देहरादून। चुनाव से ठीक पहले भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए य़शपाल आर्य को अपना फैसला रास न आ रहा हो। लेकिन उत्तराखंड कांग्रेस में बदली सियासत के माहौल में आर्य का सियासी कद बढ़ सकता है। सूत्रों का कहना है कि उन्हें नेता प्रतिपक्ष या फिर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का पद मिल सकता है।
यशपाल आर्य एक ऐसे नेता हैं जो 2002 में कांग्रेस सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रहे और 2007 में बीजेपी ने वापसी की और कांग्रेस को विपक्ष में बैठना पड़ा तब कुछ माह बाद यशपाल आर्य को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बने। कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें लगातार दो ट्रम प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखा। उनके प्रदेश अध्यक्ष होते हुए कांग्रेस ने 2009 में पांचो लोकसभा सीटें जीती और 2012 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता में वापसी कराई और कांग्रेस की सरकार में वह मंत्री बने। य़शपाल आर्य ने 2017 में चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन की। भाजपा ने यशपाल आर्य और उनके पुत्र संजीव को टिकट दिया। दोनों ही जीते और य़शपाल फिर से काबीना मंत्री बन गए। 2022 के चुनाव से कुछ माह पहले पिता-पुत्र ने फिर से पाला बदला और कांग्रेस में चले गए। इस बार संजीव चुनाव हार गए और य़शपाल आर्य खुद बमुश्किल 1100 वोटों से जीत सके। लेकिन सरकार भाजपा की बनने जा रही है। ऐसे में पिता-पुत्र को भाजपा छोड़ने का अपना फैसला शायद ही रास आ रहा हो।
भाजपा में काबीना मंत्री रहे य़शपाल आर्य कांग्रेस में महज एक विधायक ही रह गए हैं। उत्तराखंड कांग्रेस के बदले हालात में य़शपाल आर्य़ का सियासी कद बढ़ सकता है। सूत्रों का कहना है कि अगर प्रीतम सिंह का नेता प्रतिपक्ष का ओहदा बरकरार रहता है तो आर्य़ को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। और अगर प्रीतम किन्हीं वजहों से पिछड़ते हैं तो नेता प्रतिपक्ष आर्य को बनाया जा सकता है। दोनों ही हालात में कांग्रेस कुमाऊं और गढ़वाल के बीच क्षेत्रीय और जातीय संतुलन साधने में सफल हो सकते है।