भाजपा राज में महंगाई ने तोड़ा आठ साल का रिकॉर्ड

भाजपा राज में महंगाई ने तोड़ा आठ साल का रिकॉर्ड

आम आदमी की बातचीत में रोज-ब-रोज अभिव्यक्ति पाने वाली खाना-पीना, लत्ता-कपड़ा, घूमना-फिरना और सर के ऊपर छत जैसे नामों से, जीवन के लिए जरूरी वस्तुओं और सेवाओं की आग उगलती कीमतों ने देश की विशाल आबादी का जीना मुश्किल कर दिया है। अप्रैल में महंगाई ने पिछले 8 साल का रिकॉर्ड भी ध्वस्त कर डाला है।
दून विनर संवाददाता/देहरादून
भारत में आम आदमी पर महंगाई हर महीने चाबुक चला रही रही है। पिछली चोट की पीड़ा कम नहीं होती कि महंगाई की नई चोट लगती है। एक छोटा सा तबका दिलासा देता है कि महंगाई तो दुनिया में बढ रही है, पश्चिम के विकसित देशों की मिसाल दी जा रही है, अलबत्ता अब भारत की महंगाई को पश्चिमी चश्मे से देखने से भी उन्हें गुरेज नहीं।
अप्रैल के सरकारी आंकड़ों ने दिखाया है कि बीते 8 साल में खुदरा महंगाई ने एक नया रिकॉर्ड बनाया है।
आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी खुदरा महंगाई दर 7.79 फीसदी पर पहुंच गई। इसमें खाद्य पदार्थों और तेल की कीमतों में आई तेजी को प्रमुख वजह बताया जा रहा है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई इस साल मार्च में 6.95 फीसदी और अप्रैल 2021 में 4.23 फीसदी दर्ज हुई है। खुदरा महंगाई का यह स्तर मई 2014 के बाद से अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा 12 मई 2022 को जारी किए गए खुदरा महंगाई दर के आंकड़ों से ये आशंका सच में बदल गई है कि आम जनता के त्राहि-त्राहि करने के पीछे महंगाई की बढती मार ठोस वजह रही है।
भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2 से 6 प्रतिशत तक महंगाई दर की लिमिट तय कर रखी है, लेकिन अप्रैल माह में देश में महंगाई दर आरबीआइ की ओर से तय की गई लिमिट से बहुत आगे निकल गई। यही नहीं, ये लगातार चौथा महीना है जब देश में खुदरा महंगाई दर आरबीआइ की तय की गई सीमा से आगे निकल गई है। ऐसे में खुदरा महंगाई को नियंत्रित करने का आरबीआइ पर दबाव बढ़ गया है।
आर्थिक क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में महंगाई को काबू में रखने के लिए रिज़र्व बैंक ब्याज दरों में और बढ़ोत्तरी कर सकता है। जबकि मई के महीने में आरबीआइ ने रेपो रेट में बढ़ोत्तरी की है, जिसका असर ये हुआ है कि अधिकांश बैंकों ने होम लोन की दरें बढ़ा दी हैं। अब आने वाले समय में इसमें और वृद्धि की आशंका बढ़ गई है यानी इधर कुआं, उधर खाई!
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