित रहने वाली विचार शक्ति इतनी थी कि एक दिन कहने लगे कि मैं चाहता हूं कि मेरी मौत भी भाषण देते हुए हो। सूचना आयुक्त योगेश भट्ट उत्तरांचल प्रैस क्लब देहरादून में ‘वेद उनियाल विचार मंच‘ के तत्वावधान में आयोजित ‘उत्कृष्ट सम्मान समारोह‘ में बतौर मुख्य अतिथि विचार व्यक्त कर रहे थे।
सूचना आयुक्त ने कहा कि पर्वतीय जिलों में लोगों में सरकार के काम काज के बारे में जानने की जिज्ञासा काफी कम है। कुल आरटीआइ आवेदनों में से केवल 10 प्रतिशत ही प्रदेश के 10 पर्वतीय जिलों में दिए गए। जब लोगों को सरकार की तमाम विकास और कल्याणकारी योजनाओं के बारे में वास्तविक डेटा पता ही नहीं हैं तब जिम्मेदार विभागों और सरकार से सवाल कैसे पूछे जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी योजना, परियोजना में घपलों की आशंका होने पर आरटीआइ से सूचना हासिल कर उसे तर्क पूर्ण ढंग से शासन और सरकार के सामने रख नागरिक गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार को कम करने में अपनी बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं। उत्तराखंड के देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंह नगर तीन जिलों में जानने के अधिकार का उपयोग लोग कर रहे हैं लेकिन इस मामले में पर्वतीय जिलों की स्थिति बहुत खराब है। सूचना आयुक्त का कहना था कि आरटीआइ एक्ट का शासन को जिम्मेदार बनाने के लिए उपयोग अधिकतम किया जाना चाहिए।
सूचना आयुक्त से  पहले समारोह में मौजूद अति विशिष्ट अथिति पूर्व विधायक ओम गोपाल रावत ने अपने संबोधन में कहा कि राज्य आंदोलन के दिनों में रणनीति वेद उनियाल बनाते थे और युवा आंदोलनकारी उसे जमीन पर उतारने को जोर लगाते। पूर्व विधायक ने ये तो कहा कि वे आज के दिन राजनीति वाली बात नहीं करेंगे किन्तु लोगों से मुखातिब होते हुए उनका अगला सवाल बतौर उदाहरण यही था कि उत्तराखंड गठन के बाद आज तक कृषि-उद्यान क्षे़त्र में करीब 40 हजार करोड़ का बजट खर्च किया गया जबकि इसकी उपलब्धि स्वरूप बताने के लिए सरकारों के पास कोई ठोस काम नहीं हैं। इतनी बड़ी रकम का क्या हुआ और यह किसकी जेब में गई, इस बारे में लोगों को पूछना चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य  आंदोलनकारी  आज कई दलों में हैं और कुछ किसी भी दल में नहीं हैं। वे मिलकर एक संगठन में आएंगे और राजनीति करेंगे यह व्यावहारिक नहीं रह गया है। इसके बजाए राज्य हित से जुड़े तमाम मुद्दों पर सभी को एक सुर में हुंकार देनी है।
समारोह में पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने अति विशिष्ठ अतिथि के तौर पर कहा कि राज्य आंदोलन के समय और आज राज्य गठन के 22 वर्षों बाद समस्याएं और हमारी चिंताएं समान हैं। पर्वतीय गांवों से पलायन जारी है, वहां खेत बंजर होते जा रहे हैं, पानी के स्रोत खत्म होते जा रहे हैं, वन्य हिंसक पशुओं का डर है और भूस्खलन एवं आपदा से पहाडों में खतरा बढ रहा है। आज जरूरत है कि उत्तराखंड की खराब होती हालत को बदलने के लिए युवा और अन्य लोग मिलकर नई मशालें लेकर बाहर आएं।
समारोह की अध्यक्षता कर रहे सुभाष शर्मा ने कार्यक्रम के आखिरी में अपने वक्तव्य में वेद उनियाल को याद करते हुए कहा कि उनसे मुलाकात पहली बार डीएवी पीजी काॅलेज देहरादून में हुई थी। वेद उनियाल के परिपक्व राजनैतिक विचारों, उनकी समझ और गरीब घरों के छात्रों की को हल करने की उनकी चिंता के कायल तत्कालीन समय के छात्र नेता भी थे। सुभाष शर्मा ने कहा कि उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान  वेद  उनियाल द्वारा कई दिनों तक भूख हड़ताल करने से उनकी हालत बहुत खराब हो गई थी जिसके बाद उनका शरीर कमजोर रहने लगा और आखिर में वे बीमार रहते हुए हमेशा के लिए इस दुनिया से चले गए। सुभाष शर्मा ने कहा कि वेद भाई कहा करते थे कि मेरा दिमाग ठीक चाहिए बाकी हाथ-पांव साथी लोग तो हैं ही। सुभाष शर्मा ने कहा कि वे आज के उत्तराखंड की हालत देख यह महसूस करते हैं कि लोगों को उत्तराखंड की दशा को बदलने के लिए एक बार फिर सड़कों पर उसी तरह आना होगा जैसे राज्य आंदोलन में लोग उमड़ पड़े थे। उन्होंने कहा कि आज उत्तराखंड को मिनी यूपी की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके खिलाफ लड़ना होगा।
वेद उनियाल को मार्क्स, लेनिन, माओत्से तुंग के विचारों से तप कर निकली शख्सियत बताते हुए मजदूर नेता जगदीश कुकरेती ने कहा कि वेद उनियाल के अलग कोई विचार नहीं थे बल्कि वे जिस विचार से ओत-प्रोत थे उसके तहत उत्तराखंड को आम जन की इच्छा और आकांक्षाओं को पूरा करने वाला राज्य बनाने की बात करते थे। जगदीश कुकरेती ने कहा कि वेद उनियाल के विचारों को लेकर मंच को शोधपूर्ण काम करने की भी जरूरत है ताकि विचार मंच का उद्देश्य निखरकर लोगों के सम्मुख आ पाए।

आंदोलनकारी मंच के प्रदेश अध्यक्ष जगमोहन सिंह नेगी, रोटरी क्लब के पीएस कठैत, उत्तरांचल प्रैस क्लब के अध्यक्ष अजय राणा ने भी बतौर अति विशिष्ठ अतिथि अपने विचार रखे।
उत्कृष्ट सम्मान समारोह में इस बार साहित्य के लिए रश्मि मृदुलिका पोखरियाल, चिकित्सा के लिए डाॅ. जयंत नवानी, मसरूम उत्पादन के प्रचार-प्रसार के लिए विपिन रावत, बागवानी के लिए मंगत सिंह नेगी और सामाजिक कार्यों के लिए धाद संस्था को सम्मानित किय गया। मंच का संचालन और संयोजन उक्रांद नेता सुनील ध्यानी ने किया। गौरतलब है कि सुनील ध्यानी वेद उनियाल विचार मंच के संयोजनकर्ता भी हैं। इस बार दूसरा उत्कृष्ट सम्मान समारोह आयोजित किया गया।
समारोह में अपने वक्तव्य में उत्तराखंड क्रान्ति दल के नेता राजेन्द्र पंत ने कहा कि राज्य आंदोलनकारियों को भगवान के समान सम्मान दिया जाना चाहिए क्योंकि उन्हीं के त्याग और बलिदान के कारण आज लोग अलग राज्य में प्रशासनिक सहूलियतों का लाभ ले पा रहे हैं और हमारे कई लोग सरकार और शासन में उच्च पदों पर पहुंचे हैं जो उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में संभव नहीं था। उन्होंने सुझाव दिया कि जब भी सीएम पद की शपथ होती है मंच पर राज्य आंदोलनकारियों को सम्मान देते हुए कार्यक्रम होना चाहिए। समारोह में राज्य आंदोलनकारी मोहन सिंह रावत, पूरण सिंह लिंगवाल, जबर सिंह पावेल, सुशील त्यागी, मजदूर नेता मेंहदी रत्ता, जगदीश चैहान, उक्रांद नेता मोहन सिंह असवाल, वेद उनियाल के छोटे भाई ओमी उनियाल ने अपने विचार व्यक्त किए। सुभाष शर्मा ने हर साल कार्यक्रम के लिए 25 हजार रुपए की सहयोग राशि व्यक्तिगत तौर पर देने की घोषणा की।
समारोह स्थल पर ही इस बात की चर्चा हो रही थी कि कर्मचारियों और बेरोजगारों के आंदोलनों को विकास में रोड़े की तरह इंगित करने के बजाए उसे सही पृष्ठभूमि और परिप्रेक्ष्य में देखा जाना जरूरी है। दरअसल समारोह में एक प्रमुख वक्ता का कहना था कि उत्तराखंड गठन के बाद गुजरे 22 वर्षाें में हर कोई उत्तराखंड को गरियाने पर लगा है। राजनीति, शासन, मीडिया, ज्यूडिशियरी में नकारात्मकता दिखाई देती है। प्रदेश को लोग चारागाह बनाना चाहते हैं। आज लोग ये सवाल नहीं पूछते कि उन्होंने अपनी ओर से प्रदेश को दिया क्या है? बल्कि जो हाथ आए झटकना चाहते हैं। कर्मचारियों को अपने काम से भी प्राथमिकता आंदोलन की हो गई है। ऐसे में उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों से ‘आंदोलनकारी‘ शब्द हटाकर ‘सेनानी‘ जोड़ देना चाहिए। उत्तराखंड में आए दिन हो रहे आंदोलनों से लोगों के बीच अच्छी धारणा नहीं बन रही है। लोगों को गलतफहमी है कि राज्य आंदोलनकारी राज्य बनने के बाद भी सड़कों पर कर्मचारियों की तरह आंदोलन करते रहते हैं। इसके चलते राज्य आंदोलनकारियों की आवाज को वह सम्मान नहीं मिलता जिसके वे हकदार हैं।
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